तेरा नाम
काव्य साहित्य | कविता भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'3 May 2012
तुम्हें खोके मैंने न जाने क्या खोया।
हँसी तो हँसी थी ये ग़म मुस्कुराया॥
न जाना न समझा न कोई सदा दी।
न मुड़के ही देखा न कुछ भी बताया॥
मेरी ज़िन्दगी के हर एक ही सफे पर।
लिखा नाम तेरा मेरे संग ही पाया॥
ये जीवन अनोखी कहानी सुनाता।
कोई सुनके भी तो, नहीं सुन है पाया॥
सुनाऊँ किसे अब ये भूली कहानी।
जो पिछले दिनों में ही मैं छोड़ आया॥
प्रणय के मधुर मन्त्र में मुग्ध होकर।
लिखा था किसी ने "तुम्हें मैंने पाया"॥
"शरण" की तो केवल है इतनी कहानी।
जो खोता हमेशा कभी कुछ न पाया॥
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