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कुत्ता ध्यानासन

(व्यंग्य संग्रह - अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो से साभार)

 

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के प्रचार पोस्टर में विभिन्न योग मुद्रायें देखकर इस सरकारी मोहल्ले के श्वानों के कान खडे़ हो गये थे। उन्हें शायद ये महसूस हुआ कि उनका पेटेंट कोई और छीन कर ले जा रहा है। झट कुकरहाव प्रारम्भ हो गया। आठ दस श्वान इकट्टठे हो गये थे। कालू, लालू, भूरा, टायगर, शेरा, कनकटा, नकटा, कुबड़ा, लंगड़ा न जाने कितने तरह के नाम व करतूत वाले थे। इन्हें भी आजकल तुरंत ही किसी भी मुद्दे पर मीटिंग करके समस्या का हल ढूँढ़ने का चस्का लग गया था! इनमें यह परिवर्तन सरकारी अधिकारियों से ही आया था। वहाँ भी हर समस्या का हल मीटिंग में छिपा रहता है। कहीं आतंकवादी घटना हो जायें, बाढ़ से लोग घिर जायें, बस नदी में गिर जाये, कुछ भी हो जाये तुरंत ही एक बैठक ज़रूर हो जाती है और ताज्जुब की बात यह है कि इसमें हल भी निकल आता है। उसके बाद अगली घटना होने तक बैठक मुल्तवी हो जाती है! हाँ, महत्वपूर्ण बैठक हमेशा घटना घटने के बाद ही होती है, पहले नहीं!

श्वानों ने इस विशेष बैठक में तय किया कि ध्यान और योग पर सर्वप्रथम उनका ही पेटेंट का अधिकार है किसी अन्य जानवर या मनुष्य का कभी नहीं हो सकता है! यह बात कालू ने बात को शुरू करते हुये कही। 

भूरे ने अनुसर्मथन किया कि इस बात के पीछे दम है। बताओ कि मनुष्य क्या हमारे समान सोकर उठते साथ ही कभी योग करता था?

इस पर शेरा ने भूरे को उसके अपडेट न रहने पर टोका, कि योग नहीं योगा कहो! 

भूरे ने ग़ल्ती सुधार की और ओह सॉरी कह कहा, योगा करता है क्या मनुष्य? नहीं, इसको इसके पहले पचास नौटंकी चाहिये। तब जाकर यह योगा शुरू करता है। 

जैसे? टायगर ने प्रश्नवाचक निगाहों से भूरे की ओर देखते कहा, प्रकाश डालो? उसे शायद मनुष्य की अति आलोचना पसंद नहीं आयी थी। 

भूरा मज़ाक के मूड में आ गया। प्रकाश मैं क्या डालूँगा वो तो सूरज देवता डालेंगे। वे तो सुबह आठ बजे से ही तपना शुरू भी हो गये हैं। मनुष्य तो सोकर उठेगा तो पहले प्रेशर बनायेगा कोई चाय से, कोई सिगरेट धौंक कर तो कोई गुड़ाखु से जित्ते थोबडे़ हैं, उत्ते पिछवाडे़ और उत्ते उनके धतकर्म हैं! फिर जाकर वह दो घंटे बाद योग कर पाता है। शेरा ने फिर भूरा की ओर आँखें तरेरी तो उसने कहा सॉरी मेरा मतलब योगा से था। और यहाँ अपन लोग उठे और सबसे पहला काम योगा की प्रारंभिक कसरत कर डालनी है। ये एक बार सुबह ही नहीं जित्ती बार हम सोकर उठते हैं उत्ती बार इसे दोहराते हैं। बस तो अभी भी कोई संशय है, इसके पेटेंट के असली हक़दार हम ही हैं और कोई दूसरा नहीं! योगा की ये हमारी मिशनरी पोज़ीशन है। आगे की टाँगें आगे को फैलायीं फिर पीछे की पीछे की ओर, और उनको जित्ता स्ट्रेच कर सकते हैं कर लिया। मुंडी यहाँ-वहाँ घुमायी और बस काम पर चल दिये। 

नकटे ने अब कहा कि भूरा सही कह रहा है, ये मनुष्य हर बात में श्रेय लेने अग्रणी हो जाता है। इसने मयूर को देखकर मयूरासन नामक आसन बना लिया। मयूराक्षी नाम रख लिया, मीनाक्षी नाम रख लिया। जबकि इसका सही हक़दार तो वह जन्तु हैं जिनके कारण वह ऐसा नाम रख पाये। 

लंगडे़ ने नकटे की बात को आगे बढ़ाया, हिरणी सी चाल! यदि हिरणी लंगड़ा कर चलने लगती तो क्या ऐसी अलंकारिक भाषा का ये प्रयोग कर पाते हरगिज़ नहीं! 

मनुष्य सहज योग हमसे सीखे, ध्यान हमसे सीखे, ध्यान का मोटे तौर पर मतलब क्या है? बेफ़िक्री! और उसके अलावा क्या है? लंगडे़ ने अपनी विद्वता का जैसे परिचय दे दिया था। इसके बाद वह अपनी पीठ थपथपाने की तर्ज़ पर अपनी पूँछ पर मुँह मारने लगा था। 

कनकटा बहुत देर से बोलना चाह रहा था। बोला कि हमें एक हड्डी भर मिल जाये फिर हम हड्डीयासन की मुद्रा में आ जाते हैं! दीन दुनिया सबको भूल कर बस उसके रसास्वादन का आनंद लेते हैं। हमारे हड्डीचूसासन ध्यान योग से बड़ा कोई दूसरा योग दुनिया में नहीं है! मन आत्मा सब एक ही बिन्दु पर पूर्ण केन्द्रित। चोर मूर्ख होते हैं यदि वे इस समय चोरी करें तो हम उन्हें डिस्टर्ब नहीं करेंगे! ये कुत्ता योनि बहुत ही भाग्यवानों को मिलती है क्योंकि उसमें हड्डीचूसासन का जो मज़ा है और किसी योनि मेंनहीं है!

टायगर बोला सही कहा मनुष्यों की ये आम शिकायत है कि उनका ध्यान भंग हो जाता है! होगा ही आपका ध्यान क्यों केन्द्रित नहीं होता? कभी सोचा है? क्योंकि आप उस चीज़ को जीते नहीं जिसे करना चाह रहे हो! हमें देखो हड्डी मिली तो बस उसी में लग गये। उस समय का हमारा पूरा जीवन उसी में सिमट आता है! जब तक उसको टीन की तरह पीट नहीं लिया। खा पीकर हज़म नहीं कर लिया, तब तक दूसरा कोई काम हमारे भेजे में आता ही नहीं। हम वर्तमान में जीते हैं! इसलिये मनुष्य की तरह तनाव में नहीं रहते हैं। 

अभी तक चुप रहा कुबड़ा अब बोला। हमारा एक ध्यानासन है इसे लोग शवासन समझते होंगे। हम तो राजमार्ग के बीचोंबीच में ऐसे ध्यानमुद्रा में आराम करते हैं कि हमारे से सटकर रोड रोलर भी निकल जाये तो हमारी पूँछ तक को इसकी हवा नहीं लगती! हर पल को एन्ज्वाय करना कोई हम श्वानों से सीखे। इस पर सभी ने समवेत भौंक के साथ कहा कि कुबडे़ ने बात तो पते की की है। 

हमारा एक पूँछासन भी होता है, नकटे ने कहा। जिन्हें हम पंसद करते सच्चा प्यार करते हैं। उनके सामने पूँछ ऐसी लहराते हैं कि इस समय भी हम अपने प्रिय के प्यार व स्नेह में ऐसे खो जाते हैं जैसे किसी ध्यान में हों। इससे शरीर के पिछले हिस्से का व्यायाम बोनस में हो जाता है। 

जब हम ख़ुश होते हैं तो जीभ निकाल कर सिर को ऐसा योग मुद्रा में हिलाते हैं कि यह भी एक विशेष ध्यानयोग ही होता है! ये छोटी-छोटी लेकिन बड़ी बातें आम मनुष्य की कुत्ती व छोटी सोच के पल्ले नहीं पड़ सकती! जिसकी अच्छी समझ है ध्यान में वही बूझ पायेगा। 

हमारे भौंकने को लोग समझते ही नहीं हैं! दरअसल एक बार भौंकने से सारी मांसपेशियों का व्यायाम हो जाता है। हम इसलिये अनेक मर्तबा अकारण ही ज़रा सी बात पर भौंकने लगते हैं। अब ये सब अगर मनुष्य समझने लगें तो वे मान जायेंगे कि योग और ध्यान में पेटेंट पर पहला अधिकार श्वानों के अलावा किसी और का नहीं है। 

इसके बाद सभी को एक-एक हड्डी का टुकड़ा पकड़ा कर हड्डीचूसासन ध्यान करवाया गया। बैठक इस उम्मीद के साथ मुल्तवी कर दी गयी कि इंसान अपनी कुत्ती सोच का त्याग कर इंसानियत का नमूना पेश करे व योगा का पेटेंट श्वानों के खाते में डालने का नेक काम करे!

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