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नये अस्पताल का नामकरण

 

कोरोनाई समय में उद्योग धंधे जहाँ रोज़ दम तोड़ बंद हो रहे थे वहाँ एक उद्योग बहुत फल फूल रहा था। यह अस्पताल उद्योग था। केरल सरकार दूरदर्शी निकली वो नये धार्मिक स्थलों के निमार्ण पर रोक लगा सकती है; वहाँ का एक आँकड़ा आया है कि वहाँ अस्पतालों से कई गुने अधिक धर्म स्थल हैं। पर यदि भोपाल में अस्पतालों की संख्या की तुलना स्कूलों से की जाए तो अस्पताल बाज़ी मारेंगे। अब समर्थन वाले कह सकते हैं कि अस्पताल कोई हमेशा बीमार के लिये कौन होते हैं? स्वस्थ व्यक्ति भी यदि सजग होकर अपने सारे महँगे परीक्षण नियत अवधि में करवा, जेब ख़ाली करवाता रहे तो उसके बीमार होने के चांसेस ही कम रहेंगे। 

कोरोना के दौरान व बाद अस्पतालों के खुलने की बाढ़-सी आ गई थी। राजधानी की हर गली व उसका नुक्कड़ अस्पतालों से पट गया था। आज आप यदि सौ मीटर ही चल लें तो पाँच अस्पताल व दस दवाई की दुकानें आपको मिल जायेंगी। बहुत से अस्पताल तो ग्लो साईन बोर्ड में ऐसे ग्लो करते हैं कि दूर से पाँच सितारा होटल लगते हैं। लगें भी क्यों न उनका रिसेप्शन भी तो वैसा ही होता है। वही सूटेड-बूटेड एक्ज़ीक्यूटिव जिसमें सुंदर बालाओं की संख्या हमेशा बीस होती है। बस इनके कांऊटर व फ़ाईव स्टार होटल के रिसेप्शन में एक ही अंतर घड़ियों का होता है। न्यूयार्क टोक्यो लंदन आदि में क्या समय हो रहा है यह आप वहाँ देख सकते हैं; यहाँ नहीं। शायद इसलिए भी नहीं कि सात समुंदर पार का समय देख कर आप करोगे क्या यदि आपका समय आ गया हो तो सीधे इंद्रलोक ही तो आपको जाना है। ऐसा कोरोना के समय हुआ भी ख़ूब। निकट रिश्तेदार मृतक का चेहरा देखने तक तरस गये। 

राजधानी की इस गली का, इस महीने उद्घाटन होने वाला यह पाँचवाँ अस्पताल था। याद रखें सुधि पाठक मैं गली के पाँचवें की बात कर रहा हूँ। राजधानी में मुख्य सड़कों के अलावा सैंकड़ों गलियाँ होती हैं तो कुल अस्पताल कितने खुले होंगे पिछले दो-तीन साल में आप अंदाज़ा लगा सकते हैं। वैसे भी आज आप भोपाल को झील नगरी नहीं अस्पताल नगरी कह सकते हो। आई लव माई भोपाल बिकाज़ ऑफ़ ए लॉट ऑफ़ अस्पताल। 

इस अस्पताल ने अबकि बार एक नायाब काम किया खुलने के पहले ही। वैसे अस्पताल हमारी, हमारे बीमार होने पर देख-रेख करते हैं; हमें ठीक कर ठोक-पीट कर घर को वापस भेजते हैं। उसके बदले वे जमकर बिल थमाते हैं। अधिकारों के साथ आप कर्त्तव्य की बात सोचने लगे। बाज़ार के इस युग में कर्त्तव्य की बात न करें। इसने एक प्रतियोगिता रख दी कि अस्पताल का नाम सुझाएँ जो सबसे अच्छा नाम सुझाएगा उसे जीवन भर निःशुल्क इलाज की सुविधा यहाँ मिलेगी। गंगाधर को पक्का विश्वास है कि आपको इस बात पर अविश्वास हो रहा है। कारण वही अमेरिकी फ़िल्म अभिनेता व केलिफ़ोर्निया के गर्वनर रहे श्वार्जनेगर का जिन्हें एक पाँच सितारा होटल ने कभी यह ऑफ़र एक ऑनर के रूप में दिया था कि जीवन भर कभी भी आपके चाहने पर यहाँ का एक सुईट आपको निःशुल्क उपलब्ध कराया जायेगा। वे एक बार सच में इस होटल में इस ऑफ़र का फ़ायदा लेने पहुँचे तो उन्हें बताया गया कि कोई भी रूम होटल में ख़ाली नहीं है। आख़िर वे विरोध स्वरूप होटल के बाहर ही धरने की मुद्रा में बैठ गए। 

ख़ैर मुद्दे की बात पर आते हैं। नामकरण की प्रतियोगिता में लोगों ने एक से बढ़कर एक नाम दिए। किसी ने लाइफ़ लाईन, तो किसी ने मार्डन चिकित्सालय, तो किसी ने शुभ, तो किसी ने वरदान, तो किसी ने हैल्दी अस्पताल नाम दिया। एक ने तो अशोक नाम दिया, तो एक ने शोक नाम दिया। अब ये दोनों ही जानें कि इन्होंने ऐसा नाम कैसे दिया? एक ने शहर के बाज़ू से गुज़रने वाली नदी का नाम सुझाया। एक बंदे ने लक्ष्मी तो एक ने धनश्री तो एक ने धनवर्षा नाम दिया। आख़िरी के तीन नामों की शॉर्ट लिस्टिंग की गई। डॉक्टरों ने इन नामों पर कोई उत्साह नहीं दिखाया पर अस्पताल के उद्योगपति डॉक्टरों के निरुत्साह से ज़रा भी हतोत्साहित नहीं हुए। उन्होेने धनवर्षा का चयन किया। और यक़ीन मानिए—धनवर्षा अस्पताल इनको ऐसा फला कि तीन साल में ही इसकी दो और शाखाएँ खुल गयीं। अन्य कोई भी उद्योग धंधा बंद हो जाए पर आपने कभी नहीं देखा होगा कि एक अस्पताल खुलने के बाद बंद हुआ हो। 

पुराने ज़माने की मानसिकता लोग पाले हुए हैं कि अस्पताल की पहली प्राथमिकता बीमार का इलाज है। होगी पर इसके लिये सरकारी होना चाहिए। निजी की भी है पर उससे महत्त्वपूर्ण है अस्पताल का एक बिजनेस मॉडल के रूप में संचालन। 

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