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तस्वीर

 

“सर! आप हमेशा कहते थे कि एक तस्वीर दिखाएगा, दिखाओ न आज,” क्रिस्टोफर ने आगे आकर डॉ अविनाश से कहा। 

टेक्सास विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग। एशियन स्टडीज़ के अंतरगत यहाँ हिन्दी पढ़ाई जाती थी जिसके छात्र देश विदेश से यहाँ पढ़ने आते थे। अविनाश हिन्दी का प्रोफ़ेसर था। उसने मुस्कुराते हुए अपने बैग से फ़ाइल निकाली और उसमें अपने परिवार की तस्वीरें दिखाने लगा। 

“ये लो। ये हैं मेरे दादा दादीजी। आयु है अस्सी साल। 55 वर्ष से हैपीली मैरिड कपल हैं। जानते हो मैं तुम्हें और एक अचंभा दिखाना चाहता हूँ। ये तस्वीर देख रहे हो ये उस समय की तस्वीर है जब उनका उनका विवाह हुआ था। कैसे दिख रहे है न दोनों?” 

“ये कैसा सम्भव है?” क्रिस्टीना की आँखें आश्चर्य से फैल गईं। वह नीदरलैंड्स से थी। वैसे आश्चर्य सबकी आँखों में आ गया था . . . “हमारा यहाँ ऐसा नहीं होता। इतना लंबा समय पर एक पार्टनर? ये व्यवस्था हमारा देश में नहीं।” 

“हाँ यही तो सुंदरता है इस देश की। भारत! अपने देश पर मुझे गर्व है। यहाँ सम्बन्ध स्वार्थ देखकर नहीं बनाए जाते। समर्पण और प्रतिबद्धता, विश्वास और संयम मेरे देश का गहना है। पारिवारिक सम्बन्धों की सुंदरता आज भी मेरे देश में विद्यमान् है। कितनी भी अड़चने आएँ, मुश्किलें आएँ लेकिन जीवन साथी का साथ उन सभी मुश्किलों को पार करा देता है और रास्ता आसान बन जाता है। भारत ही ऐसा देश है जहाँ सम्बन्धों में मधुरता पारिवारिक व्यवस्था को दृढ़ बनाती है। और मेरा परिवार आपके सामने जीता जागता उदाहरण है।” 

कक्षा में चुप्पी। सब के चेहरों पर अविश्वास। 

“सर दिस वेकेशन हम भारत पर आएगा। सब। आप ले चलेंगे?” अचानक चार्ल्स ने चुप्पी तोड़ी। 

“अवश्य। संस्कृति और सभ्यता का देश आपका स्वागत करता है।” 

सबके चेहरे खिल उठे। बेल बजी पर आज कोई उठ कर जा न पाया। न अविनाश, न वे सब। कोई अतीत में गोते लगा रहा था तो कोई भविष्य की कल्पनाओं में। 

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टिप्पणियाँ

डॉ सुरभि दत्त 2023/09/02 09:16 AM

हिन्दी शिक्षा और भारतीय संस्कृति की शिक्षा के साथ समर्पण और प्रतिबद्धता का सुंदर संदेश

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