रंग बदलता जुलूस
कथा साहित्य | लघुकथा सुदर्शन कुमार सोनी23 Feb 2019
शहर मे कई दिनो से एक आंदोलन चल रहा था इसी से संबंधित एक जुलूस आज निकाला जाने वाला था। इसके लिये जुलूसिये टाउन हॉल के सामने लगी बापू की प्रतिमा के आगे इक्टठे् हुये थे वहाँ उनके एक नेता ने प्रभावशाली भाषण उनके कई दिनों से चल रहे आंदोलन पर दिया था। यह आंदोलन सरकार की कुछ नीतियों के विरुद्ध था यदि सरकार की नीतियाँ अच्छी भी हों और आंदोलनकारियों को अच्छी न लग रही हों तो भी आंदोलन चला करते हैं। जुलूसियों को उनके नेता ने शपथ दिलवाई थी कि आज का जुलूस उनके लंबे चल रहे अहिंसक व शांतिपूर्ण आंदोलन व संघर्ष की ही एक कड़ी है अतः इसमे कोई हिंसा नहीं होनी चाहिये, किसी तरह से उकसाये जाने पर भी उत्तेजित होने की ज़रूरत नहीं है।
थोड़ी देर मे यह जुलूस टाउन हॉल से रवाना हो गया था जुलूसिये बहुत सी तख्तियाँ लिये हुये थे जिनमें अलग-अलग नारे लिखे हुये थे। वे शांतिपूर्ण ढंग से नारे लगाते हुये आगे बढ़े चले जा रहे थे। बहुत से जुलूसिये गाँधी टोपी पहने हुये थे। जुलूस अब एम जी रोड पहुँच गया था। इस चौराहे पर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा लगी हुयी थी। संविधान निर्माता बाबा साहब की प्रतिमा के नीचे सभी इकट्ठे हो गये थे। यहाँ एक अन्य नेता ने ज़ोरदार भाषण़ दे डाला। भाषण रोषपूर्ण था सो जुलूसिये तैशपूर्ण हो गये। ज़बरदस्त नारेबाजी होने लगी कि "भेदभाव बर्दाश्त नहीं करेंगे" जो सरकार भेदभाव करेगी उसे बर्ख़ास्त करवा देंगे। "संविधान प्रदत अधिकारों का सरंक्षण चाहिये" आदि आदि। एक और नेता ने अब अपना भाषण दे डाला। अब जुलूसिये एक गाल पे चाँटा पड़ने पर दूसरा गाल सामने करने का दर्शन भूल गये थे। जैसे-तैसे जुलूस यहाँ से आगे बढ़ा अब नारों की तीव्रता बहुत हो गयी थी।
जुलूस रेंगता हुआ अगले चौराहे पहुँच गया था यहाँ लगी चंद्रशेखर आज़ाद की मूँछों पर ताव देती प्रतिमा को देखकर जुलूस रुक गया। अपने आप ही इंक़लाब ज़िंदाबाद के नारे गूँजने लगे। एक दो पहिया व एक चौपहिया वाहन जो लगातार हार्न दे रहे थे आगे जाने के लिये, से जुलूसिये नाराज़ हो गये व इनके साथ कुछ जुलूसियों ने दुर्व्यवहार कर दिया। यहाँ पर भी ज़ोरदार भाषण हुआ जिसके स्वर टाउनहॉल के भाषण से बदले हुये थे जबकि भाषणकर्ता नहीं बदले थे। चंद्रशेखर आज़ाद की मूँछों पर ताव देती प्रतिमा ने जुलूसियों में बिना पाव के ही ताव पैदा कर दिया था कुछ तमाशबीन उन्हें बड़े चाव से सुनकर भाव दे रहे थे। थोड़ी देर में जुलूस यहाँ से आगे बढ़ा ज़बरदस्त उत्तेजना आ गयी थी जुलूसियों में! अब कुछ जुलूसिये आगे-पीछे चल रहे पुलिस कमिर्यों से भी आँखें तरेर रहे थे। मिज़ाज़ बहुत गर्म हो गये थे। माहौल बहुत गर्म व उत्तेजनापूर्ण था।
अगले चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की सैनिक यूनिफार्म में प्रतिमा लगी थी नीचे "तुम मुझे ख़ून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा" का नारा लिखा था। जुलूसिये यहाँ इकट्ठे हुये ही थे कि इंक़लाब ज़िंदाबाद के नारे ज़ोर शोर से लगने लगे। "हर ज़ोर ज़ुल्म के टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है" भी दुहराया जाने लगा। यहाँ भी ज़ोरदार भाषण हो गया जो उकसाने वाला था इससे जुलूसिये आक्रोशित होकर तोड़-फोड़ पर उतारू हो गये। कुछ दोपहिया व पास खड़ी कारों में तोड़-फोड़ हो गयी। पुलिस ने मोर्चा सँभाला तो स्थिति और बिगड़ने लगी जुलूसिये पुलिस से भी मोर्चा लेने तैयार दिखे। आँसू गैस के गोले व हवाई फायर की तैयारी कर ली गयी। भारी पुलिस बल पहुँच गया। जैसे-तैसे स्थिति नियंत्रित हुई अब जुलूस अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँचने वाला था।
सदर मंज़िल पर पं जवाहरलाल नेहरु की प्रतिमा पर सभी इकट्ठे हो गये थे। पुनः भाषण वीरों ने भाषण दिये जिसमें अब ज़ोर दिया गया कि क़ानून को हाथ में नहीं लेना है यह सही है कि कुछ नीतियों से किसान आत्महत्या कर रहे हैं, बेरोज़गारी बढ़ रही है, महँगाई बढ़ रही है लेकिन सरकार कृषि को बढ़ावा देने, विकास दर दो अंकों में लाने, नई नौकरियों के अवसर बढ़ाने व सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मज़बूत करने ठोस क़दम उठा रही है अतः हम अपना यह आंदोलन एक सप्ताह के लिये स्थगित कर रहे हैं परन्तु यदि हमें कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिला तो आज से ठीक एक माह बाद हम पुनः टाउनहॉल में बापू की प्रतिमा के नीचे अगली रणनीति के लिये इकट्ठे होंगे। और इस तरह यह जुलूस विसर्जित हो गया विसर्जन के पहले जुलूस ने अहिंसा से आवेश फिर उत्तेजना व उत्तेजना से लगभग हिंसात्मक सृजन के विभिन्न चरण देखे।
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