अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद प्रशिक्षण व शोध केन्द्र
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी सुदर्शन कुमार सोनी23 Feb 2019
पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक मियां मुर्शरफ बड़ी ग़ज़ब की चीज़ हैं। नहीं होते तो लंदन में बिता रही सुकून भरी ज़िंदगी को तिलांजली देकर वतन को क्यों आते? एक समय, जब वे सैनिक तानाशाह थे, बयान दिया था कि आतंकवादियों की गर्दन उनके हाथों में है और चाहे जब वे उसे कबूतर की गर्दन की तरह मरोड़ सकते हैं! फिर एक बार उन्होंने कहा कि "ये इंडियनस् झूठ बोलते हैं, ’पाकिस्तानी सैनिकों ने किसी भारतीय सैनिक के सिर नहीं काटे’ ये इंडिया वालों की ही कारस्तानी है"! फिर वे बोले कि पाकिस्तान नहीं भारत ही आतंकवाद पाकिस्तान में प्रायोजित कर रहा है! गंगू सोचता है कि पाकिस्तान के हुक्मरान जब-जब बोलते हैं तो बड़ा कर्रा बोल जाते हैं। चाहे जब कश्मीर का बेसुरा राग अलापने लगते हैं।
अभी कुछ दिनों पहले मुशर्रफ मियां ने ऐतिहासिक व साहसी स्वीकारोक्ति कर ली है कि, हाँ, हम कश्मीरी आतंकवादियों को प्रशिक्षण देते रहे हैं! हाफिज सईद तो पाकिस्तान का हीरो है!! वैसे पाकिस्तान ही आतंकवाद प्रायोजित करता है, आतंकवादियों को प्रशिक्षण देता है, यह एक बार नहीं सैकड़ों बार पकडे़ गये आतंकवादियों ने ख़ुद स्वीकार किया है। यह पाकिस्तान के लिये एक ’काला सच’ है। और यह कहना कि मुंबई हमले के पर्याप्त सबूत भारत ने नहीं दिये, सदी का ’सफेद झूठ’ है।
पाकिस्तान की आतंकवाद के प्रायोजन रूपी खेती बडे़ लाभ का धंधा है! इसे आतंकवाद के ख़ात्मे के नाम पर अमेरिका से करोड़ों अरबों डॉलर की सहायता मिलती रही है और यह मुल्क इसी दम पर साठ से अधिक सालों से चल रहा है नहीं तो कब का रसातल को चला जाता? विदेशी कर्ज़ में गले तक डूबे पाकिस्तान में ’अवाम बेहाल हैं लेकिन हुक्मरान मस्त हाल’ हैं।
जैसे भारत के बारे में कहा जाता है कि वह अंतरिक्ष विज्ञान से विदेशी मुद्रा बडे़ पैमाने पर कमा सकता है और इस समय वह यह कमा भी रहा है। बहुत से विदेशी उपग्रहों का प्रक्षेपण अब भारत करने लगा है। लेकिन पाकिस्तान की भी तो चिंता करो वहाँ के हुक्मरान नहीं कर रहे हों तो न करें! पड़ोसी होने के नाते हमारा तो फ़र्ज़ है कि वहाँ भी व्यापार उद्योग की उन्नति हो, नये-नये शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना हो, कौशल विकास केन्द्र स्थानीय हुनर विकसित करने वाले प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना हो।
गंगू पड़ोसी मुल्क का भी बड़ा शुभ चिंतक है। उसके पास एक ’मन की बात’ है और वहाँ भी यदि मोदी जी की तरह ’माय गर्वनमेंट’ जैसी कोई बेवसाईट हो तो वहाँ वह यह बात पहुँचाना चाहता है। वैसे वहाँ माई गवर्नमेंट नहीं ’दाई गवर्नमेंट’ अर्थात आतंकवादियों से डिक्टेटेड गवर्नमेंट है।
गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में पंख लग जायेंगे यदि यह कर दिया जाये। आप सोच रहे होंगे कि पर्यटन उद्योग को वहाँ पर बढा़वा देने की बात हम करना चाह रहे हैं? पहले तो इस पर ग़ौर करें कि वहाँ सबसे ज़्यादा हुनर स्थानीय रूप से क्या है, संसाधन किस बात के हैं, सत्ता व सैन्य प्रतिष्ठान में बैठे लोगो की तासीर क्या है!
उसे एक ’अंतरराष्ट्रीय आंतकवाद प्रशिक्षण व शोध केन्द्र’ खोल लेना चाहिये। अब यह कहाँ पर होना चाहिये तो अनाधिकृत रूप से हथियाये गये कश्मीर से अच्छा लोकेशन और कौन सा होगा। इसमें लागत भी ज़्यादा नहीं आयेगी इनके प्रशिक्षण केन्द्र तो पहले से ही लुके-छिपे चल रहे हैं। उन्हीं में से एक के आसपास जहाँ थोड़ी और ज़मीन हो मतलब उर्वरा भूमि और आंतकवाद की फ़सल काटने की ज़मीन है, वहाँ पर इस केन्द्र का शिलान्यास कर दिया जाये और इस अवसर हेतु सबसे अच्छा मुख्य अतिथि ’हाफिज सईद’ ही होगा। वैसे भी उसे ’स्टेट गेस्ट’ जैसा दर्जा देकर सम्माननीय बनाकर वहाँ की सरकार ने रखा है!
इस संस्थान को खोलने में ज़्यादा दिक़्क़त वहाँ नहीं आयेगी, जैसे कि अधो संरचना की बात रही सो वो पहले से ही है, उसे ही थोड़ा विस्तार और देना पडे़गा। बाद में नया वृहद काम्पलेक्स बनता रहेगा। दूसरा, स्रोत व्यक्तियों की इसे कमी नहीं रहेगी। सेना व आईएसआई के लोग सालों से आतंकवादियों की बेशर्मी से ट्रेनिंग करते आ रहे हैं! पठानकोट एयरबेस में हमले में भी यह सिद्ध हो चुका है। जबकि आतंकवादी रूपी आस्तीन का साँप पालने के कारण वह स्वयं कई बार पेशावर के आर्मी स्कूल, एयरबेस हमलों के रूप में साँप के दंश रूपी गम्भीर चोट खा चुका है। लेकिन वे आत्म बरबादी की कगार पर पहुँचने के बाद भी इसे बंद करना नहीं चाहते हैं। वैसे यह अच्छा क़दम अब सिद्ध हो रहा है! यदि बंद कर देते तो प्रस्तावित ’आतंकवाद प्रशिक्षण व शोध केन्द्र’ में स्रोत व्यक्तियों का टोटा पड़ जाता। वैसे चाहे तो दाऊद इब्राहीम व हैडली जैसो की भी मदद ले सकते हैं; इन्हें ’विशिष्ट अतिथि स्रोत व्यक्ति’ या विज़िटिंग फेकल्टी के रूप में रख सकते हैं।
हाफीज सईद जैसे तो विशिष्ट फेकल्टी के रूप में एक पैर पर चाहे जब विषविमन लेक्चर के लिये तैयार रहेंगे। हाँ, इस संस्थान का डायरेक्टर किसे बनाया जाये? कई दावेदार हैं वहाँ ’लश्करे तैयबा’, ’जैशे मोहम्मद’, ’तहरीके पाकिस्तान’ के कमांडर को बना सकते हैं। यह संस्थान बाद में मानद डी लिट की तर्ज पर ’मानद डी टेरर’ की डिग्री बाँटेगा। इसके लिये मौत का तांडव मचाने वाले आतंकवादी संगठनों के सरगनों को विशेष समारोह में आमंत्रित कर सम्मानित किया जायेगा।
गंगू को पड़ोसी के नाम से शुभ लाभ फेम सुझाव ख़ूब आ रहे हैं। इस संस्थान को पाकिस्तान को वास्तविक रूप से विश्व स्तरीय बनाना चाहिये। उसका फ़ायदा यह होगा कि वह पूरे विश्व में जहाँ-जहाँ आतंकवादियों की ज़रूरत पड़ती रहती है उन्हें सप्लाई कर सकेगा! सोचें इससे कितना धन विदेशी मुद्रा के रूप में इस कंगाल देश को अर्जित होगी। यह संस्थान यदि अच्छे से चल जाये तो अमेरिका पर आर्थिक सहायता के लिये निर्भरता काफ़ी काम हो जायेगी। पूरा कर्ज़ दस-पाँच सालों में ही उतर जायेगा और पूरे विश्व के आतंकवादियों और ऐसी सरकारें जो आतंकवाद के बारे में दोगली नीति रखती हैं, की नज़र में नापाक पाक चढ़ जायेगा। और बेरोज़गारों को वहाँ की परिभाषा के मान से ’सार्थक काम’ भी मिल जायेगा। चाहे चेचन्या हो, फिलीस्तीन हो, यमन हो, नाईजीरिया हो, केन्या हो! हर जगह से पाकिस्तान को अग्रिम आर्डर मिल जायेंगे। आर्डर बुक अगले दस साल की फ़ुल रहेगी। इसमें और भी स्कोप है अमेरिका व कुछ पश्चिमी ताक़तें हमेशा दोगली नीति खेलती हैं, इसलिये इनकी ख़ुद की भी आतंकवादियों की माँग समय-समय पर खड़ी होती रहती है! आऊट सोर्सिंग का ज़माना है; यह काम वे पाकिस्तान से ही करवायेंगे। जैसे इंडियनस् को अब ’माऊस चार्मर्स’ कहा जाता है तो पाकिस्तानियों को विश्व समुदाय ’टेरोरिज़्म चार्मर्स’ कहेगा।
’वसुधैव कुटुम्बकम’ की वैसे भी पाकिस्तान की परिभाषा अलग है। यह सारे विश्व में ज़रूरत पड़ने पर अपने यहाँ से अतिवादी लड़ाके सप्लाई कर सकता है। वह ’वसुधैव आतंककुटुम्बकम’ की धारणा में विश्वास रखता है; इस काम के लिये सारा विश्व उसका एक परिवार है। वैसे भी बगदादी, ज़वाहिरी और अन्य बेचारे छिप-छिपा कर अपने काम को अंजाम देते हैं। भारत व कई अन्य देशों से चंद युवा बेकार में आईएस आईएस में जाते हैं और वहाँ से बेआबरू होकर वपिस आना पड़ता है कि ये स्तरहीन लड़ाके हैं! अब जब साल भर की ट्रेनिंग वाला आतंकवादी इस सेन्टर में तैयार होगा तो बक़ायदा वह सर्टिफ़िकेट धारी होगा और उसके हिसाब से वह पगार व अन्य सुविधाओं के लिये बारगेनिंग कर सकता है। भारत में युवाओं के स्किल डेवेलपमेंट के लिये नेशनल स्किल डेवलपमेंट मिशन बनाकर कार्य हो रहा है तो पाकिस्तान भी आतंक के स्किल का विकास करने के लिये नेशनल मिशन बना कर काम कर रहा लगता है!
