जीवी और जीवी
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी सुदर्शन कुमार सोनी1 Apr 2021 (अंक: 178, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
हिन्दी भाषा अभी तलक मातृभाषा बनने की बाट जोह रही है। स्वर्गीय बाजपेयी जी के संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में ऐतिहासिक भाषण के बावजूद आज भी हिन्दी वहाँ की अधिकृत भाषाओं में शामिल नहीं है।
कुछ सयानजनों का कहना है कि बुद्धिजीवी ही किसी देश की असली संपदा होते हैं। तो कुछ का कहना है कि श्रमजीवी असली संपदा हैं।
हाँ, बुद्धिजीवी हिन्दी में कितना सुंदर शब्द गढ़ा गया है। बुद्धि के बल पर जीने वाला गोया कि बाक़ी सब बिना बुद्धि के काम करते हों। सबसे ज़्यादा बुद्धि के बल पर जीने वाला तो वणिक होता है। उससे भी ज़्यादा बुद्धि का उपयोग राजनीतिज्ञ करता है। नहीं करता होता तो पाँच सालों तक आश्वासानों के झूले पर झुलाने के बावजूद लोग उसे ही कैसे दोबारा चुनते होते। तो अब कोई भ्रम नहीं रहा कि बुद्धिजीवी भ्रम में ही जीता है। प्रधानमंत्री जी ने वैसे एक नया शब्द अभी आंदोलनजीवी का दे दिया है। सबसे बड़ा बुद्धिजीवी तो आज यही हो गया है! लॉक डाऊन ख़त्म हो गया लेकिन ये आंदोलन का लॉकडाउन अनलॉक करने तैयार ही नहीं!
जीवी में बुद्धि व श्रम लगाकर बस दो शब्द हिन्दी वालों ने गढ़ लिये और इतिश्री कर ली! अब जाकर पल्ले पड़ा कि कितना स्कोप था इस संधि में नये-नये प्रयोगों का। क्या करें बुद्धि ही नहीं चली। नहीं तो बुद्धिजीवी और श्रमजीवी से आगे निकल कर न जाने कित्ते शब्दों को गढ़ सकते थे। आंदोलनजीवी तो आ ही गया है! जीवी के स्टार्ट अप का ज़बरदस्त स्कोप था।
लाखों बेरोजगार युवा इंतज़ार व प्रयत्न करते-करते युवावस्था से अधेड़ावस्था में पदार्पण कर गये हैं! वे सैनिक रैली में दौड़ते-कूदते हैं, रेलवे भर्ती बोर्ड की परीक्षा देते हैं, न जाने कहाँ-कहाँ नहीं भटकते हैं। तो फिर इनके लिये ’प्रयत्न जीवी’ शब्द क्यों नहीं गढ़ा गया? सालों-साल रोज़गार की तलाश में धक्के खाते भटकते हैं तो धक्काजीवी व भटकजीवी भी तो कह सकते हैं!
सरकारी कर्मचारी अपने नाम के आगे सेवक का तमगा लगाये बैठे हैं। इसलिये नौकरी को सेवाकाल और अधिवार्षिकी आयु पूरी करने पर सेवानिवृत कहा जाता है! कितनी ग़लत व्याख्या की गयी है! सौ में से नब्बे से पूछोगे तो कहेंगे कि उन्हें स्मरण नहीं आता कि तीस-पैंतीस साल की नौकरी में उन्होंने कोई सेवा का काम किया हो! हाँ, चाहे जब मेवा खाने की यादें ज़रूर ताज़ी हैं। रिश्वत मेरा धर्म है। तनख़्वाह जेब ख़र्च है। नौकरी नहीं मैं इसका धंधा करता हूँ! मानने वाले भी कम नहीं है! इसीलिये शायद एक स्थान पर बाढ़ग्रस्त लोगों द्वारा, सरकारी कर्मियों के द्वारा एक दिन का वेतन देने की दानवीरता पर ऐसे आपत्ति की गयी कि एक दिन की ऊपरी आमदनी दान करके दिखाओ तो बच्चू जानें! अतः गंगू की आपत्ति है कि ऐसे कर्मियों के लिये रिश्वतजीवी शब्द अभी तक क्यों नहीं ईजाद हुआ। मेवाजीवी भी बुरा शब्द नहीं है! तो ग़ायबजीवी भी हैं जो चाहे जब ग़ायब हो जाते हैं। इन्हें कुर्सी जैसे काटने दौड़ती है। बड़ा उल्टा-पुल्टा है; एक वर्ग को कुर्सी सताती है तो दूसरे को भाती नहीं।
माल्या व नीरव मोदी जैसे बैंक लोन पर ऐश करने वाले लोनजीवी भी कम नहीं हैं! इस देश में लोनजीवियों की पूरी एक फुल ऐश करने वाली जमात है! इनके ऐश और बैंक का एनपीए दोनों छलाँगें मारता है।
जीवी में इतनी जिजीविषा है कि न जाने कितने नवीन शब्द गढे़ जाने की क़तार में हैं। लोकतंत्र में शिकवा शिकायत के एक सूत्रीय कार्यक्रम में लिप्त ’शिकायत’ जीवियों की भी जमात है!
