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भ्रष्टाचार व गज की तुलना

 गज और भ्रष्टाचार एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ कह जाते हैं पता नहीं अभी तक क्यों साहित्यकारो की नज़र इस तुलन योग्य आयटम पर नहीं पड़ी? वे न जाने किस-किस चीज़ की किस-किस से तुलना करते हैं; इतना बड़ा जंतु उपलब्ध है परंतु इनके दिमाग़ के तंतु उसकी तुलना, इतनी बड़ी समस्या- भ्रष्टाचार से नहीं कर पाये! और ज़माने भर की फ़ालतू चीज़ों से तुलना करते रहे।

भ्रष्टाचार गज यानी कि हाथी के समान ही है! जब हाथी निकलता है अपनी मदमस्त चाल में तो कुत्ते तो भौंकते ही हैं, और भौंकते ही रह जाते हैं लेकिन उसकी मस्त चाल में कोई अंतर नहीं पड़ता है। भ्रष्टाचार के गज का भी ऐसा ही मानना है कि ईमानदारी की दुम बनने वाले लोग श्वान से भी गये बीते हैं। जब वह फलता-फूलता है, सैर पर शान से निकलता है तो यह श्वान की मानिंद भौंकते रह जाते हैं, कर कुछ नहीं पाते हैं। सदियों से यही तो हो रहा है - भ्रष्टाचार का हाथी जब अपने काम पर निकलता है तो शिष्टाचारी आडंबरी लोग बेफ़जूल की टीका-टिप्पणी करके डिस्टर्ब करने की कोशिश करते हैं। कहने का मतलब है कि जब कोई भ्रष्टाचार का मामला जैसे घोटाला इत्यादि सामने आता है तो लोग ख़ूब भड़ास निकालते हैं। लेकिन कुल मिलाकर कुछ होता जाता नहीं है, हाथी कितना भी दुबला हो जाये हाथी ही रहता है। उसी तरह भ्रष्टाचार को कितना भी कमज़ोर करने अशक्त करने की कोशिश की जाये इसकी सशक्तता कभी कम नहीं होती है। हाथी जब मस्त हो जाता है, तो चिंघाड़ता है यह स्थिति तब आती है, जब उसे भरपूर भोजन मिल जाता है व वह हथिनी के साथ के लिये बावला हो जाता है। इसी तरह भ्रष्टाचार का हाथी भी है, वह ख़ूब हज़म कर मदमस्त हो जाता है, तो चिंघाड़ने लगता है, व्यवस्था को चुनौती देने लगता है। यह ईमानदार व नियम कानून की बात करने वालों पर ज़्यादा चिंघाड़ता है!

हाथी कभी अकेले नहीं चलता है समूह में रहता है, नहीं तो ख़तरा रहता है। वही हाल भ्रष्टाचार रूपी हाथी का भी है वह अकेले नहीं गिरोह बना कर काम करता है! हमारे यहाँ तो कहा ही जाता है न कि अफ़सर नेता, ठेकेदार व अपराधी का चरने वाला गिरोह होता है जो सरकारी योजनाओं रूपी हरी मुलायम घास को पूरा का पूरा ऐसा चर डालता है कि किसी को कानोकान ख़बर तक नहीं होती। इस गिरोह में छोटे-बड़े सभी होते हैं वैसे ही जैसे कि हाथी के झुंड में होते हैं, छोटे को बड़े संऱक्षण देते हैं। भ्रष्टाचार रूपी गिरोह के हाथी भी यही काम करते हैं वे छोटे भ्रष्टाचारियों को अपना भाई-भतीजा मानकर संऱक्षण प्रदान करते हैं उन्हें मालूम है कि इसका नतीजा उनके ख़िलाफ़ कभी नहीं जाने वाला। आख़िर बड़ा भ्रष्टाचार भी तो इन्हीं छोटों के दम पर किया जा सकता है, कोई अकेले के बूते की बात कौन है?

कभी-कभी लेकिन अजीब घटना घटती है! आप ने भी कई बार सुनी होगी कि उसी महावत को जिसको वह इतना प्रेम करता था हाथी ने सूंड से हवा में कई फीट ऊपर उछाल कर उसकी इहलीला समाप्त कर दी! भ्रष्टाचार भी यही करता है कभी-कभी अपने ही पोषक को, उसके रखवाले को ही अपने कारनामों से ऐसी पटकनी देता है कि उसे दिन में ही तारे नज़र आने लगते हैं। मतलब यह भी किसी का सगा नहीं होता है।

हाथी का जब पेट भर जाता है तो उसका पानी में मस्ती का मन होता है। वह वाटर बॉडी में जाकर घंटों जलक्रीड़ा करता है। इसे हाथी का गंगा स्नान भी कह सकते हैं! ठीक इसी तरह भ्रष्टाचार का हाथी भी ख़ूब मरते दम तक चरने के बाद फिर पुण्य कमाने के काम जैसे अस्पताल, स्कूल को दान, ग़रीबों को सहायता, गंगा स्नान व तीर्थ यात्रा पर निकल कर अपने पाप धोने का प्रयास करता है।

हाथी को जैसे काला बहुत पंसद है इसीलिये वह काला है। भ्रष्टाचार को भी काला बहुत पसंद है इसीलिये वह आपने देखा होगा कि कोयले से कई सालों से लिपटा हुआ है। सड़क बनते ही उखड़ जाती हैं क्योंकि उसकी ताकत वो काला डामर, वह उसमें किसी "बूढ़ी लुगाई की आँखों में काजल" के बराबर ही डालता है। हाथी जैसे शाकाहारी होता है, वैसे ही भ्रष्ट लोग बड़े नियम-क़ायदे को मानने वाले होते हैं। नित मंदिर जाना, खद्दर पहनना, उपवास करना आदि करते हैं। बस एक ही काम में उनका मन लगता है वह है अपना घर भरना।

जैसे हाथी व शेर आसपास हों तो एक दूसरे को डिस्टर्ब नहीं करते हैं, चुपचाप निकल जाते हैं। उसी तरह दो भ्रष्टाचारी सदाचारी की भाँति एक दूसरे के काम में कभी दखल नहीं देते हैं, हर काम के कुछ एथिक्स आख़िर होते हैं कि नहीं!

हाथी के दाँत जैसे खाने के और दिखाने के अलग होते हैं, ऐसे ही भ्रष्टाचार होता है, वह ऊपर से बड़ा शिष्ट दिखता है लेकिन अंदर से उतना ही भ्रष्ट होता है!

जैसे इतने शक्तिशाली हाथी को एक अदना सी चीटी परेशान कर सकती है। वैसे ही शक्तिशाली भ्रष्टाचारी हाथी को यूँ तो हज़ारों शिकायतों व जाँचों से कुछ नहीं होता है, लेकिन कभी-कभी एक ज़रा सी शिकायत व उसकी ठीक से जाँच या मीडिया में उसका कवरेज उसका जीना हराम कर सकता है। उसका सालों का साम्राज्य ताश के पत्तों की तरह मिनटो में ढह जाता है। इसके ढेरो उदाहरण आपने देखे हैं, देखते आ रहे हैं।

भ्रष्टाचार का हाथी जब गिरोह बना कर काम करता है तो ये उग्र व बेकाबू होकर समाजिक व्यवस्था की ईमानदारी की, योग्यता की फ़सल नष्ट उसी तरह रौंद देता है जैसे कि जंगली हाथियों का गिरोह उत्पाद मचा कर करता है, फसल मकान इंसान सबको रौंदते चलता है। और इसको कोई भी आज तक काबू नहीं कर पाया है।

यही तो "भ्रष्टाचार के गज" के साथ हो रहा है वह सालों से व्यवस्था रूपी फ़सल को अपने पैरो तले रौंद रहा है लेकिन कोई उसे पूरी तरह रोक नहीं पाया है, चिंता सब व्यक्त करते है!!

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