एक अदद नाले के अधिकार क्षेत्र का विमर्श’
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी सुदर्शन कुमार सोनी23 Feb 2019
तिवारी जी साल भर पहले ही राजधानी की इस सरकारी कॉलोनी में ज़िले से बदली पर आये थे। काफ़ी मशक्कत के बाद उन्हें यह आवास आवंटित हो पाया था। वे अधिकारियों की इस ’मोस्ट वांटेड’ कालोनी में आकर बडे़ प्रसन्न थे!
लेकिन एक जटिल समस्या ने उनके प्रसन्नता के गुब्बारे की हवा निकाल दी थी। आवंटित आवास की सीवर लाईन में अवरोध होने से गंदा पानी चाहे जब टॉयलेट में ओवरफ़्लो हो जाता था। समस्या की जड़ में पहुँचने में ही उन्हे हफ़्ता लग गया था। उन्होंने इस समस्या से निजात पाने नगर निगम को फोन किया। वहाँ से नगर निगम में आपका स्वागत है की मधुर आवाज़ आयी, और आगे “कि कहिये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ”? तिवारी जी अभिभूत हो गये इतना आतिथ्य भाव सुन कर।
“नहीं सेवा की बात नहीं है? थोडी़ सी समस्या है। मैं तिवारी बोल रहा हूँ, कुछ दिन पहले ही यहाँ आया हूँ; उद्योग विभाग में उप संचालक हूँ। मेरे मकान के टॉयलेट में चाहे जब पानी अवरुद्ध हो जाता है? बड़ी असमंजस की स्थिति बन रही है?”
“मैं एक नम्बर ’बनर्जी’ का दे रहा हूँ वहाँ आप बात कर लें!” वहाँ से कहा गया। तिवारी जी ने बनर्जी को तुरंत फोन लगाया लेकिन फोन बंद मिला। दूसरे दिन बात हुई तो बनर्जी ने कहा कि यह काम मैं नहीं ’चटर्जी’ देखते हैं! उनसे बात कर लीजिये?
चटर्जी को तिवारी ने फोन लगाया तो उसने कहा कि कल शाम के ही एक आदेश से यह काम मुखर्जी देखने लगे हैं! मुखर्जी का नम्बर लेकर उन्होंने उससे बात की तो वह बोला कि मौका मुआयना करने एक कर्मचारी मजूमदारआयेगा। उससे बात कर लेना सब यहाँ काम के बोझ तले दबे हैं।
मजूमदार से बड़ी मशक्कत के बाद तीसरे दिन बात हो पायी। उसने व्यस्तता के कारण परसों आने कहा। वैसे उनके चरण कमल परसों के परसों पडे़। मौका मुआयना कर उसने अपना निर्णय किसी न्यायधीश की तरह सुना दिया कि नाला रहवासियों द्वारा कचरा फेंके जाने से चोक होने से समस्या उत्पन्न हुई है? लेकिन यह नाला नगर निगम का न होकर ’पीडब्ल्यूडी’ का है आपको उन्हीं से बात करना चाहिये सर, हमारा होता तो हम कब का सफाई कर देते, अपनी ज़िम्मेदारी से साफ़ बच निकलते हुये वह बोला और अपनी मोटर सायकल पर बैठ कर फुर्र हो गया।
तिवारी जी परेशान हैरान, वहाँ घर में कुहराम के कारण जीना हराम और यहाँ एक दूसरे पर टालम टोली।
तिवारी जी ने अब पीडब्लयूडी से बात की तो वहाँ से तपाक से कहा गया कि यह तो नगर निगम का ही काम है। हर साल वही करते हैं! पिछले साल भी किया था। उसके पिछले भी किया था। कभी आपने सुना है कि पीडब्लयूडी का भी कोई नाला होता है साला! नगर निगम के अंडर में एक पीएचई विभाग काम करता है, उसका काम है इस नाले की सफाई करना उसने जैसे किसी रहस्य को उजागर करते हुये कहा।
तिवारी जी ने कहा कि पीएचई नगर निगम के अंडर है मतलब अंदर हो या बाहर उन्हें तो काम से मतलब है।
“पीएचई में मित्रा जी से बात कर लीजिये,” वहाँ से रूखे स्वर में बोला गया।
तिवारी फिर परेशान ’मित्रा जी’ को फोन लगाया तो उन्होंने फ़रमाया कि वे तो जलकार्य विभाग का काम देखते हैं। यह तो नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग का काम है, नालों से स्वास्थ्य का गहरा रिश्ता है! नगर निगम में खन्ना जी से बात कर लीजिये।
तिवारी ने खन्ना से बात की तो उसने कहा कि आर एस या एस एस किस खन्ना से बात करना है?
