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अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो

कल्पना करें एक ऐसे लेखक की जिसे कुत्ता पालने का लगभग पच्चीस सालों का लम्बा अनुभव हो। कितनी कहानियाँ होंगी उसके पास। और यदि वह लेखक व्यंग्यकार हो तब तो कहना ही क्या! हमारे सुदर्शन जी का यही क़िस्सा है। सुदर्शन जी की व्यंग्य में एक जगह है। वे इतने सालों से कुत्ता पालते रहे हैं और इससे बचे समय में व्यंग्य भी लिखते रहे हैं। कुत्ते को इन्होंने इतने क़रीब से, इतनी तरह से और इतने रूपों में देखा तथा समझा है कि इस बात की संभावना हमेशा थी कि वे एक दिन कुत्तों पर कोई किताब लेकर प्रस्तुत हो जायें। जो आपका हमारा भय था, वही हुआ है। व्यंग्यकार कुत्ते का तो कुछ बिगाड़ नहीं सकता पर वह कुत्ते पर व्यंग्य लिखकर अपने ’भोगे हुये यथार्थ’ को सामने ला सकता है। इतने सालों जो सँजोया है।

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  1. आरोहण
  2. अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो

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