नवल सृजन
काव्य साहित्य | कविता भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'3 May 2012
नवल कुसुम, नवल सृजन,
नवल प्रभात मन मगन।
कि गा रहा है मुक्त स्वर
रिझा रहा तुम्हें पवन।
धरा गिरा उचारती है,
है भव्य भाल भारती
ले पुष्प माल है खड़ी
नव वर्ष आ रहा भवन।
सुधा बहेगी हर कहीं,
क्षुधा मिटेगी अब सभी,
ये विश्व होगा प्रेम का,
आतंक का होगा दमन।
दिशायें होगी मुक्त सब
निशायें होगी ज्योति मय
विधायें होंगी पूर्ण सब
होंगे सभी पुल्कित नयन।
है आश, विश्वास भी
यह वर्ष आया हर्ष का,
शुभकामना देता "शरण"
हँसते रहें धरती गगन।
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