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हैरत इंडियन

हैरत की बात है! हम सदियों से "हैरत-अंगेज़" शब्द को ढोते चले आ रहे हैं। ढोने में हम महारती है। हम ढोते हैं पैट्रोल डीज़ल की बढ़ी क़ीमत तो झुग्गियों से होती बिजली चोरी के कारण राजस्व के अंतर को पाटने का बोझ। तो कभी आरक्षण के नाम पर चल रहे सामाजिक आर्थिक अंतर के बोझ को। नागरिक सेवाओं में भ्रष्टाचार के बोझ को। सूची बेरोज़गारी की लाईन की तरह लम्बी है।

अब अँग्रेज़ तो रहे नहीं! गंगाधर की दिली इच्छा है कि हैरत-अंगेज़ बीते दिनों की बात हो हैरत इंडियन कार्यों का समय आ जाये। कोरोना काल में पहली हैरत हिंदुस्तानी बात तो यही होती कि रेमडेसिविर, एम्फेटेरेसिन जैसे इंजेक्शन व आक्सीजन सिलेंडर की कालाबाज़ारी शून्य होकर सहजता से उपलब्ध होते। राशन दुकानों में सालों से चल रही हेरा-फेरी गधे के सिर से सींग की तरह ग़ायब हो जाये। हर बरसात मुम्बई जैसे महानगरों में बहुमंज़िला भवनों का भरभराकर गिरना उसमें लोगों का असमय अल्लाह को प्यारे होना बंद हो जाये। हैरत तो तब भी होगी कि हर दो-चार माह में ज़हरीली शराब पीकर मरने संबंधी घटनाएँ पूर्णरूपेण बंद हो जायें। संसद विधान सभाओं में कोरम पूरा हो। राष्ट्रीय मुद्दों पर छीछालेदारी बंद होकर विपक्ष व सत्तापक्ष एक मत हो जाये। राजनैतिक दलों द्वारा प्रत्याशियों का चयन जात-पात के आधार पर न हो। किसी चुनाव में पराजित पक्ष ने इवीएम के सिर पर पराजय का ठीकरा नहीं फोड़ा जाये। हैरत भारतीय होगा कि कभी भारत नहीं इंडिया बंद हो। करोड़पति किसानों को भी कृषि आय पर कर देना पडे़। किसान आंदोलन का समाप्त हो जाना भी अब हैरत भारतीय घटना ही होगी।

एक बार बना पुल कभी न गिरे। अँग्रेज़ों के ज़माने के पुल जैसे हो जायें तो यह हैरत-अंगेज़ व हैरत हिन्दुस्तानी दोनों ही बात होगी! आयात से निर्यात ज़्यादा हो जाये। सरकारी कार्यालयों में कर्मचारियों को कुर्सी से मोह हो जाये और उधर नेताओं को कुर्सी से विकर्षण हो जाये। घोटाले पूरी तरह विदा हो जायें तो हम हैरत में क्यों नहीं पड़ेंगे। दिग्विजय सिंह, कंगना, बाबा रामदेव, सुब्रमणयम स्वामी जैसे महानुभाव महान बयान देना बंद कर दें। बेरोजगारी व महँगाई न्यूनतम हो जाये। सबसे बड़ा हैरत भरा दिन तब होगा जब कि देश में बलात्कार की कोई घटना नहीं होगी। कोई साल ऐसा होगा कि जब नवविवाहिता की दहेज़ को लेकर हत्या नहीं की गयी हो। कोई दशक ऐसा हो जब कि जनसंख्या वृद्वि दर निगेटिव हो।

पाक अधिकृत कश्मीर का विलय भारत में हो जाये। चीन से हम अपनी भूमि वापिस छीन लें। ग़रीबी, छुआछूत, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद, जातिवाद मिट जायें हैरत ही हैरत! लिंग अनुपात समान हो जाये।

धार्मिक स्थलों पर लगे लाऊड स्पीकर धीमे हो जायें। हर गांव में डॉक्टर के पाँव पड़ें। दूध वाला दूध में पानी व सुनार सोने में मिलावट बंद कर दे। होगी न हैरत क्यों न होगी। हमारी पुलिस स्काटलेंड यार्ड जैसी हो जाये थाने में लिखा देश भक्ति जन सेवा पग-पग पर झलकने लगे।

एक साल ऐसा भी आये कि निजी स्कूलों ने सत्र की शुरूआत पर कौन सी दुकान से कितनी किताबें लेनी हैं की पर्ची छात्रों को नहीं दी हो।

अब समय आ गया है कि व्यवस्था व समाज ऐसे क़दमताल करे कि हैरत-अंगेज़ की जगह हैरत इंडियन काम हों। गंगाधर आप सभी की तरह इसका इंतज़ार करेगा। नयी पीढ़ी को तो हम भ्रष्टाचार विहीन विकास व समृद्धि व नये हिन्दुस्तान की सीढ़ी छोड़कर जायें। जिस पर चढ़कर वो संसार में अग्रणी बन सकें।

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