सोशल मीडिया में जीवियों की एक पूरी जमात है। ट्वीटरजीवी, व्हाटस् ऐपजीवी तो फ़ेसबुकजीवी। इन्हें भले भोजन-पानी न मिले– चल जायेगा लेकिन इसके बिना नहीं न होगा। यहाँ जेनरेशन गैप भी टूटता लगता है। बुज़ुर्ग भी यहाँ उन्नीसे नहीं पड़ते!
विरोध करना ही जिनकी आजीविका है इन्हें ’विरोधजीवी’ कह सकते हैं। आजकल तो बयानवीरों का ज़माना है। ये आज के बयानजीवी हैं। बयान इनके लिये आक्सीमीटर का कार्य करता है।
जीवी से बने शब्द हिन्दी में ख़ूब जियेंगे, ख़ूब चलेंगे। बुद्धिजीवी व श्रमजीवी देखा न कैसे दौड़ रहे हैं! सम्मानजीवी को क्यों भूल रहे हैं। इन्हें हर साल एक न एक सम्मान होना। काम ढेले भर का भी न किया हो लेकिन सम्मान के पक्षी की आँख पर ये अपने जुगाड़ का ढेला मारकर अपने पाले में गिरा ही लेते हैं। पदजीवी भी होते हैं जिन्हें कोई न कोई पद होना ये न हो तो ये सही में मरजीवी हों जायें। मेवानिवृत्ति के बाद किसी आयोग के अध्यक्ष बन गये। यहाँ भी छ्ह साल काट लिये तो फिर किसी और पद के लिये लार टपकाने लगे! व्यवस्था उनको निराश करती भी नहीं।
छपने की लगातार तलब वाले लेखक को छपासजीवी कहने में क्या बुराई है!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
60 साल का नौजवान
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | समीक्षा तैलंगरामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…
(ब)जट : यमला पगला दीवाना
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | अमित शर्माप्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- एनजीओ का शौक़
- अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद प्रशिक्षण व शोध केन्द्र
- अगले जनम हमें मिडिल क्लास न कीजो
- अन्य क्षेत्रों के खिलाड़ियों के गोल्ड मेडल
- असहिष्णु कुत्ता
- आप और मैं एक ही नाव पर सवार हैं क्या!
- आम आदमी सेलेब्रिटी से क्यों नहीं सीखता!
- आर्दश आचार संहिता
- उदारीकरण के दौर का कुत्ता
- एक अदद नाले के अधिकार क्षेत्र का विमर्श’
- एक रेल की दशा ही सारे मानव विकास सूचकांको को दिशा देती है
- कअमेरिका से भारत को दीवाली गिफ़्ट
- कुत्ता ध्यानासन
- कुत्ता साहब
- कोरोना मीटर व अमीरी मीटर
- कोरोना से ज़्यादा घातक– घर-घर छाप डॉक्टर
- चाबी वाले खिलौने
- जनता कर्फ़्यू व श्वान समुदाय
- जियो व जीने दो व कुत्ता
- जीवी और जीवी
- जेनरेशन गैप इन कुत्तापालन
- टिंडा की मक्खी
- दुख में सुखी रहने वाले!
- धैर्य की पाठशाला
- नयी ’कोरोनाखड़ी’
- नये अस्पताल का नामकरण
- परोपकार में सेंध
- बेचारे ये कुत्ते घुमाने वाले
- भगवान इंसान के क्लासिक फर्मे को हाईटेक कब बनायेंगे?
- भोपाल का क्या है!
- भ्रष्टाचार व गज की तुलना
- मल्टीप्लेक्स और लुप्तप्रायः होता राष्ट्रीय चरित्र
- मार के आगे पति भी भागते हैं!
- मुर्गा रिटर्न्स
- युद्ध तुरंत बंद कीजो: श्वान समुदाय की पुतिन से अपील
- ये भी अंततः गौरवान्वित हुए!
- विज्ञापनर
- विदेश जाने पर कोहराम
- विवाद की जड़ दूसरी शादी है
- विश्व बैंक की रिपोर्ट व एक भिखारी से संवाद
- शर्म का शर्मसार होना!
- श्वान कुनबे का लॉक-डाउन को कोटिशः धन्यवाद
- संपन्नता की असमानता
- साम्प्रदायिक सद्भाव इनसे सीखें!
- सारे पते अस्पताल होकर जाते हैं!
- साहब के कुत्ते का तनाव
- सूअर दिल इंसान से गंगाधर की एक अर्ज
- सेवानिवृत्ति व रिटायरमेंट
- हाथियों का विरोध ज्ञापन
- हैरत इंडियन
- क़िला फ़तह आज भी करते हैं लोग!
आत्मकथा
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 1 : जन्म
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 2 : बचपन
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 3 : पतित्व
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 4 : हाईस्कूल में
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 5 : दुखद प्रसंग
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 6 : चोरी और प्रायश्चित
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं