ये भी अंततः गौरवान्वित हुए!
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी सुदर्शन कुमार सोनी15 Aug 2022 (अंक: 211, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
ये अपने को बड़ा हीन समझते थे। समझे भी कैसे न जब चहुँ ओर बह रही रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार की गंगा में डुबकी को कुम्भ में पवित्र डुबकी जैसा माना जा रहा हो।
लम्बे अंतराल बाद एक अदना से आरक्षक के यहाँ पाँच करोड़ की सम्पत्ति का आकलन छापामार एजेंसी ने किया था। पूरे आरक्षक वर्ग की पीड़ा दूर हो गयी थी! इस कुनबे के बहुसंख्यक काफ़ी दिनों से अन्य सेवाओं/पदों के लोगों से अँखियाँ मिलाने में हीन भावना का अनुभव करते थे। इस आबकारी आरक्षक के यहाँ छापे से सारे आरक्षक अपने सम्मान में बढ़ोतरी महसूस कर रहे थे। चुनिंदा होंगे जिन्हें बुरा लगा होगा तो लगता रहे उन्हें तो वैसे भी सिस्टम में अछूत माना जाता है। इस आरक्षक का तो, उसकी सेवा बिरादरी वाले उनका वश चलता तो, इस शानदार, धारदार उपलब्धि के लिये नागरिक अभिनन्दन करवा देते।
लिपिक अपने को कोसते रहते थे। लेकिन एक संभावनापूर्ण महकमे के होनहार लिपिक के यहाँ छापे में करोड़ों की संपति मिलने से इनकी भी हीन भावना उड़न छू हो गयी थी। इतने सालों बाद जाकर इन्हें समानता का बोध हुआ था। हम किसी से कम नहीं। बबुआ हम हैं बाबू साहब! चपरासी अभी तक अपने को कोसते रहते थे कि उनकी क़िस्मत में तो घड़ी-घड़ी बस घंटी सुनना ही लिखा है? लेकिन एक नगर निगम के चपरासी के यहाँ छापे में दो खोखे के बराबर सम्पत्ति का पता चलने पर इनका भी गौरव गान का घंटा बज गया था। ये बिरादरी भी आज गौरवान्वित महसूस कर रही थी। अभियंता से पीछे नहीं थी।
समिति सेवक तो अपने गौरव गान का घंटा कई बार बजवा चुके थे। आज उनकी एक प्रतिष्ठा थी। ये अत्यधिक मेहनत से कई छापों के बाद अर्जित हुई थी। सामाजिक प्रतिष्ठा व छापो का आपसी गहरा सबध है।
इनका कोई नामलेवा नहीं था। बडी़ दिक़्क़त हो रही थी लोगों के घरों को जगमग करने वाले अभियंताओं के होनहार सपूत के हाथ में कोई मालदार लड़की वाला अपनी ख़ूबसूरत लड़की नहीं देना चाहता था। लड़की का बाप दुनिया का सबसे ज़्यादा व्यावहारिक शख़्स होता है, ऐसे घर में क्यों अपनी लाड़ली का हाथ देगा? जहाँ के अधिकारियों की छापे पड़ने तक की औक़ात न हो।
ऊपर वाले के यहाँ देर है मगर अंधेर नहीं, उन्होंने इनकी भी सुन ली एक के बाद एक कुछ दिनों के अंतराल से बिजली इंजीनियरों ने भी नाम कमा लिया। इत्ता नाम कमा लिया कि शादी ब्याह वाले मामले में आ रही कठिनाई हमेशा के लिये दूर हो गयी! हर लड़की को अपने सपनों के राजकुमार को पाने का हक़ होता है!
अभी कुछ दिन पहले एक प्राचर्य सह विकास खंड शिक्षा अधिकारी को भी महाविद्यालयीन नहीं स्कूल वाले को छापामार एजेंसी ने खरे-खरे लेते हुए रँगे हाथों पकड़ लिया, तो स्कूली शिक्षा जगत की भी मायूसी दूर हुई। वे भी अपने को मुख्यधारा से कटा हुआ महसूस करते थे! डॉक्टर सरकारी तो चर्चित ही रहते है। परन्तु पशु चिकित्सक अपने आपको अति उपेक्षित महसूस करते थे। लेकिन भगवन वास्तव में कृपालु है, मन से की गयी कामना को पूरी करते है, भेद नहीं करते है डॉक्टर डॉक्टर में! कुछ दिन पहले एक पशु चिकित्सक के यहाँ भी छापेमारी हो गयी थी और इस एक ही छापे से स्वजातीय पदीय बंधुओ का सिर गर्व से ऊँचा उठा गया था।
छापेमारी भी संतुलन का ध्यान रख सब के यहाँ हाथ डालती है। सच्चा समाजवाद यही है! लेकिन इसका श्रेय छापामारी करने वाली एजेंसी को ही दिया जाना चाहिये कि वह नये-नये हीरे खोज कर लाती है। जिनको लोग मिट्टी समझते थे वे कोहिनूर निकलते हैं!
देश-प्रदेश व समाज के विकास के आधार स्तम्भ शिक्षा, स्वास्थ्य, निर्माण, सिंचाई, सबको आपने देख लिया कि डुबकी लगाने में पीछे नहीं हैं। रही बात प्रशासनिक व नियामक विभागों व कर विभागों की जिनका काम विकास के लिये कर वसूलना व क़ानून व्यवस्था बनाये रखना है इनकी डुबकियाँ तो चाहे जब अख़बारों में छायी रहती हैं। इनकी डुबकियाँ तो भ्रष्टाचार की गंगा के शाही स्नान होते हैं, इन्हें अभी कवरेज की ज़रूरत नहीं है!
देश की प्रगति व अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाली खेती किसानी के महकमे कृषि विभाग के एक मैदानी अधिकारी ने उसके यहाँ हुई छापेमारी में अकेले दम ही सारी कमी एक बार में पूरी कर दी।
अभी भी कई लोग मायूस थे कि उनको व उनके महकमे के अच्छे दिन तो कभी नहीं आने वाले है। उन्हें तो पैदाइशी फुक्कड़ माना जाता है, प्रशासन में फ़क़ीर वाली इमेज है उनकी, तनख़्वाह पर जीने वाले लोग हैं। बाक़ी लोग तो कहते हैं इनकी धारणा ग़लत है तनख़्वाह में आदमी जीता नहीं है, मरता है, मरणासन्न रहता है! बीबी बच्चे रोज़ गरियाते हैं, उनका बस चले तो जूतम-पैजार भी कर दें! वो तो लिहाज़ कर लेते हैं कि अपना ही बापू है अपना ही पति है! आज नहीं तो कल अपनी ग़लती समझेगा और झोली भर कर लाना देर-सबेर शुरू कर देगा!! बाद जेल में चक्की पीसेगा तो तब कि तब देखी जायेगी!
छापेमारी के महकमे से निवेदन है कि कुछ और महकमों को गुमनामी रूपी हताशा से बेलआऊट करने में मदद करें, नहीं तो ये अवसाद में चले जायेंगे! हमाम में सब नंगे है सबके अपने अपने स्तर पर गले तक डूबे पंगे है, ताज्जुब की बात कि इन्हीं में ये चंगे महसूस करते हैं!
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