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फ़ुटपाथ के चिंरजीवियों के मन की बात

 

हम भारतवर्ष के समस्त श्वानजन सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फ़ैसले के लिए तहे दिल से धन्यवाद देते हैं। भले ही इंसानों के प्रकरण दस साल लंबित रहते हों लेकिन हमारा फ़ैसला आपने दस दिन में कर यह सिद्ध कर दिया कि आप डॉग लवर हैं डॉग हेटर नहीं। हमारा केस अभी इंसान लड़ रहा है यदि हम ही लड़ेंगे तो आधी इंसानियत कटघरों के भीतर होगी। 

“हमें शेल्टर चाहिए सीवर नहीं”, “सम्मान चाहिए पथराव नहीं।” 

“समाज के वफ़ादार हीरो को हर बार विलेन की तरह पेश न किया जाए” की तख़्तियाँ अपनी पूँछ पर बाँधे श्वान समुदाय द्वारा अपने मन की बात रखी गयी। 

पूरा शेल्टर-लैस श्वान समुदाय सुप्रीम निर्णय के सामने पुनः नतमस्तक है कि हमें नर्क में ढकेलने के कुत्सित प्रयासों से बचा लिया गया। हमारी अन्य ज्वलंत समस्याओं के लिए हमारे मन की बात के पीड़ा ज्ञापन को ’डॉग इंटरेस्ट लिटिगेशन’ मान कर इसका रोज़ की सुनवाई कर ऐतिहासिक निर्णय कर दें। 

सड़कछाप, आवारा कुत्ते जैसे शब्दों पर तत्काल रोक लगा दी जाए। एक बेहतर नामकरण ’शेल्टर-लैस’ या ’लैस लकी’ जैसा दिया जा सकता या हमें ’फ़ुटपाथ के चिरंजीवी’ कहा जाए। मोदी जी हर चीज़ का एक नया नाम देते हैं। हम लोगों की बस एक बार सुध ली थी लेकिन हमारे मन की बात ये है कि ’दिव्यांग जन’ नामकरण जैसा कोई मास्टर स्ट्रोक हमारे लिए भी लगा दिया जाए। 

कहते हुए गाली आती है कि इस इंसान ने गालियों का आधा शब्दकोष हमारे नाम से पेटेंटेड कर दिया है। गालियों समान वाक्यांशों ‘कुत्ते मैं तेरा ख़ून पी जाऊँगा’, ‘कुत्ते की मौत मरेगाा’, ‘कुत्ते कमीने कहीं के’ पर सुप्रीम रोक लगाई जाए। 

रहवासियों द्वारा खाना फेक कर दिए जाने की गंदी आदत की शहादत की जाए। इंसान स्वयं डायनिंग टेबल में बैठकर थाली प्लेट में खाते हैं और हमें फेंक कर वो भी बासा खाना देते हैं। अतः ‘दीनदयाल रसोईघर’ की तरह के सस्ते आऊटलेट कुत्तों के लिए भी बनाए जाएँ, जहाँ हमें भोजन व सम्मान दोनों मिले। 

सर्दियों में बचने के लिए अलाव व गर्मी में शीतलता हेतु छाया, खस व व कूलर की व्यवस्था की जाए। 

हर परिवार को कम से कम एक फ़ुटपाथ के चिरंजीवी कुत्ते को पालने के दिशा निर्देश दिए जाएँ। हमारी खाल खुजली की प्रयोगशाला बन गई है विशेष अभियान हमें बलात्‌ हटाने के लिए नहीं इसके लिए चलाया जाए। 

डागफ़ूड हड्डी आदि पर जीएसटी की दरें न्यूनतम कर दी जाएँ या जीएसटी मुक्त की जाएँ। 

सनातन पंरपरा अनुसार हर घर में एक रोटी गाय, एक कुत्ते व एक भिक्षा माँगने वाले के लिए रखना अनिवार्य किया जाए। कोठीदार कुत्तों को भी रोटेशन से फ़ुटपाथ के चिंरजीवी की कठिन ज़िन्दगी समझने के लिए बाहर रहने की व्यवस्था व हमारी कोठियों में रहने की, की जाए। 

फ़ोर लेन, सिक्स लेन की सड़कों पर वाहन अनाप-शनाप स्पीड से चल रहे हैं। सड़कों पर वाहन की गति नियंत्रण के सूचना पट्टक “सावधान, गति सीमा 20 किमी। दोनों ओर ’फ़ुटपाथ के चिंरजीवी’ रहते हैं।” लगाए जाएँ हमारे दौड़ने की स्पीड तो वही है अतः असमय हमारे साथी काल के गाल में समा रहे हैं। 

कुत्तों को लोग खाना तो देेते हैं लेकिन पानी की व्यवस्था नहीं करते। इसके कारण हम गंदा पानी पीने मजबूर होते हैं। इंसान ख़ुद बोतलबंद पानी पी रहा और हमें गटर का पानी पीने के लिए मजबूर करता है। अतः श्वान पेय कुंडों की व्यवस्था की जाए। 

हमारी हिंसक व ख़तरनाक प्रजातियों को घनी आबादी वाले क्षे़त्रों में पालने की अनुमति नहीं दी जाए। इनके द्वारा घटित हो गई कुछ घटनाओं के कारण पूरी कुत्ता प्रजाति को ही कटघरे में खड़ा होना पड़ता है। 

हमारी बुलंद भौंक पर बहुतों को एतराज़ होता है इसे मौलिक अधिकार घोषित किया जाए। चोर उचक्के इसी से भय खाते हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से इंसान तो इतना भौंक रहा है कि इसके सामने हमारी भौंक तो पानी भरती है।

’नसबंदी का बजट फाइलों में भौंकता है ज़मीं पर नहीं।” इसमें नगरीय निकायों में जो बंदर बाँट हो रही है उसकी सूक्ष्म जाँच ईडी से करवाई जाए। जब छोटी सी छोटी बात पर ईडी हस्तक्षेप कर देती है तो एक हस्तक्षेप श्वान समुदाय के लिए भी हो। तभी इसका क्रियान्वयन नेकनीयती से हो श्वान संख्या नियंत्रित हो पाएगी जो कि समस्या की जड़ है। व्यवस्था की फ़ितरत होती है कि वह समस्या की जड़ पर कभी चोट नहीं करना चाहती या कर नहीं पाती। क्योंकि समस्या बनाए रखने में ज़्यादा हित सधे रहते हैं। हम भी नहीं चाहते कि भारत इंसानों के साथ ही कुत्तों की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन जाए। 

कुत्तेपन की परिभाषा में आमूलचूल परिवर्तन किया जाए। इंसान ने अपनी कुत्ती सोच के अनुसार इसे गढ़ हमें सदैव के लिए गढे़ में गिरा दिया। जबकि उसका इंसानपन तो कुत्तेपन से भी गया बीता है। 

आशा है कि हमारी इन माँगों पर सहानुभूति पूर्वक विचार कर एक सुप्रीम निर्णय शीघ्र ही आएगा। हाँ, इसके क्रियान्वयन की समय सीमा का भी निर्णय हो। 

अंत में सभी का पूछावाद। 

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