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दहशत की रात–5 दिसम्बर 2023

 

एक बार फिर वही मंज़र, वही त्रासदी, वही निरीह बेबस असहाय कातर स्थिति। भय आक्रांत अवसाद से घिरा जनमानस। काल का प्रकोप या प्रकृति का प्रतिशोध? जलमग्न हुआ महानगर! दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य की राजधानी “चेन्नई में मिचौंग की वीभत्सता”। 

नवम्बर दिसम्बर का महीना चेन्नई वासियों के लिए हमेशा भारी पड़ता है क्योंकि यहाँ मानसून की दस्तक उसकी वापसी में इन्हीं महीनों पर ही मिलती है। हर वर्ष दीवाली में भारी वर्षा त्योहार की ऊर्जा पर पानी तो बरसाती है लेकिन इस साल मौसम काफ़ी अनुकूल रहा था। सूखा और सुखद। वहीं नवम्बर का द्वितीय पक्ष-यानी लगभग बीस तारीख़ के बाद मौसम में भारी परिवर्तन आ गया। हर दिन बरसात होती और वो भी कम से कम चार से पाँच घंटे की बरसात—जमकर। वातावरण में काफ़ी आर्द्रता आ गई थी। नदी-नाले जलाशय भरने लगे थे। दलदल और कीचड़ से सनी सड़कों के गड्ढे और दरारें दिन-ब-दिन चौड़ी हो रहीं थीं। और अचानक सोशल मीडिया पर मौसम विभाग की चेतावनी भी सुनाई पड़ने लग गई थी कि आने वाले दिनों में भारी बरसात की आशंका है। बंगाल की खाड़ी में हवा का निम्न दाब पड़ गया है जो भयंकर तूफ़ान में परिवर्तित हो तटीय इलाक़ों में 5 दिसम्बर को भारी बरसात की सम्भावना लेकर आएगा क्योंकि इसका स्खलन चेन्नई की धरती पर होगा। और शायद उसके आसार पहले से ही दृष्टिगोचर हो रहे थे। लेकिन शनिवार की सुबह यानी 3दिसम्बर को सूर्यदेव अचानक अपनी नाराज़गी भूल चेन्नईवासियों पर अपनी कृपा बरसाने आ गए। हल्की गुनगुनी धूप और उस पर दो दिन, शनि-रवि का अवकाश—कैसे घर की चारदीवारी में बँध कर क़ैद रहें? साफ़ आकाश को देखकर घुमक्कड़ी पाँवों में खुजली होने लगी और मौसम विभाग की चेतावनी को नज़र-अंदाज़ करते हुए हम भी औरों की तरह निकल पड़े गाड़ी में बैठकर पांडिचेरी और तिरुवन्नामलई की लघुयात्रा पर। 

दरअसल तिरुवन्नामलई जाने के पीछे कारण था। हर वर्ष यहाँ कार्तिक मास के कृतिका नक्षत्र पर महादीपोत्सव पर्व मनाया जाता है जिसे कमोबेश हम हर वर्ष जाकर देख आते थे पर इस साल तूफ़ान के डर से न जाने का मन बना लिया था पर शनि के सूर्यदेव ने सब डर भगा दिए और चल पड़े हम भी ईस्ट कोस्ट रोड पर समुद्र के किनारे-किनारे, नज़ारों का आनंद लेने पांडिचेरी की ओर। वैसे से तो यह मार्ग, राजमार्ग से पचास कि.मी. अतिरिक्त सफ़र का मार्ग है लेकिन जब सफ़र ही गम्य जितना सुहाना हो तो दूरी कहाँ खलती है? निश्चिंत होकर चल पड़े। देखा सड़कों पर गाड़ियाँ सरपट दौड़ रहीं थीं। तब समझ आया कि छुट्टी की ख़ुमारी केवल हम पर ही नहीं थी। पूरा सफ़र—समुद्र का साथ . . . जहाँ तक दृष्टि जाए अनंत नीला विस्तार। असीमता मन को शांत कर देती है। कहा जाता है कि जहाँ सीमाओं का बँधन न हो, वहाँ मन समाधिस्थ हो जाता है। यही देखा विशालकाय पर्वत की चोटियों पर—हिमालय की वादियों में। शायद इसीलिए कई तपस्वियों ने या तो समुद्र तट को अपनी तपस्थली चुना या पर्वत की चोटियों को। अनुमान है केवल—आधार रहित। 