बाद में पाकिस्तानी सरकार को इसके अन्य केन्द्र भी खोलने पड़ेंगे बिजनैस इतना चल पडे़गा। भारत के अंतरिक्ष विज्ञान के बिजनेस से ज़्यादा विदेशी मुद्रा यह कमाने लगेगा। सोचें कि प्रशिक्षण मॉडयूल सामग्री आदि तैयार करने में कितने लोग खप जायेंगे। ओवेसी जैसे को भी विदेशी अतिथि वक्ता के रूप में आमंत्रित किया जा सकेगा! वे वहाँ राष्ट्रवाद की सही मीनिंग समझायेंगे! वे वहाँ ’भारत माता की जय’ की जगह ’पाकिस्तान बाप की जय’ का नारा दे सकते हैं! लेकिन बाद में वे ’जय हिन्द’ धीरे से कह कर पतली गली से निकल लेंगे। संस्थान में कुछ पीठें भी बाद में या शुरू में ही स्थापित हो जाये तो चार चाँद लग जायेंगे, जैसे कि ’मियां परवेज़ मुर्शरफ पीठ’ इस पीठ का ब्रह्म वाक्य होगा कि ’गर्व से कहो कि हाँ हम आतंकवादी तैयार करते हैं’! वैसे उन्हें इस संस्थान का ’प्रोफ़ेसर इमेरिटस’ नियुक्त कर देने की गंगू अभी से माँग कर रहा है ऐसा खरा पारखी बाद में नहीं मिलेगा।
एटबाबाद या ओसामा के नाम से एक पीठ और बन सकती है और एक पीठ दाऊद के नाम से भी बना देनी चाहिये जिसने कि देशभक्त भारतीय मुस्लिमों की छवि में न मिटने वाला बट्टा लगाया है! यह भगोड़ा शायद भूल गया कि अमेरिका में जब कोई मुस्लिम किसी अपराधिक कृत्य में गिरफ़्तार होता है तो वह अपने को ’भारतीय मुस्लिम’ कहकर वहाँ की पुलिस के उदार रवैये का हक़दार हो जाता है!
वैसे यहाँ के प्रशिक्षुओं को ऑन फ़ील्ड ट्रेनिंग भारत में भी देने में कोई दिक़्क़त नहीं आयेगी! यहाँ के सुरक्षा संस्थानों में, जिस थाली में खायें उसी में छेद करने वाले शुभचिंतक मौजूद हैं। और पाक वैसे भी भारत के कई शहरों को यहाँ की बिना अनुमति के ही अपनी आतंकवाद की प्रयोगशाला मानता आया है। वो तो भारत की संसद लोकतंत्र के मंदिर में भी अपना नापाक प्रयोग कर चुका है!
हाँ, गंगू विनती करता है कि संस्थान के पाठयक्रम में यह शामिल कर लेना कि यह हिंदुस्तां ठीक नहीं है, यह आतंकवाद को मानवता का दुश्मन कहता है और गुड व बैड टेरोरिज़्म की बात करता है, विश्व समुदाय को इसके लिये एकजुट होने का आह्वान करता है, इस मामले में संयुक्त राष्ट्र की खिंचाई करता है, कहता है कि आतंकवाद को केवल गन पिस्टल व बॉम्बिंग से नहीं जीता जा सकता बेरोज़गारी से युवाओं को निजात दिलानी है!
हाँ, यहाँ प्रशिक्षण लेने वालों को यह सच्चाई न बतायी जाये कि भारत में जितने भी आतंकवादी सीमा पार से भेजे जाते हैं उनमें से एक भी ज़िंदा वापिस नहीं पहुँचता। यहाँ के जवान जान हथेली में लेकर सबका दाह संस्कार यहीं करने का पुनीत बंदोबस्त कर देते हैं। आख़िर वे सबसे अनुशासित सेना के सदस्य हैं और यह जानते हैं कि बाद में पाकिस्तान इनके शव भी लेने से इंकार कर देगा! यदि यह पहले से ही जता दिया गया तो फिर संस्थान में नामांकन का टोटा पड़ जायेगा!
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