नवल वर्ष
काव्य साहित्य | कविता भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'3 May 2012
अन्तराल, अन्तरतम, अपना आप छिपाये
अभिनव वर्षारम्भ निरख, वसुमति मुस्काये
लो नवल वर्ष में नवल कुसुम की भेंटे
तुमको जाता कोई स्र्वस्व लुटाये
अज्ञात, ज्ञात, हर बात विगत वर्षों की
तुम मत निरखो, यदि अश्रु कोई ढुलकाये
अधरों पर अरुणिम आभा सदा सुसज्जित
तुमको नव वर्ष सदा सरसे बरसे, हर्षाये।
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