अनमोल नियामतें
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'1 May 2021 (अंक: 180, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
जब होता है पास में
तो उसे यूँ ही गँवाता है इंसान,
निकल जाए जो हाथ से
तो बड़ा पछताता है इंसान,
वक़्त रहते उसकी सही क़द्र
आख़िर कहाँ कर पाता है इंसान।
जब होते हैं पास में
तो उन्हें आँखें दिखाता है इंसान,
चले जाएँ जो दूर कहीं
तो बड़ा फड़फड़ाता है इंसान,
पास रहते हुए रिश्तों की सही क़द्र
आख़िर कहाँ कर पाता है इंसान।
जब होते हैं पास में
तो उन्हें बड़ा रुलाता है इंसान,
किसी ना किसी बहाने से
उन्हें हमेशा सताता है इंसान,
अपने चाहनेवालों की सही क़द्र
आख़िर कहाँ कर पाता है इंसान।
समय की, रिश्तों की और
अपने चाहनेवालों की सही क़द्र
कर पाए जो इंसान,
ज़िंदगी में औरों से कम ही
होंगे वो परेशान,
लेकिन सही नसीहतों की क़द्र
आख़िर कहाँ कर पाता है इंसान।
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