नव वर्ष (भगवत शरण श्रीवास्तव)
काव्य साहित्य | कविता भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'3 May 2012
वर्ष आते हैं वर्ष जाते हैं,
हम सदा इसके ही गीत गाते हैं।
इसके आने की और जाने की,
हम तो केवल मुहर लगाते हैं।
छोड़ जाते हैं हमको पीछे जो,
बनके वह याद क्यूँ सताते हैं।
पुष्प मुखरित हुआ तो भ्रमर
भी प्यार के गीत गुनगुनाते हैं॥
है नवल सब कुछ नवल संदेश
ले हर पड़ोसी, हम बुलाते हैं।
आओ सब प्रेम का उपहार दें,
यह नवल वर्ष हम मनाते हैं,
हम सदा शान्ति के पुजारी हैं,
द्वेष कटुता को हम भुलाते हैं।
है यही संदेश मेरा विश्व को,
मिलके आँतक हम मिटाते हैं॥
रो रही मायें बिलखती बेटियाँ,
खून उनका वे क्यों बहाते हैं।
मिट गये सब हलाकू चंगेज़ी,
नाम तेरे भी उनमें आते हैं।
अब नहीं देर तुम मिट जाओगे,
देखलो दिन तेरे वे आते हैं।
विश्व अब न सहेगा नर संहार,
अब तुम्हें खोजने वे आते हैं॥
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अंतर पीड़ा
- अनुल्लिखित
- अभिवादन
- अर्चना के पुष्प
- आस्था
- एक चिंगारी
- एक दीपक
- कठिन विदा
- कदाचित
- काल का विकराल रूप
- कुहासा
- केवल तुम हो
- कौन हो तुम
- चातक सा मन
- छवि
- जो चाहिये
- ज्योति
- तुषार
- तेरा नाम
- दिव्य मूर्ति
- नव वर्ष (भगवत शरण श्रीवास्तव)
- नवल वर्ष
- नवल सृजन
- पावन नाम
- पिता (भगवत शरण श्रीवास्तव)
- पुष्प
- प्रलय का तांडव
- प्रवासी
- प्रेम का प्रतीक
- भाग्य चक्र
- मन की बात
- महारानी दमयन्ती महाकाव्य के लोकापर्ण पर बधाई
- याद आई पिय न आये
- लकीर
- लगन
- लेखनी में आज
- वह सावन
- विजय ध्वज
- वीणा धारिणी
- शरद ऋतु (भगवत शरण श्रीवास्तव)
- श्रद्धा की मूर्ति
- स्मृति मरीचि
- स्वतन्त्रता
- स्वप्न का संसार
- हास्य
- हिन्दी
- होके अपना कोई क्यूँ छूट जाता है
- होली आई
- होली में ठिठोली
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं