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जीवनोपासना

जीवन अमृत तुल्य है। मानव के असंख्य पुण्य कर्मों का फल उसे मनुष्य योनि प्रदान करता है। सनातन मान्यता है चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद मानव जन्म प्राप्त होता है। ईश्वर के दिए इस अनमोल जीवन को समाप्त करने का अधिकार मानव के पास नहीं है। जीवन में कितनी भी प्रतिकूल परिस्थितियाँ क्यों न आ जाएँ, किसी भी मनुष्य को अपना जीवन समाप्त करने की धृष्टता व दुस्साहस नहीं करना चाहिए। 

निराशा और असफलता तो जीवन में आते ही रहते हैं। रात–दिन, जीवन मृत्यु तो नियम है प्रकृति का। मनुष्य कभी-कभी निराशा से वशीभूत होकर ऐसे निर्णय ले लेता है, जिससे होने वाली क्षति अपूरणीय हो सकती है। 

दुर्भर परिस्थितियों में सकारात्मक दृष्टिकोण रखना असंभव सा लगता है। समकालीन स्थितियों में ऐसे ही सकारात्मक शब्दों की आवश्यकता है जो तप्त मन को कुछ शांत कर सकें। आज पूरी मानव जाति ही इस विषम महामारी की चपेट में आ गई है। पूरा विश्व इस विकराल परिस्थिति से जूझ रहा है। इस महामारी के कितने भयंकर परिणाम आये सामने हैं इससे हम सब परिचित हैं। कितने जीवन इसने ग्रस लिए, कितने ही घर उजड़ गए हैं। कितनों ने अपनों को खोया है। कितने बच्चे अनाथ हो गए हैं और तो और कितने ही ऐसे कई प्रकरण भी सुनने में आ रहे है जहाँ माता-पिता ने बच्चों की मृत्यु का असह्य समाचार सुन अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली है। हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार आजकल हर तीसरा आदमी अवसाद से ग्रस्त है और आत्महत्या करने पर मजबूर। उनका दुःख तो केवल वही जान सकते थे। समय ही इसका समाधान कर सकता है। लेकिन फिर भी जीवन है तो सहिष्णुता का चोला धारण तो करना ही होगा और तब आशा की संभावना भी बनी ही रहती है। 

परिस्थितियों को जीतने में ही जीवन की सार्थकता है। सकारात्मक सोच को बढ़ावा देना ज़रूरी है। और कभी-कभी छोटे प्रसंग और छोटी सी कहानी, कविता की दो पंक्तियाँ भी मन मस्तिष्क पर बहुत बड़ा प्रभाव डाल देतीं हैं; हमें दुःखद स्थिति से कुछ पलों के लिए ही सही, उबार लाती हैं। इसीलिए इन परिस्थितियों में ऐसे प्रसंगों का, पंक्तियों का स्मरण नयी ऊर्जा और विश्वास से हमें भर देता है। इस परिप्रेक्ष्य में हरिवंशराय बच्चन जी की कविता की कुछ पंक्तियाँ देखिए —

"मृदु मिट्टी के हैं बने हुए,
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आये हैं,
प्याले टूटा ही करते हैं,
जो सच्चे मधु से जला हुआ,
कब रोता है, चिल्लाता है, 
जो बीत गई, सो बात गई"

परिवर्तन जीवन का नियम है। कोई भी स्थिति स्थायी नहीं है। बदलाव अवश्यंभावी है । रात कितनी भी काली और गहरी क्यों न हो, सूर्योदय के साथ ही उसका अस्तित्व समाप्त होना निश्चित है। आशा ही जीवन है और निराशा ही मृत्यु। समय लग सकता है लेकिन एक दिन हम सब इन दुर्भर स्थितियों से अवश्य निकल जाएँगे। 

जब हम घोर निराशा में डूब जाते हैं, सब मार्ग जब बंद हो जाते हैं, तो एक संभव मार्ग हमेशा खुला रहता है, हममें फिर से नई आशा की किरण जगा सकता है, और वह है किसी ‘और’ का संबल बनना। किसी ‘और’ की सहायता करना। किसी ‘और’ का दुख कम करने की कोशिश करना। एक बार इस मार्ग पर चल कर देखना है, प्रयोगात्मक तौर पर ही सही, कर के देखना होगा। और फिर हम पायेंगे किस प्रकार हमारा दुख हमारी समस्याएँ अपने आप नगण्य होकर धीरे-धीरे अदृश्य हो जाएँगी। हम औरों का नहीं अपना ही भला करेंगे। परहित ही परम धर्म है। यही जीवन का मूल मंत्र है। 

आज चारों ओर भय, आतंक और अनिश्चितता का वातावरण फैला हुआ है। हर जगह मौत तांडव कर रही है। घोर निराशा में हम भटक रहे हैं। आशा पूरी तरह से लुप्त हो गई है। वातावरण भयावह बना हुआ है। ऐसे माहौल में हाल में ही एक घटना की मीडिया रिपोर्ट ने लोगों को रोमांचित कर दिया था। और वह घटना थी कि दिल्ली में एक महिला जो स्वयं कैंसर जैसे दुसाध्य रोग से पीड़ित होकर भी अपने परिवार और दस बारह मित्रों के साथ मिलकर कोरोना के मरीज़ों के लिए एम्बुलेंस की सेवाएँ दे रही थी। धन्य है ऐसे चरित्र, ऐसी पुण्यात्माएँ जो स्वयं दुखों का पहाड़ झेलते हुए भी परहित व परमार्थ का सोचते हैं! ‘सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया’ की भावना से प्रेरित उनकी मनीषा को प्रणाम! ऐसे चरित्र समाज को जीवन का अर्थ समझाते हैं। जीने की प्रेरणा देते है। दूसरों के लिए प्रेरणा के स्रोत बन जाते हैं। जीवन जीने के लिए दिया गया है। मानव जीवन दुर्लभ है। इसका सदुपयोग करने में ही जीवन की सार्थकता छुपी हुई है। ‘मानव सेवा ही माधव सेवा’—इस लक्ष्य को जीवन में धारण कर आगे बढ़ते हुए अपने जीवन के मूल्य को समझने का प्रयत्न करना चाहिए। जीवन अनमोल है। इसे व्यर्थ न गवाएँ और नष्ट न होने दे। जीवन के प्रति यही सच्ची आराधना है। 

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टिप्पणियाँ

मंजू आनंद 2021/08/01 12:08 PM

आपका आलेख जीवन की सकारात्मकता को दर्शाता है मानव सेवा ही मानव धर्म है बहुत सुंदर सटीक आलेख लिखा है बहुत बहुत बधाई

डा.सुनीता जाजोदिया 2021/07/30 03:33 PM

महामारी से त्रस्त मानव जीवन में आशा और सकारात्मकता का संचार करता है यह उपयोगी आलेख। बधाई पद्मावती जी।

Annpurna 2021/07/28 12:58 PM

Bahut sundar nicely written

Ranjani Shankar 2021/07/28 08:55 AM

We are living through overwhelming circumstances. However, understanding that life is a miracle and brings several gifts each moment can lead us out of despair. Readers interested in learning how to transform their lives through Zen Buddhist practices are invited to visit: www.plumvillage.org

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