विजय ध्वज
काव्य साहित्य | कविता भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'3 May 2012
दो हमें आशीष माँ, हम विजय कर लौट तेरे चरण चूमें।
तेरे आशीष का पहने कवच, बढ़ते रहें अविराम रण में॥
वैरियों को भेज दें परलोक, विजय ध्वज फहरायें रण में।
नत करें मस्तक कुटिल कुचक्र का, बेध अरि सैन्य रण में॥
दें भगा सीमा से अपनी, हम सब छिपे अतताईयों को।
सुख शान्ति की लें साँस सब, आके फिर अपने वतन में॥
इस भारत की भूमि को दूषित किया कितनों ने आकर।
जिनका हम सम्मान करते थे, समझ महमान मन में॥
अब न होगी भूल फिर ऐसी, कभी भी भूल कर भी।
है सजग सीमायें अपनी, प्रहरी दृढ़ खड़े हैं सभी रण में॥
स्वर्ण पक्षी सा बनेगा, फिर से अपना देश प्रिय संसार में।
फिर जगद् गुरु का मिलेगा मान, है यही विश्वास मन में॥
हम तेरी रक्षा में यदि हों बलिदान! कुछ भी भय नहीं माँ।
पुत्र का कर्त्तव्य तो निभ जायेगा, बस मात सुन लो आज रण में॥
हम चले बलिदान पथ पर, दो हमें वह शक्ति माँ आज मन में।
हम तुम्हारे नाम को धूमिल न होने देंगे, ले शपथ जाते रण में॥
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