स्वतन्त्रता
काव्य साहित्य | कविता भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'3 May 2012
भारत के इतिहासी धन में है दीप्तमान १५ अगस्त
सब काट दासता की बेड़ी हुआ कीर्तिमान १५ अगस्त।
जो मिटे स्वतन्त्रता वेदी पर सिन्दूर मिटाया बहनों ने
उनकी ही याद दिलाने को करता अह्वान १५ अगस्त।
तुम नहीं भूल जाना इनको देखो इनके बलिदानों को
भारत स्वतन्त्रता की गरिमा है यह निशान १५ अगस्त।
हम हैं सुदूर भारत से पर मन में बसता है हर पल
मेरी भारत माता का है अक्षय वरदान १५ अगस्त।
ले अटल कर्म औ देश प्रेम फहराये भारत का तिरंग
हों स्वार्थहीन मन न मलीन है नव विहान १५ अगस्त।
जागो जागो भारत वासी न सुप्त रहो कहे देश प्रेम
बस यह सब ही बतलाने को आता सुजान १५ अगस्त।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अंतर पीड़ा
- अनुल्लिखित
- अभिवादन
- अर्चना के पुष्प
- आस्था
- एक चिंगारी
- एक दीपक
- कठिन विदा
- कदाचित
- काल का विकराल रूप
- कुहासा
- केवल तुम हो
- कौन हो तुम
- चातक सा मन
- छवि
- जो चाहिये
- ज्योति
- तुषार
- तेरा नाम
- दिव्य मूर्ति
- नव वर्ष (भगवत शरण श्रीवास्तव)
- नवल वर्ष
- नवल सृजन
- पावन नाम
- पिता (भगवत शरण श्रीवास्तव)
- पुष्प
- प्रलय का तांडव
- प्रवासी
- प्रेम का प्रतीक
- भाग्य चक्र
- मन की बात
- महारानी दमयन्ती महाकाव्य के लोकापर्ण पर बधाई
- याद आई पिय न आये
- लकीर
- लगन
- लेखनी में आज
- वह सावन
- विजय ध्वज
- वीणा धारिणी
- शरद ऋतु (भगवत शरण श्रीवास्तव)
- श्रद्धा की मूर्ति
- स्मृति मरीचि
- स्वतन्त्रता
- स्वप्न का संसार
- हास्य
- हिन्दी
- होके अपना कोई क्यूँ छूट जाता है
- होली आई
- होली में ठिठोली
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं