नख शिख वर्णन भ्रष्टाचार का
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी सुदर्शन कुमार सोनी15 Jan 2025 (अंक: 269, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
प्रचलित भाषा में इसे रिश्वत करप्शन या घूस लेना कहते हैं। सुशिक्षित जन इसे करप्शन तो कई इसे बहुधा टेबल के नीचे से ली जाने पर भी ऊपरी कमाई कहते हैं! कोई खुरचन, सुविधा शुल्क, तो कोई विटामिन, सेवा के बदले मेवा, तो कई इसे इनाम मानते हैं। इसके जितने पयार्यवाची अन्य किसी शब्द के नहीं हैं।
कई इसे नजराना, शुक्राना या मेहनताना तक कहते हैं। इसे लाभांश या बोनस भी कहा जाता है। पहले अशर्फ़ियाँ या मोहरें तो अब नगद नारायण या सेवाओं के रूप में स्वीकार किया जाता है। झारखंड में बीस करोड़ की नगदी करप्शन रूपी रथ के नवीन सारथी सीए के यहाँ निकली थी। अभी तो भोजपाल नगरी में कार में पकड़ी करोड़ों की नगदी व 52 किलो सोना छाया हुआ है। इससे बड़ी खेप पकड़ने तक का ही इसका अस्तित्व है।
इसका इतिहास बहुत प्राचीन है। इसके रूप-रंग व ढंग अलग-अलग हो सकते हैं पर मूल स्वरूप एक ही है। मुग़ल काल में भी यह मौजूद था। यह अँग्रेज़ों के काल में बहुत तेज़ी से बढ़ा। पर अमर बेल की तरह तो यह काले अँग्रेज़ों का राज होते ही हो गई। अब तो यह बेशर्म व गाजर घास को भी मात कर रहा है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक कुछेक स्थानों पर बेशर्म व गाजर घास के दर्शन न हो पाएँ, लेकिन यह बेशर्मी से दर्शनीय है। यह बहुरूपिया है। वक़्त व ज़रूरत के हिसाब से रूप बदलता रहता हैं। किसी सुन्दरी के रूप के मायाजाल के माध्यम से भी इसे अंजाम दिया जा सकता है। घूस को पाप समझने वाले हुस्न की घूस के सामने अविलंब सरेंडर कर देते हैं! राजनेता की दो कौडी़ की पेंटिंग उद्योगपति करोड़ों में ख़रीद लेता है। वह केसीनो में लाखों करोड़ों आसानी से नेता अधिकारी के लिए हार जाता है।
एक करप्ट अपने से ज़्यादा करप्ट को करप्ट कहते वक़्त अपने को पाक साफ़ मानता है! हमारे यहाँ दो श्रेणियाँ भ्रष्ट व अपने को ईमानदार कहने वालों की हैं, लेकिन दरअसल इन अभागों (हाँ ये अपने चारों ओर जम के कमाई कर रहे लोगों को देखकर ऐसा ही अनुभव करते हैं) को मौक़ा नहीं मिल पाया नहीं वे ऐसे चौके-छक्के लगाते कि सारे रिकार्ड टूट सबके छक्के छूट जाते। अब तो कई दो श्रेणियाँ—एक भ्रष्ट और दूसरे अतिभ्रष्ट—की ही मानते हैं! लेने व देने वाला सामने वाले का लिंग, जाति, धर्म, प्रांत, भाषा, सम्प्रदाय कभी नहीं देखता। अतः इससे बड़ा धर्म निरपेक्ष कोई दूसरा नहीं।
इसने आम आदमी को ऐसा बेबस कर दिया है कि वह लेन-देन के शार्ट-कट को ईमानदारी के राजमार्ग से ज़्यादा सही मानने लगा है। इसलिए मध्यस्थ पनप गए। सरकारें बडे़-बडे़ वादों के साथ आयीं और चली गई। कोई आज तक ज़मीन की नपती, आरटीओ का लायसेंस, राशन कार्ड बिना लेन-देन के बनने की कोई माकूल व्यवस्था नहीं कर पाया।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
60 साल का नौजवान
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | समीक्षा तैलंगरामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…
(ब)जट : यमला पगला दीवाना
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | अमित शर्माप्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- एनजीओ का शौक़
- अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद प्रशिक्षण व शोध केन्द्र
- अगले जनम हमें मिडिल क्लास न कीजो
- अन्य क्षेत्रों के खिलाड़ियों के गोल्ड मेडल
- असहिष्णु कुत्ता
- आप और मैं एक ही नाव पर सवार हैं क्या!
- आम आदमी सेलेब्रिटी से क्यों नहीं सीखता!
- आर्दश आचार संहिता
- उदारीकरण के दौर का कुत्ता
- एक अदद नाले के अधिकार क्षेत्र का विमर्श’
- एक रेल की दशा ही सारे मानव विकास सूचकांको को दिशा देती है
- कअमेरिका से भारत को दीवाली गिफ़्ट
- कुत्ता ध्यानासन
- कुत्ता साहब
- कोरोना मीटर व अमीरी मीटर
- कोरोना से ज़्यादा घातक– घर-घर छाप डॉक्टर
- चाबी वाले खिलौने
- जनता कर्फ़्यू व श्वान समुदाय
- जियो व जीने दो व कुत्ता
- जीवी और जीवी
- जेनरेशन गैप इन कुत्तापालन
- टिंडा की मक्खी
- दुख में सुखी रहने वाले!
- धैर्य की पाठशाला
- नख शिख वर्णन भ्रष्टाचार का
- नयी ’कोरोनाखड़ी’
- नये अस्पताल का नामकरण
- परोपकार में सेंध
- बेचारे ये कुत्ते घुमाने वाले
- भगवान इंसान के क्लासिक फर्मे को हाईटेक कब बनायेंगे?
- भोपाल का क्या है!
- भ्रष्टाचार व गज की तुलना
- मल्टीप्लेक्स और लुप्तप्रायः होता राष्ट्रीय चरित्र
- मार के आगे पति भी भागते हैं!
- मुर्गा रिटर्न्स
- युद्ध तुरंत बंद कीजो: श्वान समुदाय की पुतिन से अपील
- ये नौकरी देने वाला एटीएम कब आएगा!
- ये भी अंततः गौरवान्वित हुए!
- विज्ञापनर
- विदेश जाने पर कोहराम
- विवाद की जड़ दूसरी शादी है
- विश्व बैंक की रिपोर्ट व एक भिखारी से संवाद
- शर्म का शर्मसार होना!
- श्वान इंसान की पहचान
- श्वान कुनबे का लॉक-डाउन को कोटिशः धन्यवाद
- संपन्नता की असमानता
- साम्प्रदायिक सद्भाव इनसे सीखें!
- सारे पते अस्पताल होकर जाते हैं!
- साहब के कुत्ते का तनाव
- सूअर दिल इंसान से गंगाधर की एक अर्ज
- सेवानिवृत्ति व रिटायरमेंट
- हाथियों का विरोध ज्ञापन
- हैरत इंडियन
- क़िला फ़तह आज भी करते हैं लोग!
आत्मकथा
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 1 : जन्म
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 2 : बचपन
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 3 : पतित्व
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 4 : हाईस्कूल में
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 5 : दुखद प्रसंग
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 6 : चोरी और प्रायश्चित
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं