पावन नाम
काव्य साहित्य | कविता भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'3 May 2012
मन खोजता फिरता तुम्हें,
किस ठौर हो किस ग्राम हो।
वह कौन सी दिस दो बता,
जिसमें तुम्हारा धाम हो॥
जगता रहूँ सोता रहूँ,
तेरी ही छवि हो सामने।
मुख नाम ले तो बस तेरा,
और न कोई नाम हो॥
हर स्वांस में हर आस में,
मेरे अटल विश्वास में।
मैं सत्य कहता हूँ तुम्हें,
तुम एक पावन नाम हो॥
है पुण्य बेदी प्रीति की,
न हार की न जीत की।
जीवन कभी मिथ्या नहीं,
तुम सत्य ही मम प्राण हो॥
हैं प्राण जब तक संग में,
हर शब्द तुम ही तरंग में।
मैं गीत गाता ही रहूँ,
हर पल तेरा ही ध्यान हो॥
तुम ध्यान हो तुम ज्ञान हो,
तुम ही हो मेरी प्रेरणा।
बिन प्रेरणा के गीत का,
कैसे भला रस पान हो॥
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