वीणा धारिणी
काव्य साहित्य | कविता भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'3 May 2012
हे कर में वीणा धारिणी
अज्ञान तिमिर निवारिणी
आराधना करते तेरी सब
ध्यानी, ज्ञानी महागुणी।
शोभित है कर में पुस्तिका
हे शुभ्र हंस विराजिनी।
झंकृत करो मम प्राण को
मम मात वीणा वादिनी।
भव सिन्धु अगम अथाह से
तुम ही हो पार उतारिणी।
विज्ञान ज्ञान सुजान सबकी
तुम ही तो माँ वर दायनी।
सब देव गण स्तुति करें
तुम अभय दान प्रदायणी।
जिस कंठ बीच विराजती
शुभ शब्द गाते रागिनी।
सबका करो मंगल हे माँ
बस साक्षरता हो वाहिनी।
अज्ञान के अरि कर न पायें
विजय अपनी वाहिनी।
हम प्रार्थना करते सदा ही
ओ मेरी माँ उद्धारिणी।
जग की कुरीति सब मिटें
हो धरा सत्य व्रत धारिणी।
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