अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

जियो व जीने दो व कुत्ता

 

(व्यंग्य संग्रह - अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो से साभार)

 

मेरे पास एक पालतू कुत्ता है, जो कि मुझे पूरे समय फ़ालतू समझता है! मैं ऑफ़िस से आया हूँ, पार्टी में जा रहा हूँ या कि हल्के होने जा रहा हूँ या फोन पर बात कर रहा होऊँ, इसको इस सबसे कोई मतलब नहीं। इसे तो यदि बाहर घूमने की तलब है तो आपको चाहे ख़ुद भारीपन लग रहा हो, आपकी बला से, सर्वप्रथम इनको बाहर घुमाकर आओ। लोग कहते हैं कि कुत्ता बड़ा बुद्धिमान व वफ़ादार प्राणी होता है। वफ़ा का तो मैं मान सकता हूँ कि यह चाहे जब पूँछ हिलाने के लिये तैयार रहता है। कई बार तो यह बिल्कुल अपरिचित के सामने भी पूँछ हिलाने लगता है! हाँ, जनाब यह सही बात है, वफ़ादारी एक तरफ़ रखी रह जाती है! समझ में नहीं आता कि यह बुद्धिमान ऐसी नासमझी क्यों दिखा रहा है? ऐसे समय लगता है कि बुद्धिमान तो यह हरगिज़ नहीं है! जब इसको यह नहीं समझ में आता कि यदि इसका मालिक अपने ऑफ़िस या काम से अभी-अभी आया है; थका हारा होगा, हाँ, ऑफ़िस या काम में आजकल आदमी हार कर ही आता है! यदि आप ईमानदार हो तो बेईमानों से हारकर, अनुशासित हों तो कामचोरों से हारकर, राजनैतिक आका आपके नहीं हैं तो राजनैतिक चालबाज़ों से हारकर! चमचागिरी न करते हों तो चमचागिरी करने में माहिर लोगों से हारकर या मालिक किसी तकलीफ़ में हों तो यह उनको कुछ देर का सेफ़ पैसेज दे दे। नहीं देता, यह तो सरकार से भी ज़्यादा कठोर है, वह तक कई बार अपराधियों को सेफ़ पैसेज किसी मजबूरी या किसी वृहद हित के मद्देनज़र दे देती है, लेकिन यह है कि सामने से हटने क्या, छाती पर से अपने दो वज्र जैसे पैर हटाने तक तैयार नहीं होता। 

इस कुत्ते में मैं एक चीज़ और आजकल देख रहा हूँ कि ये किसी को भी बर्दाश्त नहीं कर पाता है। ’जियो और जीने दो’ इसके शब्दकोश से ग़ायब हो गया है। सीमापार के प्रायोजित आतंकवादियों की तरह जो लांच पैड पर भारत में घुसपैठ करने पूरे समय कमर कसे तैयार रहते हैं, यह तैयार रहता है। 

सुबह मैं छत पर बैठा अख़बार पढ़ रहा हूँ। कुत्ता भी अपने टाॅप फ़ॉर्म में है। एक कबूतर कहीं से कमरे के छज्जे पर चढ़ी बेल के पीछे आ बैठा है। वह शायद अपने सुनहरे भविष्य के लिये एक अदद आशियाना बनाने लघुतम प्लाट की तलाश कर रहा है। वह यहाँ वहाँ आकलन कर रहा है कि कहाँ आशियाने की व्यवस्था अच्छे से जमेगी, लेकिन स्थायी आशियाने की सुविधा वाले डाॅगी को यह नागवार गुज़र गया। वह मन में सोच रहा है कि इस उड़ने वाले पिद्दी जीव ने क्या गेट पर ’एंटर एट योर ओन रिस्क, आई लिव हियर’ नहीं देखा। अब इसे कौन समझाये कि यह उड़ने वाला परिंदा है, यह नाम पट्टिका नहीं देखता। धोखे मेंं दिख जाये तो बात अलग है। लेकिन श्वान तू अब तो समझ जा कि तू बुद्धिमान नहीं है!

गुटर गूँ ने इसको एक घंटा व्यस्त रखा। हाँ, यदि यह इस तरह बेकार ही न भौंके तो यह व्यस्त कैसे रहे? और इसका भोजन कैसे पचे? दिन भर तो चहारदीवारी के अंदर रहता है। गली का कुत्ता होता तो न जाने कितनी बार कितने वाहन व कितने इंसानों पर दौड़ पड़ा होता! 

अब इसको दूसरा काम मिल गया था। कबूतर से तो यह हार गया था। मान लिया था कि इसके आशियाने रूपी हार को तो अपने गले में पहनना ही पडे़गा। इसी समय एक काग बाजू के मकान की छत पर आ बैठा। सुबह का समय है वह अपने नाश्ते की तलाश में आया है। डाॅगी जी भरपूर खा पी कर बैठे हैं तो इन्हें अब बुरा लग रहा है कि कोई और इनके आसपास बैठने मंडराने या इठलाने या कांव-कांव करने की ज़ुर्रत करे। 

काग ने भी लगभग तीस मिनट तक डाॅगी जी को व्यस्त रखा। अब इसके बाद इन्हें तोतों से समस्या हो गयी। दरअसल कुछ तोते पके अमरूद देखकर अमरूद के पेड़ पर आ बैठे थे। डाॅगी जी को यही नागवार गुज़रा कि इनकी फिर इतनी ज़ुर्रत कि उसके छत से लगे वृक्ष में उसकी बिना इजाज़त बैठ गये। लेकिन तोते समझदार हैं। इस छोटी सोच वाले के कौन मुँह लगे सोचकर अपना पेट भर, दो चार अमरूदों को आधा ख़ाकर आधा ज़मीं जहाँ से ये ऊगे, गिराकर ही फुर्र हो गये। अब गैराज की छत पर एक म्याऊँ म्याऊँ करती म्याऊँ धूप तापने आ बैठी, धूप ताप रहे डाॅगी जी धूप से ज़्यादा इस बात से तप गये। लगे उसको उछल-उछल कर भौंकने।

डाॅगी बिल्कुल आम आदमी की तरह ज़रा-ज़रा सी बात में परेशान हो उठता है। अब एक गिलहरी इलेक्ट्रिक पोलों को जोड़ने वाले मोटे केबिलों पर आकर अठखेलियाँ कर रही थी। वह अकेले नहीं थी। उसकी एक और सखा आ गयी थी। दोनों तरह-तरह के खेल उसमें कर रहीं थीं। बस डाॅगी का पारा सातवें आसमान पर आज सातवें बार पहुँच गया कि ना समझो मैं यहाँ बैठा हूँ,और तनिक भी लिहाज़ नहीं कर सकती तुम लोग? यदि गिर पड़ी तो पूरी बत्तीसी और गूदा बाहर आ जायेगा डाॅगी दाँत पीस रहा है कि और नहीं आया तो मैं निकाल दूँगा समझी सयानी! इनके फिर से घंटे भर इसी में बीत गये। वाक़ई इसका दिमाग़ घुटने में नहीं तो पूँछ में होता होगा! यदि चील को उड़ता हुआ देख ले तो कहो भौंक-भौंक कर अन्न पानी ही छोड़ दे। क्योेंकि वे तो घंटों गगन में मगन होकर विचरते रहते हैं, थकते ही नहीं और ये इसी मेंं अपने को थका डालते हैं कि भाई तू ऊपर लगातार कर क्या रहा है?

ऐ, डाॅगी तुमको यदि शांति से रहना है तो सह अस्तित्व की भावना सीखनी पडे़गी? ’जियो और जीने दो’ का मनुष्य का सिद्धांत अपनाना पडे़गा। मेरे यह बुदबुदाने पर वह मेरे पर ज़बरदस्त ढंग से भौंक पड़ा है। जैसे कहना चाह रहा हो कि मनुष्य तुम्हारे भी इस मामले में ’खाने के दाँत और हैं और दिखाने के और हैं।’ 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

आत्मकथा

लघुकथा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं

लेखक की पुस्तकें

  1. आरोहण
  2. अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो