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श्वान इंसान की पहचान

 

कहा जाता है कि एक इंसान के व्यक्तित्व के बारे में पता करना है तो उसके जूते ग़ौर से देखो। जिनको जूते में विश्वास नहीं हैं वे कहते हैं कि यदि किसी इंसान के ग़ुस्लख़ाने यानी की बाथरूम का मुआयना कर लो तो उसके व्यक्तित्व का मुआयना हो जाता है। पुराने सयान बुज़ुर्ग जन जब अपने पुत्र, पुत्री का रिश्ता तय करने जाते थे तो सामने वाले के घर के संडास में बिंदास हो आया करते थे। कुछ लोग व्यक्तित्व की पहचान दोस्ती या कंपनी से करते हैं कि ‘ए मैन इज़ नोन वाय दा कंपनी ही कीपस’ पर कुछ कहते हैं ‘ए मैन इज़ नोन वाय दा कंपनी ही डज़ नाट कीप’। 

पर गंगाधर तो इंसान की हर चीज़ का समाधान श्वान में खोजता है। चाहे प्रबंधन हो या धैर्य सीखना हो या कि अपने कम्फ़र्ट ज़ोन से बाहर आना हो या पूरे समय नाक में दम करवाना हो तो बस एक अदद कुत्ता पाल लें। विश्वास करें यदि आपके मन में कोई कुत्तापने की आदत ठहर गयी हो तो यह भी कुत्तेदार आदमी बनने पर जल्दी ही बाहर निकल जाएगी। वैसे ही जैसे विपक्षी दल के चुनाव जीतने पर इवीएम को कोसने की आदत निकल जाती है। 

आप तो बस उस आदमी का कुत्ता मेरे सामने ले आएँ जिसके बारे में आप कुछ ठोस जानना चाहते हैं। वैसे आर्थिक व मानसिक रूप से पोला आदमी तो कुत्ता पालने के बारे में न ही सोचे। कुत्ते व उसकी प्रजाति, परवरिश, आदि के आधार पर कुछ बानगियाँ पेश हैं। 

यदि किसी शख़्स का कुत्ता अच्छा ख़ासा तंदुरुस्त है उससे भी ज़्यादा तो यह एक उदार प्रकृति का इंसान है। अपने श्वान पर अच्छा ख़ासा ख़र्च करता है। यानी कि यह आदमी कंजूस नहीं है। पर ज़रूरी नहीं है कि यह आदमी दौलतमंद हो। हाँ दिल का दौलतमंद इसे कह सकते हैं। 

यदि किसी का श्वान बहुत उछल कूद करता है यानी कि बहुत एक्टिव है तो इसका मतलब है कि उसका मालिक भी एक एक्टिव इंसान है। या कि जो स्वभाव से एक्टिव होते हैं वो कुतरा भी एक्टिव टाइप ही पालते हैं। 

यदि किसी का कुत्ता हर दम डरा-सहमा सा रहता है। तो मान कर चलिए कि यह निगेटिव सोच वाला हमेशा आशंका ग्रस्त रहने वाला इंसान ही होगा। 

यदि कुत्ता विदेषी प्रजाति का हो जैसे कि लेब्राडोर, जर्मन शेफर्ड, डोबरमेन तो इसका मतलब कि यह आदमी स्वदेशी से ज़्यादा विदेशी पर यक़ीन रखता है। यह अपने बच्चों को कान्वेंट स्कूल में ही पढा़येगा। आमंत्रण पत्र अंग्रेज़ी में छपवायेगा। नेम प्लेट अंग्रेज़ी वाली लगाएगा। यदि किसी के यहाँ एक से अधिक कुत्ते हों और उसमें एक दो देशी भी हों तो दरअसल यह देशी को भी प्यार करने वाली बात है। 

श्वान के डील-डौल के हिसाब से भी कुत्तेदार आदमी के व्यक्तित्व का पता चलता है यदि किसी शख़्स के पास पिट बुल, ग्रेट डेन, डाबरमेन जैसे बडे़ फरमे वाले कुत्ते हों तो इसका मतलब कि यह इंसान भी अपने श्वान की तरह मौक़ा आने पर एग्रेसिव हो सकता है। यह आस-पड़ोस में अपना सिक्का कुत्ते के माध्यम से जमाना चाहता है। अब यदि कोई पामेरियन जैसे छोटे डील-डौल के कुत्ते पालता है तो इसका मतलब कि वह कुत्ते का शौक़ तो पूरा करना चाहता है पर ज़्यादा समस्याओं का फैलावा नहीं चाहता है। ‘स्माल इज़ ब्यूटीफुल’ में विश्वास करता है। वह अपने कुत्ते से केवल इतना चाहता है कि यह अवांछित लोगों पर न्यूनतम भौंक-भाँक समय-समय पर करता रहे। ऐसे भी मिलेंगे जो कि विश्व के सबसे छोटे डॉग चिहुआहुआ जैसी प्रजाति जो कि पाँच इंच से कम व डेढ़ किलो वज़न का होता है, को पालते हैं तो अब इनके बारे में क्या कहा जाए? इस पर अभी और रिसर्च करनी होगी। विचित्र व्यक्तित्व के स्वामी ऐसे श्वान स्वामी को कह सकते हैं। या ये इंसान अपने ख़ास श्वान के माध्यम से आमजन का ध्यान आकृष्ट करना चाहता है। वैसे आजकल हर जगह वज़नदारी का अभाव होता जा रहा है। चाहे राजनीति हो, नौकरी हो, रिश्ते हों। 

जो इंसान अपने कुत्ते को रात को घर के अंदर कर देता है वह उनके प्रति ज़्यादा संवेदनशील होता है। थोडे़ कठोर परन्तु व्यवहारिक सोच वाले लोग कड़ाके की सर्दी हो या कि जानलेवा गर्मी उसे रात को बाहर ही रखते हैं। ऐसे लोग अपने नौकर से भी कठोरता से पेश आते हैं। 

जो श्वान पालक अपने श्वान को अपने किचन, बेड आदि में भी आने/चढ़ने को बुरा नहीं मानते वे उसे परिवार का एक सदस्य की तरह मानते हैं। ये डाउन टू अर्थ की तरह के लोग होते हैं। 

जो श्वान पालक मांसाहारी श्वान को स्वयं शाकाहारी होने के कारण ज़बरदस्ती शाकाहारी भोजन ही खिलाते हैं ये वे लोग हैं जो कि दूसरे की भावना से खिलवाड़ करना अपना अधिकार समझते हैं। पर इसके उलट यदि कोई स्वयं सामिष है पर अपने श्वान को निरामिष भोजन खिलाने में गुरेज़ नहीं करता तो इसका मतलब है कि वह सामने वाले की भावनाओं की क़द्र करना जानता है। ऐसा आदमी अपने पेशे या नौकरी में आसानी से समन्वय बना लेता है। 

यदि कोई व्यक्ति सफ़ाई पसंद है तो बहुत लाज़िमी है वह अपने श्वान को भी नियमित रूप से नहलाना-धुलाना करता है। जो केवल जुम्मे के जुम्मे नहाने टाइप वाले हैं। उसका श्वान भी धूल से सना मिलेगा। 

जो अपने श्वान का इलाज सरकारी पशु चिकित्सालय व स्वयं का अच्छे निजी में करवाता है वह डबल स्टेंडर्ड वाला इंसान हो सकता है। जो अपने श्वान का निजी क्लीनिक में ही छोटी सी छोटी बात होने पर करवाता है वह दिलेर व अपने श्वान को वास्तव में प्यार करने वाला इंसान होता है। ऐसे शख़्स श्वान के नये कपडे़, नये पट्टे, नये खिलौने, नये-नये खाने के आयटम आदि चाहे जब लाकर अपने प्यार व केयरस की भावना का प्रदर्शन करता है। ऐसे लोग खुले दिल के होते हैं। 

जो इंसान देशी श्वान को पालता है वह देशी की क़द्र करना जानता है। वह समाज की परवाह नहीं करता। धारा से विपरीत चलने की क़ुव्वत रखने वाला इंसान होता है। 

आप कहोगे कि जो कुत्तेदार नहीं हैं तो उसके व्यक्तित्व पर कैसे प्रकाश डालेंगे। गंगाधर तो मानता है कि ये वो लोग हैं जो कि अपनी सुकून भरी ज़िन्दगी में किसी तरह का ख़लल नहीं चाहते। उन्हें मालूम है कि एक कुत्ता पालना एक इंसान के लिए आसान कार्य नहीं है। जेब ढीली, कम्फ़र्ट ज़ोन से चाहे जब बाहर होने एक पाँव से तैयार रहने की क़ुव्वत होना। पड़ोसियों से चाहे जब कुकर के कारण झगडे़ के लिए तैयार रहना। ये व्यावहारिक सोच के लोग हैं। कुछ ग़ैर कुत्तेदार लोग सड़क छाप को बिस्किट वग़ैरह दे कर अपने लिमिटेड एडीशन श्वान प्रेम का इज़हार कर लेते हैं . . . तो जो कुत्तापालक नहीं हैं उनके व्यक्तित्व के बारे में भी तो पता चल गया। कुत्तेदार न होना भी बहुत कुछ अपने आप में बयान कर देता है। 

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