मुर्गा रिटर्न्स
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी सुदर्शन कुमार सोनी15 Jan 2020 (अंक: 148, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
“श्रीमान कलेक्टर महोदय जी,
हमारी पंचायत का सचिव बहुत आतंक फैलाये हुये है। गरीब जनता का काम नहीं करता है, रोजगार गारंटी योजना में काम नहीं खोलता है। यदि काम खोलता है तो अपने रिश्तदारों; चहेतों को ही काम पर लगाता है। फर्जी हाजिरी मास्टर है। किसी की सुनता नहीं है। दो साल से काम किये हुये मजदूरों को अभी तक मजदूरी का भुगतान नहीं किया है। ’इंदिरा आवास योजना’ का लाभ देने में एक हितग्राही बिरजु बल्द नन्हे से दो हजार रुपये साथ ही कड़कनाथ झटक लिये हैं। एक मुर्गा पका के खा गया व एक इसके घर मे अभी भी बंधा है। अतः हम ग्रामवासियों की दरखवास्त है कि इसके खिलाफ कड़ा एक्शन लिया जाये!” यह आवेदन का मुख्य बिंदु था।
इस आवेदन में नीचे क़रीब बीस गाँव वालों के नाम थे। इन्हें हस्ताक्षर मान लिया जाये। हस्ताक्षर कर्ता के रूप में रामलाल, धन्ना, छकोड़ी, केवटलाल, मातादीन, गैबू, टेढे़ मेड़े अक्षरों में एक अक्षर छोटा तो दूसरा बड़ा तो तीसरा उससे भी बड़ा या इतना छोटा कि पढ़ा नहीं जाये आदि के नाम दर्ज थे!
कलेक्टर बडे़ संवेदनशील थे। यदि कोई ग्रामीण हस्तलिखित आवेदन लेकर आता तो वे उसे ज़रूर ध्यान से पढ़ा करते थे। इस आवेदन को भी उन्होंने दो बार पढ़ा था। उन्हें साल भर के अपने कार्यकाल में ऐसा आवेदन पहली बार मिला था। उन्हें यह बड़ा रोचक परंतु पीड़ादायक लगा था कि आज भी कैसे ग़रीबों को उल्लू बनाया जाता है। उन्होंने परियोजना अधिकारी को सात दिन में शिकायत की जाँच पूर्ण कर रिपोर्ट हेतु नियुक्त कर दिया।
’बख्शी’ परियोजना अधिकारी प्रसन्न थे। जाँच कर्म हेतु वे दूसरे दिन ही गाँव पहुँच गये। शिकायत कर्ताओं के बयान लिये। अब कुछ लोग आवेदन की बातों से दायें बायें हो रहे थे, लेकिन कुछ लोग अपने बयान पर क़ायम थे। सरंपच के बयान लिये वह आदिवासी महिला थी। उसने बस इतना ही कहा कि सचिव जहाँ दस्तख़त करवाता है वह विश्वास करके कर देती है। सरपंच के बयान के समय उसका पति पूरे समय शराफ़त का लबादा ओढे़ मँडराता रहा। परियोजना अधिकारी ने सचिव के कथन लिये। यह गाँव ज़िला मुख्यालय से 110 किलोमीटर दूर था। तथा रास्ता भी बीच-बीच में कच्चा व उबड़-खाबड़ था अतः वे देर हो जाने से गाँव में ही रात्रि विश्राम की नीयत से रुक गये। अब वे रुके तो पूरी व्यवस्था का दारोमदार उसी के कंधों पर आ गया जिसकी शिकायत थी। सचिव दुखीलाल तो सेवा का ऐसा मौक़ा ऐन मौक़े पर मिलने पर अति प्रसन्न था। उसने बख्शी की जमकर ख़िदमत की। मुर्गे के शौक़ीन बख्शी जी की सेवा में उसके घर बँधा दूसरा मुर्गा क़ुर्बान हो गया। मुर्गे के साथ दारू न हो तो मज़ा किरकिरा हो जाता है तो उसका भी माकूल इंतज़ाम किया गया।
परियोजना साहब ने जमकर दावत उड़ायी। दूसरे दिन उनकी वापिसी पर दो कड़कनाथ कुकड़-कुंओं को सचिव ने साथ पहुँचाने की व्यवस्था कर दी थी। लेकिन इस मुई जागरूकता का प्रभाव कहें कि दाल भात में मूसलचंद टाईप कुछ लोग इस घटनाक्रम पर जैसे प्रशासन बारीक़ी से नज़र रखते हैं; बारीक़ी से नजर रखे हुये थे। शिकायत पर कोई कार्यवाही होते न देख दसवें दिन वे पुनः कलेक्टर के यहाँ शिकायत करने पहुँच गये थे।
अबकी शिकायत सचिव के ख़िलाफ़ नहीं जाँच अधिकारी परियोजना अधिकारी की थी कि उन्होंने कड़कनाथ की दावत भी उड़ाई व गाँव से जाते-जाते दो मुर्गे सचिव से रखवा लिये हैं।
जाँच रिर्पोट कलेक्टर के सामने दो दिन पहले ही आयी थी उसमें परियोजना अधिकारी ने शिकायत को चुनावी राजनीति का परिणाम बताते हुये, पूर्णतः झूठी करार के दिया था! कलेक्टर ने अपना माथा पकड़ लिया था कि मुर्गे हड़पने की शिकायत की जाँच करने गया अधिकारी ही दारू मुर्गा डकार और ऊपर से दो मुर्गे झटक दोषी को क्लीन चिट दे रहा है तो वे अब क्या करें?
उन्होंने अब ज़िला विकास अधिकारी चौबे को जाँच के लिये नियुक्त कर दिया था। यह सप्ताह भर बाद आज दोपहर बाद गाँव में पहुँच गया था। गाँव वालों के पुनः बयान हो रहे थे। सचिव के भी बयान हुये। उसने आज कुछ अपने पक्ष के लोग भी खडे़ कर लिये थे। जो बीच-बीच में उसके समर्थन की बात करते थे। परियोजना अधिकारी भी बिना बुलाये शाम तक आ गये थे। अचानक मूसलाधर बारिश शुरू हो गयी। ज़िला मुख्यालय लौटना ऐसे मौक़े पर संभव नहीं था। तो अब परियोजना अधिकारी आगे-आगे होकर चौबे जी के रुकने व अन्य इंतज़ाम में लगे थे। पर पर्दे के पीछे से वे सब कामों के लिये सचिव दुखीराम को ही बोल रहे थे। वह आज फिर मुर्गे के इंतज़ाम में लगा था। उसने दो कारिंदों को शिकायती माहौल के बावजूद कुँआ स्वीकृत करवाने के प्रलोभन का चारा फेंक कर दो मुर्गो की योनि बदलवाने का इंतज़ाम कर लिया था। दारू मुर्गे की दावत के बाद बख्शी जी व ज़िला विकास अधिकारी गप्पें लड़ा रहे थे। दो मुर्गे तो योनि बदल तर चुके थे।
दूसरे दिन रिर्पोट बन गयी थी उसमें बख्शी जी को सफ़ाई से बचा लिया गया था! चौबे जी ने अपनी रिर्पोट कलेक्टर को सौंप दी थी। मुर्गा रिटर्न्स की शिकायत पुनः माह भर बाद हो गयी थी।
यह शिकायत एक मुर्गे के बदले आवक लिपिक से दबवा दी गयी थी!
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