पिता (भगवत शरण श्रीवास्तव)
काव्य साहित्य | कविता भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'3 May 2012
मैं पिता का भाल हूँ लाल हूँ अपनी जननी का
लाड़ हूँ यदि मात श्री का तो पिता का गर्व हूँ।
थाम जिनकी उँगलियाँ प्रथम पग पथ पर चला
उस पिता उस धात्री का ऋणी सदा सहर्ष हूँ।
जो पिता से सीख पाई मात ने जो थी बताई
नीति हूँ आदर्श हूँ समेटे हिय में भारतवर्ष हूँ।
थे पिता आदर्श मेरे और माँ भगवान गुरु सी
उस जननि की प्रेरणा मै उसका ही तो हर्ष हूँ।
तुम परम में मिल गये नाम अपना दे मुझे
मै तुम्हारी आस्था का आस का ही सर्ग हूँ।
तुम से मैने शौर्य पाया शान्ति का गान गाया
मैं तुम्हारे लक्ष्य का सब भाँति से उत्कर्ष हूँ।
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