असहिष्णु कुत्ता
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी सुदर्शन कुमार सोनी15 Aug 2019
("अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो" व्यंग्य संग्रह से)
मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मेरे इस डॉगी को अचानक क्या हो गया है? डॉगी न रोज़ अख़बार पढ़ता है, न टीवी देखता है फिर उसमें आख़िर यह परिवर्तन कैसे? हाँ, यह ज़रूर मैंने कई बार ग़ौर किया था कि आजकल जब मैं टीवी के सामने बैठ कर कोई कार्यक्रम देखता, विशेष रूप से सहिष्णुता असहिष्णुता की बहस के तो यह मेरे पास आकर पूँछ हिलाकर, भौंक कर साथ बैठने की ज़िद करने लगता था। यह तब तक भौंकता रहता था, जब तक कि उसे समीप बैठने न मिल जाये! इसी तरह जब मैं अख़बार पढ़ता और असहिष्णुता संबंधी किसी ख़बर पर पत्नी से चर्चा करता तो ऐसा लगता कि यह मेरी बातें समझने उसे गुनने की कोशिश करता है! यह कुत्ते पर इंसानी प्रभाव कह सकते हैं!
हमारे इस मोहल्ले में कुल तीस-चालीस घरों में से डबल नेम प्लेट जिनमें दूसरी नेम प्लेट ’कुत्ते से सावधान’, ’विवेयर ऑफ़ डागस्’, ’आई लिव हियर, एंटर एट योर ओन रिस्क’ आदि जैसे दस तो कमसकम हैं। बाक़ी ग़ैर कुत्तेदार लोग एकल नेम प्लेट वाले लोग हैं।
मेरे इस मोहल्ले में मैंने बताया कि कई कुत्तेदार लोग हैं, तो लाज़िमी है कि उतने कुत्ते कम से कम हैं, कुत्ते भी तरह-तरह की प्रजाति व रंग के हैं कोई काला, तो कोई सफ़ेद, तो कोई पीला, तो कोई भूरा तो कोई चितकबरा जितने तरह के इंसान हैं उतने तरह के कुत्ते। क़द अलग-अलग हैं, कोई छोटा, कोई नाटा, तो कोई मध्यम, तो कोई विशाल शेर जैसा, अवस्था भी अलग-अलग है कोई साल छह माह का है, तो कोई तीन साल का, एक-दो अधेड़ हो गये हैं, तो दो-तीन बुजुर्ग हो चले हैं! हाँ, यह ग़लत फ़हमी मत पालना कि बाक़ी कुत्ते इन बुज़ुर्ग कुत्तों को बहुत सम्मान देते होंगे, श्वान पर भी इंसानी प्रभाव ज़बरदस्त पड़ा है!
मेरा डॉगी अभी तक इन सारे श्वानों के प्रति सर्वधर्म समभाव रखता था, कभी किसी को देखकर अनावश्यक न तो गुर्राता था और न ही भौंकता था। केवल उतना गुर्राता या भौंकता था जितना कि जातिगत परिचय या अपने होने को जताने के लिये ज़रूरी होता है। सामने वाला डॉगी भी इसका बुरा नहीं मानता क्योंकि इतनी गुर्राहट तो उनका धर्म है। हाँ, बाहिरी कुत्ते को देखकर ज़रूर ये आसमाँ सिर पर उठा लेते हैं। भौंकने का जो क्रम एक घर से शुरू होता है तो इसमें आहुति हर कुत्ते जी देना अपना फ़र्ज मानते हैं। नहीं तो जाति से बहिष्कृत होने का ख़तरा मौजूद रहता है!
लेकिन पिछले कुछ दिनों से देश में चल रहे प्रपंच से यह भी प्रपंची हो चला है। अब इसके सामने से कोई भी कुत्ता गुज़रे यह आसमाँ सिर पर उठा लेता है। इसे अब कोई भी पसंद नहीं है। एक नाटा कुत्ता जब पहले निकलता था तो इसकी जहाँ पहले पूँछ में कंपन होता था, अब इसके जबड़ों में होता है! मैं कहता हूँ रॉकी भाई ये तो वही छोटु है जिससे तू बेहद प्यार करता था तो वह और गुर्राता है! मतलब अब इसे उसके क़द को देखकर ग़ुस्सा आता है। अब कुछ नहीं तो क़द में यह अपने को श्रेष्ठ व उसे हीन मानता है!
एक काला दादा नाम का लेब्राडोर जो कि थोड़ा बुज़ुर्ग हो चला है और जिसको देखकर यह सम्मान में पूँछ हिला एक प्रकार से उनकी पूछ-परख जैसी करता था! अब दादा जैसे बुज़ुर्ग को भी यह बर्दाश्त नहीं कर पाता है! सोचता है कि मैं गबरू जवान और यह साला इत्ता बूढ़ा, इतना गुर्राता है कि वह अपने दिन गिन रहा कुत्ता भी अपने नथुने फड़फड़ाने लगता है। पहले इसी के रंग का यानी क्रीम कलर का एक लेब्राडोर जब निकलता था, तो इसके साथ यह ख़ूब मस्ती करता था। वह बड़ा होने के बावजूद इसको झेल लेता था। लेकिन अब उल्टा यह उसको झेलने तैयार नहीं है, लगातार मरते दम तक बाहरी कुत्ते को भौंकने की स्टाईल में उसको भौंकता है। मेरा डॉगी भी इतना असहिष्णु हो सकता है? मैं तो चिंताग्रस्त हूँ कहीं अवसाद में न चला जाऊँ? इतना तो मैं देश के बुद्धिजीवियों के सहिष्णुता के मुद्दे पर चिंताग्रस्त होने से नहीं हूँ।
दो कुत्ते दो भाईयों जैसे यहाँ जोड़ी में निकलते हैं। पहले मेरा यह कुत्ता उनको निहारा करता था। सोचता होगा कि काश उसको भी कोई ऐसा भाई होता। आज उन दोनों को इसे देखना तक गवारा नहीं, उनको देखकर यह तेज़ी से उछल-उछल कर भौंकने लगता है और जब यह ऐसा करता है तो वे दोनों जो पहले शराफ़त के पुतले लगते थे, भी प्रतिक्रिया में गुर्राने लगते हैं। मैं सोचता हूँ कि इसे क्या हो गया है? देश में तो माहौल ठंडा पड़ता जा रहा है, लेकिन यह असहिष्णुता की भावना से इतनी सर्दी में भी गर्मा रहा है। गर्मी मेंं इसका क्या होगा? मुझे चिंता बुरी तरह खाये जा रही है।
अब, यदि कोई चेन में कुत्ते को बाँधकर, इसके सामने से घुमाने भी निकल जाये तो इसे चैन नहीं, यह ज़बरदस्त भौंकेगा, इतना भौंकेगा कि चेन में बँधे कुत्ते का भी धैर्य जबाब दे जाये।
मेरा देश के बुद्धिजीवियों से निवेदन है कि कम से कम मेरे प्रिय कुत्ते पर रहम करें और सहिष्णुता के मुद्दे पर अनर्गल प्रलाप थोड़ा कम कर इस मुद्दे को ’हैंडिल विद केयर’ की भावना से लें!
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