सारे पते अस्पताल होकर जाते हैं!
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी सुदर्शन कुमार सोनी1 Jul 2022 (अंक: 208, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
कोरोना में बेड की मारा-मारी में अस्पताल कित्ती दुर्लभ चीज़ है ये हम सबने जाना। कोरोना से कई नयी चीज़ें उभर कर सामने आयीं। वर्क फ़्रॉम होम एक ऐसा ही न्यू नॉर्मल हो गया है। दूसरा कि पैसा भी जान नहीं बचा सकता। पोस्ट कोरोना में एक और नयी चीज़ पता चली कि अब हर के सारे पते अस्पताल होकर ही जाते हैं या कि कोई पता खोजना हो तो सबसे बड़ा माइल स्टोन अब अस्पताल ही हो गया है।
अभी पिछले सप्ताह की ही बात थी मुझे शहपुरा में एक परिचित के यहाँ पहली बार जाने का मौक़ा मिला था। मेरी कार के पिछले बार गूगल मैप के चक्कर में एक गड्ढे में पहुँचने की घटना जब से हुई है मैं गूगल मैप लगाकर कभी पता नहीं खोजा करता। हमने मनीषा मार्केट के सिग्नली तिराहे के पहले रुककर पता पूछा तो बताया गया कि वो जो शेखर अस्पताल है न उसके बाजू से सीधे जाकर दायें मुड़कर फिर बायें फिर दायें होगे तो वो एक लाइफ़ लाईन अस्पताल है उसके पास ये आपका वाला मकान गिरेगा। मैं समझा कि मूसलाधार बारिश हो रही है इसलिए ये मकान को गिरा रहा है। तो हमें परिचित का मकान तभी मिला जबकि दो अस्पतालों के पास से अपना एकल कारवां गुज़रा।
सारे पते अस्पताल होकर जाते हैं की एक कहानी और सुनें। हमें अरेरा कालोनी में एक दोस्त के यहाँ जाना था। उसने पता बताया कि नर्मदा अस्पताल के बाजू की गली से आगे बढ़ना तो अग्रवाल अस्पताल आयेगा। हमने कहा, “हाँ, आ जायेगा पर मुझे वहाँ भर्ती नहीं होना।” बोला, “ध्यान से सुनो वहाँ से पहले एक सड़क अंदर जाती है उसमें सीधे नाक की सीध में चले जाना एक नाक कान गले विशेषज्ञ का क्लीनिक आयेगा। उसके भी सीध में चले जाना तो वो किनारे आँखों का बड़ा अस्पताल वो एएसजी आयेगा। बस उसके थोड़ा आगे जाकर बायें मुडे़गा तो थोड़ा आगे अपना ग़रीबख़ाना दायें हाथ में मिल जायेगा।” फिर एक पते के लिये तीन अस्पतालों के पास से अपनी सवारी गुुज़री। मुझे लगा कि शहर में पान की दुकानें कम हो गयी हैं और अस्पतालों की दुकानें बढ़ गयी हैं।
अंतर शहर घुम्मकड़ी की अपनी आदत जाने का नाम नहीं लेती। किसी न किसी के यहाँ मुँह उठाकर किसी न किसी काम से या यों ही गप्प लगाने जाना ही जाना है। एक दोस्त हमारा रोहित नगर फ़ेज़ दो में रहता है। उसके नये बने मकान का गृहप्रवेश था। नहर वाली सड़क पहुँचकर हमने उसको फ़ोन किया। तो बोला कि सीधे चले आ अगले चौराहे पर दायें हाथ में एक फार्मेसी पडे़गी फिर आगे बढे़गा तो बायें हाथ में एक और मेडिकल शॉप पडे़गी। मैंने बीच में टोका कि मेडिकल अस्पताल के अलावा और कोई माइल स्टोन नहीं है क्या? बोला कि अभी अस्पताल की कहाँ बात की? बायीं वाली मेडिकल शॉप से आगे बढ़ेगा तो बढ़ते जाना पुष्पांजलि अस्तपाल तक, उसके आगे पुष्पांजलि मेडिको है बस उसके आगे की सड़क से बायें घुस आना, वहाँ एक मेडिकल स्टोर्स वाले शर्मा जी रहते हैं, उनके बाजू वाला अपना है। इस शहर में जहाँ भी जाओ या तो अस्पताल या मेडिकल शॉप या पेथाॅलोजी लैब ही नज़र आती है। पूरा शहर इनसे अटा पड़ा है।
कमलापार्क के पास वाले इलाक़े में अपना एक और मित्र अज़हर रहता है। कोविड पूर्व उसके यहाँ दो साल पहले गया था; अब कोविड के बाद पहली बार जा रहा था। एक जगह रास्ता भटक गया तो अस्पताल ने ही रास्ता बनाया। भले कोरोना में कई अस्पतालों ने लोगों का जीवन का रास्ता डायवर्ट कर यमराज गली की ओर मोड़ दिया था। दोस्त ने फ़ोन पर बताया कि वो जो वरदान अस्पताल है न उससे नीचे उतर कर सीधे चले आना वहीं आगे को अपना ग़रीबख़ाना है। वरदान अस्पताल अपने लिये भी वरदान ही साबित हुआ।
बात कमलापार्क से नये विकसित व विकासशील क्षेत्र होशंगाबाद रोड आ गयी। वैसे इसे अब होशंगाबाद के नाम परिवर्तन के बाद नर्मदापुरम रोड कहना चाहिये जो कि भोपाल में कोई नहीं कहता। दोस्त को पूछा तो उसने कहा कि सीधे आओ कहा तक नोबल अस्पताल तक बस उसके आगे से बायें घुस जाना जो भी कट मिले उसके पीछे अपना मकान है नम्बर पढ़कर आ जाना।
क्या करें, भोपाल की बसाहट ही ऐसी हो गयी है कि पता बताना हो तो किसी न किसी अस्पताल का नाम तो लेना ही पड़ता है; धन्यवाद कोरोना। हमारा एक दोस्त कोविड के बाद से नहीं आया था। शुक्र है कि एक-दूसरे के हम दोनों दोस्त दूसरी वेब से बचे रहे तो दोनोंं एक दूसरे को भरपूर देख लेना चाहते थे। कोरोना ने दोस्त क्या किसी के सिर से बाप का तो किसी के सिर से माँ का तो किसी के सिर से दोनोंं का साया छीन लिया। भाई की बहिन नहीं रही बहिन का भाई नहीं रहा। हमने दरअसल चार इमली में अपना मकान बदल लिया था। उसे साकेत नगर से आना था। हमने कहा कि वो डॉक्टर दुबे के अस्पताल के सामने से सीधे आकर अंडर ब्रिज से नीचे उतर कर सीधे फैक्चर अस्पताल के सामने से होते हुए बांसखेड़ी से आगे बढ़ते चलो। ग्लोबस अस्पताल के आगे चौराहे से बायें मुड़ जाना। थोड़ा आगे पहुँचो तो अक्षय अस्पताल के आगे से चार इमली के अंदर दाख़िल हो जाना। बस अंदर की मेन रोड पर तिराहे पर एक डॉक्टर मिश्रा का मकान है उसके थोड़ा सा आगे अपना है। यही माइल स्टोन है। बहुत आगे नहीं आ जाना नहीं तो वो एक दूसरे डॉक्टर पेयर का मकान है, वहाँ पहुँच जाओगे। और ज़्यादा आगे चार इमली की मेडिकल शॉप वाले इलाक़े में मत पहुँच जाना। क्या करें जब गंगाधर को सारे लोग पता अस्पताल से ही जोड़कर बताते हैं तो उसका कुछ न कुछ असर तो पडे़गा ही।
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