स्वप्न का संसार
काव्य साहित्य | कविता भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'3 May 2012
स्वप्नों का संसार सुन्दर लगता है।
पुष्पों का श्रृंगार सुन्दर लगता है।
पतझर की भी आओ हम बातें कर लें।
त्याग सभी कुछ अपना देखो चलता है।
कथा कहानी जीवन की कुछ ऐसी है।
त्याग भार संसार प्यार जब रमता है।
कौन कहाँ रम जाय देखो नहीं पता है।
जग चलता ही रहता कभी न थमता है।
चलते चलते कहीं साँझ भी तो आयेगी।
थकित बटोही बैठ वहीं पे दम भरता है।
यदि सपने न हों तो जीवन दूभर होगा।
कल का सपना देख कहीं चल पड़ता है।
स्वप्न टूटता आँख तभी खुल जाती है।
जीवन औ सपनों में कितनी समता है।
आँख खोल संसार निहारा हर पग पर।
कहीं स्वप्न सा जीवन पल में ठगता है।
स्वप्न देखना देखो है अधिकार सभी का।
यत्न ही करके, मानव तो कुछ करता है।
बिना मोल के यहाँ अरे साँसें बिक जाती हैं।
मागों का सिन्दूर कहीं पर जब लुटता है।
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