तिवारी ने कहा राम संजीवन?
तो उसने कहा कि मै वो नहीं हूँ! और तुरंत फोन काट दिया।
तिवारी ने दोबारा फोन लगाकर कहा तो उसने कहा कि अब क्या बात है?
तिवारी ने कहा कि दूसरे वाले खन्ना जी का नम्बर दे दीजिये।
उसने कहा कि दस मिनट बाद फोन लगाओ । दस मिनट बाद नम्बर मिला तो तिवारी ने बात की।
आर एस खन्ना बेपरवाही से बोला कि पीएचई , अभी पीडब्लयूडी के ही अधीन है। वे कैसे कह रहे हैं कि यह नगर निगम में आ गया है? आदेश ज़रूर हुये थे। लेकिन उसका पालन नहीं हुआ है! शायदकोर्ट का स्टे है।
तो तिवारी ने झक मारकर पुनः पीडब्लयूडी के सहायक यंत्री ’त्रिपाठी’ को फोन लगाया तो वह बोला कि कब से पीएचई नगर निगम में चला गया है। सामने वाला आपको बरगला रहा है। तिवारी जी ने फिर राम संजीवन खन्ना से बात की तो उसने बड़ी मुश्किल से एक आदमी भेजा जो मौका मुआयना करके एक नया अविष्कार कर गया कि यह नाला तो संचार कालोनी की सीमा में बह रहा है। दरअसल इस कालोनी से लगी एक संचार कालोनी भी थी। इसकी सफाई तो अब पीएचई भी नहीं कर पायेगा संचार कालोनी वालों को ही बोलना पडे़गा।
तिवारी परेशान हैरान कि कौन सा विभाग और कब इस लावारिस हो चले नाले की ज़िम्मेदारी लेगा!
तिवारी जी बोले, “ठीक है, संचार कालोनी वाले करें या नगरनिगम या पीएचई या पीडब्लयूडी उन्हें कोई तकलीफ़ नहीं, लेकिन उनकी ज्वलंत समस्या तो दूर हो संचार कालोनी वालों से बात कर लें।”
“वह तो आपको ही करना होगी? हमारा अपना नाला होता तो हम कौन उनको कहते! अभी तक अपना काम कर चुके होते,” खन्ना द्वारा भेजे आदमी ने बेफ़िक्री से कहा।
तिवारी जी सोचने लगे, मालूम होता तो ऐसे मकान को ठुकरा दिया होता। किराये का मकान ही इससे अच्छा था। एक नाले के इतने सारे मालिक बताये जा रहे हैं लेकिन कोई भी उसे अपना मानने तैयार नहीं जैसे कि वह अवैध संतान हो किसी की!
संचार कालोनी के नुमाइंदों से बात की गयी। तो वे दार्शनिक हो गये कि ’नाला ज़रूर उनके यहाँ आज बह रहा है’, लेकिन यह तो ’अँधेरगर्दी का बहना’ है! प्रांतीय सरकार के विभागों का एक बहाना है! यह नाला पहले यहाँ से नहीं बहता था। इन विभागों के रहवासी नुमाइन्दों ने कचरा डाल डाल कर उसका बहाव मोड़ दिया है कि अब लगता है कि नाला संचार कालोनी से संचारित हो रहा है। नाला तो नगर निगम या पीएचई जिसका भी है वही सफाई करायेगा। यह तो आप ग़नीमत समझें कि हम इस नाले को अपनी ज़मीं से बहने देना बर्दाश्त कर रहे हैं। नहीं तो हम तो वो हैं कि आप इधर सड़क बनाओ और उधर दूसरे दिन ही उसे उखाड़ फेंकें! तो हमारे जौहर यदि देखना हो तो फिर हमे ऐसे ही उकसाओ; हम इस नाले का भी नामोनिशान अपने यहाँ से मिटा देंगे! सामने सीबीआई कालोनी है। हमने यदि ज़रा सा भी इसे छेडा़ तो यह वहाँ की ओर डायवर्ट हो सकता है। और सीबीआई को नहीं छेड़ना है, नहीं तो यही नाला कइयों के लिये पूर्ण बरबादी का नाला नहीं गटर बन जायेगा।
नाला भी अनभिज्ञ था कि उसका स्वामी कौन है, वह तो बह रहा था, पहले भी आज भी और भविष्य में भी बहेगा! जब तक कि कोई बिल्डर ऐसा पैदा न हो जाये जो कि इसे पूर कर इसके ऊपर मल्टी खडी़ कर दे। ऐसे लावारिस नाले को इससे बड़ी श्रद्वांजलि क्या हो सकती है?
वैसे इस विशिष्ट क्षेत्र के विशिष्ट नाले पर गंभीर विमर्श अभी भी जारी है, तिवारी जी को पता नहीं कब समस्या से निजात मिलेगी? वह दिन शायद उनकी ज़िंदगी का सबसे ख़ुशनसीब दिन होगा। गंगू की तो दिली इच्छा है कि कोई तकनीक ऐसी आ जाये कि ऐसे नालों का भी ’डीएनए टेस्ट’ करवा कर मालिकाना हक़ किस विभाग का है यह सिद्ध किया जा सके।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
60 साल का नौजवान
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | समीक्षा तैलंगरामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…
(ब)जट : यमला पगला दीवाना
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | अमित शर्माप्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- एनजीओ का शौक़
- अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद प्रशिक्षण व शोध केन्द्र
- अगले जनम हमें मिडिल क्लास न कीजो
- अन्य क्षेत्रों के खिलाड़ियों के गोल्ड मेडल
- असहिष्णु कुत्ता
- आप और मैं एक ही नाव पर सवार हैं क्या!
- आम आदमी सेलेब्रिटी से क्यों नहीं सीखता!
- आर्दश आचार संहिता
- उदारीकरण के दौर का कुत्ता
- एक अदद नाले के अधिकार क्षेत्र का विमर्श’
- एक रेल की दशा ही सारे मानव विकास सूचकांको को दिशा देती है
- कअमेरिका से भारत को दीवाली गिफ़्ट
- कुत्ता ध्यानासन
- कुत्ता साहब
- कोरोना मीटर व अमीरी मीटर
- कोरोना से ज़्यादा घातक– घर-घर छाप डॉक्टर
- चाबी वाले खिलौने
- जनता कर्फ़्यू व श्वान समुदाय
- जियो व जीने दो व कुत्ता
- जीवी और जीवी
- जेनरेशन गैप इन कुत्तापालन
- टिंडा की मक्खी
- दुख में सुखी रहने वाले!
- धैर्य की पाठशाला
- नयी ’कोरोनाखड़ी’
- नये अस्पताल का नामकरण
- परोपकार में सेंध
- बेचारे ये कुत्ते घुमाने वाले
- भगवान इंसान के क्लासिक फर्मे को हाईटेक कब बनायेंगे?
- भोपाल का क्या है!
- भ्रष्टाचार व गज की तुलना
- मल्टीप्लेक्स और लुप्तप्रायः होता राष्ट्रीय चरित्र
- मार के आगे पति भी भागते हैं!
- मुर्गा रिटर्न्स
- युद्ध तुरंत बंद कीजो: श्वान समुदाय की पुतिन से अपील
- ये भी अंततः गौरवान्वित हुए!
- विज्ञापनर
- विदेश जाने पर कोहराम
- विवाद की जड़ दूसरी शादी है
- विश्व बैंक की रिपोर्ट व एक भिखारी से संवाद
- शर्म का शर्मसार होना!
- श्वान कुनबे का लॉक-डाउन को कोटिशः धन्यवाद
- संपन्नता की असमानता
- साम्प्रदायिक सद्भाव इनसे सीखें!
- सारे पते अस्पताल होकर जाते हैं!
- साहब के कुत्ते का तनाव
- सूअर दिल इंसान से गंगाधर की एक अर्ज
- सेवानिवृत्ति व रिटायरमेंट
- हाथियों का विरोध ज्ञापन
- हैरत इंडियन
- क़िला फ़तह आज भी करते हैं लोग!
आत्मकथा
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 1 : जन्म
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 2 : बचपन
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 3 : पतित्व
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 4 : हाईस्कूल में
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 5 : दुखद प्रसंग
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 6 : चोरी और प्रायश्चित
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं