कोरोना मीटर व अमीरी मीटर
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी सुदर्शन कुमार सोनी1 Sep 2020 (अंक: 163, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
वे मीडिया में फिर छाये हैं। छाये ही रहते हैं। यहाँ कोरोना लोगों को पछाड़ रहा है। वहाँ वे अपने से ऊपर वाले को पछाड़ कर सुर्ख़ियों में आते हैं। अभी वे चौथे नंबर वाले को पछाड़ कर दुनिया के चौथे सबसे अमीर व्यक्ति, वहीं ज़्यादा नहीं तो, देश के तीन-चार राज्यों के बजट के बराबर की 06 लाख करोड़ की दौलत के साथ बन गये हैं! ऐसे मौक़े पर ये बात करना बेमानी होगा कि भारत में कोविड के कारण चालीस करोड़ लोगों के फिर से ग़रीबी रेखा में आने का ख़तरा मँडरा रहा है? कई करोड़ लोगों को रोज़गार से हाथ धोना पड़ा? चार सौ के ऊपर डाक्टरों की कोरोना के दौरान संक्रमण से मौत हो गयी। न जाने कितने पुलिस व प्रशासन के अधिकारी/कर्मचारी भी कोरोना की भेंट चढ़ गये। ये सब बातें तो होती रहती हैं। अब इस मौक़े पर ये सब बातें करके उनके रिकार्ड का मज़ा किरकिरा न किया जाये।
लाड़ले ब्राड ’पारले जी’ ने कोरोना काल में रिकार्ड बिक्री की। क्योंकि लॉक डाऊन में घर लौट रहे लोगों के पास रोटी के नाम पर यही सहारा था। यहाँ रोटी के लाले और वहाँ ’रोटी नहीं है तो केक क्यों नहीं खाते’ जैसी स्थिति वाले अमीर बढ़ रहे हैं। वहाँ फ़ैक्टरियों में ताले और इधर हमारे ये पछाड़ने वाले।
गंगू तो इसी में प्रसन्न है कि एक भारतीय ने आख़िर किसी को पछाडा़ तो। बारेन बफ़ेट भी अब उनके नीचे हैं। भारत महान के हम सब भारतीय इसी में ऊपर हैं। लोग कर्ज़युक्त हो रहे हैं तो अपनी बला और अपनी च्वाईस से। लोग मोरेटोरियम की माँग कर रहे हैं और वे पूर्ण कर्ज़मुक्त हो गये इस कोरोना काल में। मोरेटोरियम की ज़रूरत फटेहाल को होती है। उन्होंने तो अपने पूरे कर्ज़ को मोरेटोरियम कर दिया।
इधर कोरोना के मामले देश में बढ़ रहे हैं? मौतें बढ़ रही हैं? उधर कइयों की अमीरी बढ़ रही है! व्यापार व उद्योग हो तो ऐसा! वैसा न हो कि ज़रा सा लॉक डाऊन क्या हुआ, ज़रा सी दुकान/फ़ैक्टरी क्या बंद हुई, कि फ़ाक़ाकशी की नौबत आ जाये। कोरोनाकाल में सबसे ज़्यादा अमीर होने वालों की कमी नहीं है। कोरोना में उनकी अमीरी के मीटर को रोकने का दम नहीं! विपदा ऐसों के लिये अवसर बन कर ही आती है। जिन लाखों के रोज़गार नौकरी छिने हैं तो यह उनका ही दोष है। कि ऐसे धंधे में आये क्यों? जिम जैसा काम क्यों शुरू किया? रेस्तरां होटल जैसा काम क्यों आजीविका का साधन बनाया। ज़िंदगी भर दिहाड़ी क्यों बने रहे। पेट पालने गाँव घर परिवार छोड़ कर क्यों गये? कला को क्यों अपनी आजीविका बनाया? चुनना था तो ऐसा ही कोई काम जिसमें कोरोना के समय भी ’हर्र लगे न फिटकरी फिर भी धंधा चोखा का चोखा’ और जो देता ’रोज खोखा के खोखा’ चुनना था।
गंगू तो देशवासियों से कहता है कि इस बात का मातम मत मनाओ कि कोरोना तेज़ी से पैर पसार रहा और इसने इतने लील लिये। इतने का रोज़गार, नौकरी छूट गयी। इतने भूखे सोये। ये तो निगेटीविटी है... इसको दिमाग़ से निकालो! और जश्न मनाओं कि ऐसे कठिन समय में भी एक भारतीय, हाँ जी भारतीय दुनिया के अमीरों की सूची में और ऊपर आ गया है। ये गौरवान्वित होने का समय है! कोरोना से तहस-नहस हुई व्यवस्था तो एक दिन दुरस्त हो जायेगी। अब तो हम केवल इंतज़ार करें कि वे कब पहले स्थान पर आयें। हाँ तभी सही ’विविधता में एकता’ वाला देश हमारा भारत महान होगा कि दुनिया के सबसे ज़्यादा ग़रीब भी यहाँ और दुनिया के सबसे ज़्यादा अमीर भी यहाँ। सबसे अमीर भी यहाँ और सबसे ग़रीब भी यहाँ। केवल कोरोना मीटर नहीं देखो इससे तनाव होता है। अमीरी का मीटर भी देखो।
यह जश्न मनाने का समय है आलोचना का नहीं! नौकरी चली गयी है कोई बात नहीं आ जायेगी। चूल्हा नहीं जल रहा है? कोई बात नहीं जल जायेगा! दुकान प्रतिष्ठान में घाटा हो रहा है? कोई बात नहीं सब ठीक हो जायेगा! ऐसे लोगों से मोटिवेशन लो यदि ये कोरोना में घबरा गये होते तो किसी को पछाड़ कर ऊपर आते क्या!
और गंगू तो कहता है कि यदि कोई अर्थशास्त्री इसका अच्छा अध्ययन कर ले तो नोबल पुरस्कार का दावेदार हो सकता है। जब कोरोना की मार में सब अधमरे हो रहे हैं ऐसे कठिन समय में भी अपना धैर्य सूझबूझ न खोते हुये विश्व के अमीरों की सूची में निरंतर अव्वल होते जा रहे हैं। कोरोनामीटर नहीं अख़बार में ये अमीरी का मीटर रोज़ देखो।
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