पांडिचेरी आते-आते तीन बज गए। दरअसल यहाँ समुद्र तट की सड़क शनि-रवि को केवल सैलानियों के लिए ही छोड़ दी जाती है और गाड़ियों का यातायात बाधित कर दिया जाता है। तो समय व्यर्थ किए बिना पांडिचेरी को वापसी के लिए छोड़ निकल पड़े तिरुवन्नामलई की ओर। 

दक्षिण में पंचभूतों को आधार बनाकर शिव मंदिर पाए जाते है जिसमें तिरुवन्नामलई अग्नि लिंग माना गया है। अग्नि संभूत इस मणिपूरक स्थल में कार्तिक मास, जो दक्षिणवासियों के लिए दीवाली के अगले दिन से लगता है, इस मास के कृत्तिका नक्षत्र में इस छोटी सी पहाड़ी पर जिसकी ऊँचाई समुद्र तल से लगभग 2668 फ़ीट की है, वहाँ 300 मीटर की बाती और 3500 किलोग्राम घी डालकर पूर्णिमा की संध्या को महा दीप प्रज्वलित किया जाता जिसका दर्शन शहर से पैंतीस कि.मी. की दूरी से भी किया जा सकता है। आँधी-तूफ़ान से भिड़ता यह महादीप दस दिन तक लगातार भक्तों को दर्शन देता है। इन दस दिनों में इस पहाड़ी की परिक्रमा जिसका रास्ता लगभग सोलह कि.मी. का पड़ता है, विशेष फलदायी माना जाता है। यह उत्सव दस दिनों तक चलता है। इन दस दिनों में कभी भी आकर आप महादीप के दर्शन कर सकते हैं। तिरुवन्नामलई पहुँचते सात बज गए। दीप दर्शन तो हो गया था। हल्की बूँदा-बाँदी शुरू हो गई थी। चेन्नई से समाचार मिल रहा था कि मूसलाधार बारिश शुरू हो गई है। तनाव बढ़ना भी शुरू हो गया था }

अगले दिन सुबह अल्पाहार के बाद मंदिर में दर्शन को निकले। योजना थी कि परिक्रमा करेंगे गिरि की, लेकिन बारिश ने धावा बोल दिया। गाड़ी में ही परिक्रमा की और दोपहर होते-होते निकल चले वापसी पर क्योंकि चेन्नई की ख़बर ठीक नहीं थी। वापसी में राजमार्ग चुना पर बारिश ने साथ न छोड़ा। रात होने से पहले चेन्नई पहुँच गए। बरसात हो रही थी, सड़कें गीली थी और अधिक परेशानी तो नहीं हुई सकुशल घर पहुँचने में। 

सुबह के चार बजे नींद खुली हवा के थपेड़ों से। खिड़कियाँ दरवाज़े डगडगा रहे थे। आँगन में पेड़ों के साये बुरी तरह से झूल रहे थे। बाहर लगे केनोपी पर पेड़ों की टहनियों का शोर दहशत भर रहा था। बारिश की बूँदें ऐसे गिर रहीं थीं जैसे पत्थर गिर रहे हों। हवा का भँवर थरथराता हुआ सब कुछ उड़ा दे रहा था। बौछार की मार से लग रहा था कि खिड़कियों के काँच आज अवश्य टूट जाएँगे। अचानक बिजली चली गई। ठीक ही था। इतनी हवा के चलते बिजली के तारों का टूट जाने का भय लगा रहता है। फोन में थोड़ा बहुत चार्ज था। नेटवर्क भी आ रहा था। बाहर वर्षा और हवा का अजीब सा शोर था। एक घंटा हुआ। सूर्योदय हुआ। हल्की रोशनी आई पर बादलों का कालापन पूरे वातावरण को ढके रहा। 

बारिश अपने पूरे ज़ोर पर थी। हवा का बवंडर उठ रहा था। तभी फोन पर मैसेज आया कि पास के एक जलाशय के किनारे चरमरा गए है और पानी किनारा तोड़ कर पूरे वेग से ढलान की ओर सड़कों में भर रहा है। मोहल्लों में पानी आने लगा। दस बजते-बजते निकट के और दो सरोवरों ने सीमाएँ लाँघ दीं और पानी उफान मारता हुआ पूरे भूभाग को अपने आग़ोश में लेने लगा। ऊपर मूसलाधार बारिश कोढ़ में खाज का काम कर रही थी। लगभग पूरे चेन्नई का यही हाल था। हर जलाशय, ताल, सरोवर उफन रहा था। दरअसल पिछले कई दिनों की लगातार बरसात ने भूमि में जल के स्तर को काफ़ी हद तक बढ़ा दिया था। सभी सरोवरों, तालाबों, जलाशयों में जल ख़तरे के निशान से ऊपर बह रहा था और गए तीस घंटे की मूसलाधार वर्षा ने सब सीमाएँ तोड़ दीं। 

पानी का स्तर बढ़ रहा था। दोपहर होते-होते पानी तीन फ़ीट पार कर गया था सड़कों पर। निचले तल के लोगों के घरों में पानी धीरे-धीरे प्रवेश कर रहा था। शाम को तूफ़ान की परिणति थी चेन्नई की धरती पर। न बारिश रुकी न चक्रवाती हवा। पानी का स्तर बढ़ता जा रहा था। पाँच बजते-बजते पानी चार फ़ीट पार कर गया और सड़कें मोहल्ले पानी में डूब गए। घरों में पानी घुस गया। लोग पहली मंज़िल पर भागने लगे। एक समय हुआ करता था जब चेन्नई में बहुत कम बरसात हुआ करती थी—नाम मात्र की। अब जब से सुनामी आई, यहाँ के ऋतु विज्ञान का समीकरण ऐसा बदला कि जुलाई से ही बरसात आरंभ हो जाती है और दिसम्बर तक आते-आते ऐसा ही क़हर ढाती है। पानी का बहाव तेज़ी से फैल रहा था। 

शाम के सात बजे तक सड़कें, व्यापारिक संस्थान, अस्पताल, विमानाश्रय, व्यावसायिक प्रतिष्ठान सब पानी में डूब गए। पूरा महानगर एक छोटा समुद्र सादृश्य भान करा रहा था। सात बजे बारिश रुकी, हवा भी थककर थम गई, तब तक चेन्नई डूब चुका था। पूरी नगरी जलमग्न थी। शायद ही कोई मोहल्ला था जहाँ पानी न पहुँचा हो। राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया सुबह से ही सक्रिय थी पर राहत और बचाव में वर्षा रोड़ा डाल रही थी। पानी में अब नावें चलने लगीं। लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया जा रहा था। गहन अँधेरा। मौत का सन्नाटा। चारों ओर पानी, और पानी का स्तर अब भी मद्धिम गति से चढ़ रहा था। 2015 में यही मंज़र आया था। वह त्रासदी विस्मृत नहीं हुई थी, धूमिल अवश्य हो गई थी। तब सब अप्रत्याशित हुआ था। रातों-रात सेम्बराबाकम रिज़वायर ने सीमा लाँघीं, अडयार नदी, जो कभी बरसाती नाले से अधिक कुछ न थी, उसमें पानी इतना भरा कि सीमा तोड़ कर बाहर आया और आधी रात को उस इलाक़े के घरों में पहली मंज़िल तक पानी भरा—सोते हुए लोगों को जलसमाधि मिल गई। महानगर का नामी अस्पताल जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त है, बताया गया था कि आइ सी यू में 35 मरीज़ जलमग्न हो गए थे। पानी ने समय ही नहीं दिया था। 2015 के तूफ़ान का नाम था—‘वरदा’। उसके बाद प्रशासन चेता, कई जल निकासी परियोजनाओं को रुपांतरित किया गया। हज़ारों करोड़ रुपयों की लागत से इन योजनाओं को कार्यांवित भी किया गया। नई सरकार बनी, इसी आश्वस्ति से कि भविष्य में कभी इस तरह के हादसे की पुनरावृत्ति न होगी। 

 रात भयानक हो रही थी। पूरी चेन्नई में अंधकार। धड़कनें थम रहीं थीं। सभी भयभीत थे कि कहीं पानी का स्तर इतना न बढ़ जाए कि सँभलना मुश्किल हो। अब तो फोन में नेटवर्क की डंडियाँ भी विलुप्त हो गईं थीं। अपनों से सम्पर्क टूट गया था। दूसरे राज्यों में बैठे टीवी चैनलों पर यहाँ की वीभत्सता देख वे अपना रक्तचाप बढ़ा रहे थे। दिए की टिमटिमाती रोशनी में खाना पकाया पर खाया न गया। ग्यारह बजे तक पानी का बढ़‌ना रुका। हमारे घर के आगे पाँच सीढ़ियाँ हैं। साढ़े चार सीढ़ियाँ डूबीं, केवल दस इंच का फ़ासला, पर पानी रुक गया। फिर न बढ़ा। 

अगली सुबह सूर्यदेव ने दर्शन दिए। आख़िर लम्बी छुट्टी पर जो निकल गए थे। बाहर मंज़र देखने लायक़ था। बड़ी–बड़ी कारें पानी में डूबती-डोलती तैर रहीं थीं। 

चारों ओर पानी, पानी, और पानी—पर पीने की एक बूँद नहीं। कैसी विडम्बना। राहत बचाव टीमें घर-घर पानी पहुँचा रहीं थीं। लोग छतों पर बैठे हेलिकॉप्टर का इंतज़ार कर रहे थे। न दूध, न पानी, न खाना। अगले बहत्तर घंटे हमारी सड़कों पर पानी भरा रहा, यातायात बाधित रहा, न बिजली, न नेटवर्क। व्यापार और वाणिज्य का गढ़, सूचना प्रौद्योगिकी में आसमान की ऊँचाइयों को छूने वाला महानगर, विज्ञान और तकनीकी में चाँद की दूरी मापने वाला नगर, स्वास्थ्य पर्यटन की मिसाल, तमिलनाडु की आन-बान-शान, राजधानी घंटों पानी में डूबी रही। कुछ स्थानों पर यह दुःस्थिति बहत्तर घंटों तक भी रही। तीन दिन लगे पानी को पम्पों से खींच कर निकालने में। तीन दिन लगे बिजली आने में। तीन दिन लगे नेटवर्क को पुनर्स्थापित करने में। 

माना प्राकृतिक आपदाओं के आगे हम निरीह हैं, असहाय हैं, पर चेन्नई जैसा महानगर क्या इतने घंटे पानी में डूबा रह सकता था? बाढ़ जल निकासी प्रणालियाँ क्यों असफल रहीं? यह प्रश्न तो सबके चेहरों पर साफ़ दिखाई दे रहा होगा। दोषारोपण सहज है और सरल भी, अपराध-बोध से मुक्त होने के लिए। लेकिन क्या हमें यह भी स्मरण है कि प्रकृति हमारी जननी है, हमसे पोषित भी होती है और हमें पुष्ट भी करती है? तो पर्यावरण से हमारा अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है न? जिस प्रकार ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ कहा जाता है, उसी प्रकार यही उक्ति पर्यावरण पर भी लागू होती है। 

अब इतना कुछ होने के बाद गंभीर चिंतन का विषय यह है कि दक्षिण चेन्नई में बंगाल की खाड़ी के निकट विशाल भूभाग में वरीय आर्द्र भूमि है जो अपरिमित बाढ़ के पानी को सोखने में विशेष रूप से कारगर है। यह कच्छ भूमि कुछ दशकों के पहले लगभग 80 वर्ग कि.मी. के विशाल भू-भाग में फैली हुई थी और आज सिमटकर एक तिहाई बन कर रह गई है। कारण? शहरीकरण की आड़ में ग़ैर क़ानूनी ढंग से भूमि अतिक्रमण में सरकारी और ग़ैर सरकारी सभी संगठनों ने बहती गंगा में हाथ धोए हैं। इस प्राकृतिक वरदान को श्राप में बदल देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। नतीजा आज स्पष्ट है। प्रकृति से खिलवाड़ आपदाओं को जन्म देता रहेगा। और जब प्रकृति प्रतिशोध लेगी तो मानव की हस्ती क्या है? कितना समय लगेगा उसके अस्तित्व को मिटने में? आज एक बार फिर कितनी जानें चली गईं, कितने निर्माणाधीन भवन भूगर्भ में समा गए।, कितनी सम्पत्ति नष्ट हो गई, कितना व्यापार ठप्प हो गया। महामारी से अभी पूरी तरह से उभरे नहीं, फिर एक बार कमर तोड़ चोट। कौन ज़िम्मेदार है? केवल प्रशासन? महानगर की ख़ामोश चीखें कौन सुनेगा? कौन राहत देगा? कौन आश्वासन देगा कि ऐसा हादसा दोबारा न होगा? प्रश्न अनेक है . . . और समाधान? 

दहशत की रात–5 दिसम्बर 2023

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टिप्पणियाँ

डॉ वी गीता मालिनी 2023/12/17 11:04 PM

बेहतरीन वर्णन। जितना अनुभव किया उतना ही मार्मिक और यथार्थ से जुड़ा हुआ। सही कहा आपने प्रकृति से खिलवाड़ का अंजाम दहशत है। 2004 की सुनामी, 2015 की चेन्नई बाढ़ और अब 2023 की मिछजाम से हुई बरसात की कहर को कोई भुला नहीं सकता जिसके एक-एक क्षण की अभिव्यक्ति आपने सटीक शब्दों से किया है। बस यहीं कामना है कि सब सुरक्षित हो। आनेवाले प्राकृतिक विपदाओं को हम रोक तो नहीं सकते किंतु उससे बचने के उपाय और समय से समाधान कर बड़ी संकट टाल सकते है। बहुत बहुत धन्यवाद मैम

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