स्मृति मरीचि
काव्य साहित्य | कविता भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'3 May 2012
निशीथ में स्मृति मरीचि,
जल प्लावित कर गई नैन,
ताप तप्त हिय लेकर
नीरव हो गई रैन।
नीरभ्र आकाश हाय
वारिद बन आ जाओ,
विदग्ध प्रति आस आज
मेरी कर गई रैन।
लता निकर आकर्षक
आज कुछ क्षुब्ध सी है।
उसे किसी विसर पर
आता है नहीं चैन।
भ्रमित बुद्धि मेरी
अभीष्ट नहीं आया मेरा
म्लान मन मेरा झाँके
वातायन से सारी रैन।
चँद्रिका सिक्त वसुमति
संकुचित पग पग पर,
निस्पन्द मैं खड़ा रहा
आँसू झरते हैं नैन।
अनल अविराम मन्द्र ध्वनि
विदग्ध करती है
विदीर्ण हो गया हृदय,
आस हुई भस्म मूक हो गए बैन।
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