विदेश जाने पर कोहराम
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी सुदर्शन कुमार सोनी1 Jun 2019
इस छोटी सी कालोनी में सुबह से ही कोहराम मच गया था। यहाँ रहने वाला एक युवा दंपती का, जो कि पेशे से इंजीनियर थे, पति सॉफ़्टवेयर इंजीनियर व पत्नी मेकेनिकल इंजीनियर थी, इन्हें कंपनी की ओर से विदेश जाने का असाईनमेंट आ गया था। लोग तो विदेश असाईनमेंट के नाम से ख़ुश होते थे लेकिन यहाँ आलम दूसरा ही था। इस घर में विलाप हो रहा था। इस दंपती का एक पाँच साल का बेटा भी था। बात पूरी कालोनी में जंगल की आग की तरह फैल गयी थी। मियाँ-बीबी के बीच तक़रार तो साधारण मामले होते हैं; पानी के बुलबुले की तरह पैदा व ख़त्म होते रहते हैं! तो कुछ लोग यह क़यास लगा रहे थे कि शायद मियाँ-बीबी में झगड़ा थोड़ा ज़्यादा हो गया है इसलिये इस घर मे विलाप का माहौल है! पति फिर से रात को देर से आया होगा। वो भी पीकर पढ़ा लिखा है तो क्या हुआ; पीकर आने में समाजवाद का नियम पतियों पर लागू होता है? सब बराबर हैं- क्या लेबर क्या टेक्नीशयन क्या जेलर क्या टैकी।
लेकिन गंगू ने थोड़ी सी पड़ताल की तो पता चला कि केवल विदेश जाने का मामला नहीं है बल्कि विदेश में नार्वे का असाईनमेंट मिला है और इसलिये दोनों मियाँ-बीबी फूट-फूट कर रो रहे हैं। इतना तो वे कभी साथ-साथ नहीं रोये थे; एक-दो बार दो-दो हाथ आपस में करने के बाद भी नहीं। जब से उन्होंने नार्वे की घटना सुनी थी तब से उन्हें लग रहा था कि वहाँ जाते ही उनकी हो न हो मुसीबतें शुरू हो जायेंगी! पाँच साल के बेटे को घर में तो पढ़ा सकते नहीं। जायेगा तो स्कूल ही और वहाँ अब टीचर पूछेंगे ही कि माँ-बाप इंडियन इडियट हैं; तो तंग तो नहीं करते? इंडिया छोड़ने की बात तो नहीं करते? तो आज का बच्चा तो नेट जनरेशन वाला बच्चा है। फ़ेसबुक व ट्विटर ब्राण्ड वाला बच्चा है; तो माँ बाप को यह डर सता रहा है कि कहीं नेट पर ही न कुछ लिख दे कि मम्मी, अच्छी अम्मी नहीं है। और डैड बिल्कुल डैड्ड है, मेरी स्माल-स्माल नीड्स की पूर्ति नहीं करते। मैं पिज़्ज़ा बर्गर की बात करता हूँ तो मुझे डाँट लगाते हैं। मैंने ज़रा सा लूमिया या गैलेक्सी मोबाईल माँगा तो वो न देकर मुझे डाँट लगायी कि अभी बहुत छोटे हो! क्या हम छोटे हैं? यदि ऐसा होता तो क्या नार्वे में टीचर की शिकायत पर पेरेंट्स को सज़ा मिलती। और बच्चे की इस ट्वीट पर लाखों ट्वीट आ जायेंगे फिर सरकार इंटरवीन करेगी और वे दोनों सलाखों के पीछे होंगे।
गंगू चूँकि इसी कालोनी का बाशिंदा था अतः अपने को रोक नहीं सका, दंपती से मिलने पहुँच गया। उन्हें बहुत सांत्वना देने की कोशिश की, लेकिन वे सिसकते रहे। उसने कहा कि ऐसी एक-दो घटनायें हो गई हैं, तो इसका ये मतलब कौन है कि सबके साथ यह होगा? दंपती नहीं माने बोले अब तो वहाँ इंडियन पेरेंटस हिट लिस्ट में है। बेटे को भी जबसे पता चला है वह अंदर ही अंदर ख़ुश है। वैसे मेरा बेटा राजा बेटा है लेकिन माहौल देखकर बदलने मे कितना वक़्त लगता है। राजा कब सज़ा दिलाने वाला माध्यम बन जायेगा ये नार्वे मे जाने पर ही पता चलेगा।
दंपती इतना आंतकित हो गया था कि इतना तो गंगू ने आतंकवादी हमले के समय भी किसी को डरा हुआ नहीं देखा था। दंपती का भी कहना इस पर सही ही था कि आतंकवादी कोई किसी पेरेन्टस को कौन जेल भेजते हैं? गंगू भी यहाँ असफल होकर घर को वापिस आ गया था। वह इन पेरेन्टस के ख़ौफ़ को ख़त्म नहीं कर पाया था वह दंपती मानने तैयार नहीं था कि वह तीसरा इंडियन नहीं होगा जो बच्चों के साथ प्रताड़ना पर प्रताड़ना का शिकार नहीं होगा।
अब गंगू सोच रहा था कि वैसे ही देश में समाज में इतनी समस्याएँ चल रही हैं और ये एक नये तरह की समस्या आ खड़ी हुई है। और इसका हल यहाँ नहीं है सुदूर विदेश में है! वह सोच रहा था कि आज शाम को चिंतन रेस्तरां में शुकुल जी से इस मसले पर गहन चर्चा करनी ही होगी। आख़िर देश के युवा इंजींनियर दंपतियों के अमन चैन का सवाल है!
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