साहब के कुत्ते का तनाव
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी सुदर्शन कुमार सोनी1 Jan 2020 (अंक: 147, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
शुकुल जी सुबह-सुबह चाय की चुस्कियों के साथ अख़बार बाँचने का मज़ा ले रहे थे। इस समय शुकुल जी अपने को काफ़ी तनाव मुक्त महसूस करते हैं। वैसे यह भी शोध का विषय हो सकता है कि कोई दैनिक अख़बार पढे़ और तनाव में न आये?
अभी शुकुल जी कुछ देर तनावरहित रहकर चाय व समाचार पत्र का मज़ा ले ही पाते कि तनावपूर्ण समाचारों की चलती-फिरती दुकान उनका दोस्त ’गंगू’ अचानक आ टपका। अब ये बंदा आ टपका तो अकेले तो आता नहीं है, साथ में कुछ न कुछ पटक लाता है। इस बार तनाव का चुनाव चर्चा के विषय के रूप में लेकर आया था। शुकुल जी ने सौजन्यतावश चूँकि होली का त्यौहार अभी-अभी बीता था, गंगू के लिये चाय लाने की पुकार लगा दी। बस इतना, गंगू की हौसला अफ़ज़ाई के लिये काफ़ी था। वह तुरंत शुरू हो गया।
गंगू: "शुकुल जी आज हर आदमी ’तनाव की नाव’ पर सवार है कहा जाये तो ग़ल्त नहीं होगा?”
शुकुल जी ने सोचा कि अभी तक तो वह तनाव मुक्त थे, लेकिन जिसका गंगू जैसा नगीना दोस्त हो वह कहाँ ज़्यादा देर तनाव मुक्त रह सकता है। बोले, "कैसे कह रहे हो कि हर व्यक्ति तनाव में है?”
गंगू: "होली में जिसने होली अच्छे से खेली और जिसने नहीं खेली दोनों तनाव ग्रस्त हो जाते हैं?”
शुकुल जी ने प्रति प्रश्न किया, "कैसे?”
गंगू: "होली खेलते तो अच्छा लगता है, लेकिन फिर घर आकर रंग छुटाने में तनाव हो जाता है, बहुत मशक़्क़त के बाद भी ऐसा लगता है कि दो-चार दिन तो अभी आधे बदरंग बने रहेंगे। और जो नहीं खेलता है, वह भी तनाव में रहता है! उसे तो लगता है कि जब सारे जहां ने होली खेली तो वह क्यों सुंदर व ’भोली’ पड़ोसन से होली खेलने के अवसर से वंचित रहा? सबने तो मज़ा किया। उसने क्यों ज़्यादा भद्र बनने के चक्कर में अपने को सज़ा दे दिया?
"होली में जो भंग की गोली ले लेता है, वह भी बाद में तनाव में आ जाता है। जब बहुत देर तक आईने के सामने उसके बुत बन खडे़ रहने पर पत्नी पर्दे की आड़ में सारा नज़ारा ताड़ कर ज़ोर से लताड़ लगाती है, तो फिर भंग का नशा मज़ा नहीं सज़ा लगने लगता है!”
शुकुल जी, "वाह भाई वाह, चाय पीने के बाद तुम्हारा पैराशूट रूपी दिमाग़ खुल जाता है?”
"एक और चाय गुझिया व नमकीन के साथ बुलवाओ तो आगे और करतब भंग के बिना भंग के रंग के सुनाऊँ।"
गंगू बोला "शुकुल जी तनाव की बात चल रही है, तो केवल यह इंसान को ही नहीं होता है; यह तो जानवरों को भी होता है। जानवरों में भी इंसान जो कि सबसे बड़ा ख़ुदगर्ज है, के सबसे वफ़ादार दोस्त श्वान को बहुत होता है!”
शुकुल जी बोले, "श्वान और तनाव? विश्वास नहीं होता, कैसे?”
गंगू: "क़िस्सा सुनो! यह बँगले और कोठी के कुत्तों को ज़्यादा होता है। मैं ऐसे एक कुत्ते को रोज़ तनाव में देखता हूँ।"
शुकुल जी: "यदि यह साहब का कुत्ता है तो इसे तनाव किस बात का? यह तो सुबह शाम पॉटी करने भी जाता है, तो एक सेवक साथ रहता है। तुम कैसे कह रहे हो कि इसे तनाव रहता है? बात कुछ हज़म नहीं हुई। अरे यह नाश्ता करता है, सुबह शाम बढ़िया खाना खाता है। नान वेज भी चाहे जब ग्रहण करता है। सेवा और बैठे बैठे मेवा यही दो काम तो इसके हैं। सर्दी में स्वेटर पहनता है, गर्मी में कूलर, एसी में सोता है, रोज़ शाम को कार में घूमने जाता है, कई इंसानों से कहीं बेहतर यह श्वान ज़िंदगी जीता है। कई लोग तो कहते हैं कि हे भगवान अगले जन्म में उन्हें ऐसा ही ऐश करने वाला कुत्ता बना देना! फिर भी तुम कह रहे हो कि यह तनाव के घूँट पीता है? यह सच नहीं सफ़ेद झूठ है!
गंगू: "आप तो सुन ही नहीं रहे हैं! बँगले के कुत्ते या कहें कि बडे़ कुत्ते के तनाव भी बडे़ होते हैं! इसे दूसरे तरह का तनाव है। इसके बँगले में रोज़-रोज़ बंदर अंदर आकर धमाचौकड़ी मचाते हैं, यह बेचारा देखता रह जाता है। वह बंदर को मज़ा चखाने की कोशिश करता है, दौड़ा-दौड़ा कर पटकना चाहता है, तो बंदर ठहरे इंसान के पूर्वज तो कुछ कुटिलता तो जन्मजात है इनमें। ये छलाँग लगाकर झटपट पेड़ पर या चहारदीवारी पर चढ़ जायेंगे और तो और बँगले के कुत्ते को ये अपना कुत्तापन दिखाने से भी बाज़ नहीं आयेंगे। उसे अपने दाँत भींच-भींच कर दिखा चिढ़ाते रहते हैं! अब आप बताओ साहब का कुत्ता यह सब बर्दाश्त कर पायेगा क्या? जब साहब को सब्र नहीं होता तो उनके कुत्ते को क्यों होना चाहिये? साहब को कोई ऐसे दाँत दिखाये तो वे उसे दो मिनट में निलम्बित कर दें। श्वान के बँगले में श्वान को ये कपि जो चुनौती देते हैं और वो इनका कुछ कर नहीं पाता है! इसी कारण यह बहुत तनाव में है। तनाव के कारण इसे तो सारे आराम, ऐश्वर्य बेकार लगते हैं वह सोचता है कि उससे बेहतर तो सड़क छाप अवारा श्वान हैं?
"साहब के कुत्ते को अनेकों तनाव है। साहब और यह दोनों चहारदीवारी में रहते हैं। साहब तो ठीक है। बहुत से काम हैं। परन्तु यह तनाव में है कि सड़क छाप कुत्ते इश्क़-दीवानी खुलेआम फ़रमाते हैं, लेकिन चहारदीवारी के बंधन के कारण इसे अपनी जवानी दीवानी बंधन में लगती है। इसे घुटन महसूस होती है।
"इसे तो तोते चिड़ियाँ, गिलहरियों का आना-जाना भी तनाव ग्रस्त बनाता है। यह सोचता है कि अबकि तो चिड़िया पर झपट्टा मार ही लूँगा। वह बगुले की तरह ध्यान लगाकर आगे बढ़ता ही है कि चिड़िया ताड़ जाती है फुर्र से उड़ जाती है।"
शुकुल जी यह गाथा सुनकर प्रभावित हो गये। बोले, "वाह गंगू! कुत्तों के तनावों के प्रति भी इतनी संवेदनशीलता! श्वान प्रेमियों को पता चलेगा तो तुम्हे सम्मानित करने का संदेश चला आयेगा। साहब के कुत्ते के तनाव के बारे में साहब से ज़्यादा तुम्हे ज्ञान व भान है! सही बात है इंसान के सानिध्य में जो भी रहेगा उसे कुछ न कुछ तनाव तो होगा ही। जैसे कि जंगल के शेर को कोई तनाव नहीं, बिंदास जीवन जीता है, लेकिन सर्कस का शेर तनाव ग्रस्त रहता है। जिन लोगों को कोई तनाव नहीं रहता वे भी केवल इसीलिये तनाव में रहते हैं!”
तनाव की व्याख्या देर तक चलने से शुकुल जी को कार्यालय देर से जाने का तनाव पैदा हो रहा था, अतः गंगू को जयरामजी कहकर उन्होंने पीछा छुड़ाया।
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