पाक के आतंकवाद की टेढ़ी दुम: पालतू डॉगी की नाराज़गी
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी सुदर्शन कुमार सोनी1 Jun 2025 (अंक: 278, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
जब से टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर यह मुहावरा चला है कि “पाकिस्तान का आतंकवाद कुत्ते की टेढ़ी दुम जैसा है, जो बारह साल नली में डालो तो भी सीधा नहीं होता”, मेरे पालतू डॉगी ‘डोडो’ का आत्मसम्मान आहत हो गया है। उसने न सिर्फ़ खाना छोड़ दिया, बल्कि मुझे देखकर पूँछ हिलाना और नज़र मिलाना भी बंद कर दिया है।
डोडो का तर्क है—“हमने वफ़ादारी को जीवन-दर्शन बनाया और आप हमें उस मुल्क की सोच से जोड़ रहे हैं जो हर दिन आतंकियों को भेजता है और फिर झूठ की प्रेस कॉन्फ़्रेंस करता है।” उसकी आँखों में ग़ुस्सा और चोटिल आत्मसम्मान साफ़ दिखता है। सच मानिए, उसकी इस नाराज़गी ने मुझे भी सोचने पर मजबूर कर दिया।
कुत्ते जान दे सकते हैं लेकिन गद्दारी नहीं करते, और पाकिस्तान . . .? वह आतंकवाद को पालता-पोसता है, फिर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कहता है कि “हम सबसे ज़्यादा पीड़ित हैं।” सवाल उठता है कि जब आस्तीन में आतंक के साँप पाल रहे थे, तब ज़मीर किसने निगल लिया था?
हमारे देश में जहाँ कुत्ते घर की रखवाली करते हैं, वहाँ पाकिस्तान में आतंकी राष्ट्र की नीति और सेना की रणनीति बन गए हैं। उनके जनाज़ों में बड़े अफ़सर शामिल होते हैं, उन्हें ‘शहीद’ कहा जाता है। ऐसे में डोडो की नाराज़गी वाजिब है—एक सजग चेतना की प्रतीक।
उसका मौन प्रश्न है—“क्या वफ़ादारी की क़ीमत इतनी गिर गई कि आतंक परस्त मुल्क के बराबर रख दिया?” अब मैं भी सोचता हूँ कि हमें कहना चाहिए था—“पाकिस्तान की सोच वह बारूद लिपटी रेखा है जो न सुधरती है, न रुकती है।”
डोडो कहता है, “हम भौंकते हैं तो देश-समाज के लिए, वो बम फेंकते हैं रिहायशी इलाक़ों में।” पाकिस्तान संघर्षविराम की भीख माँगता है, फिर उसी दिन सीज़फायर तोड़ देता है। यही अंतर है वफ़ादारी और आतंक में।
-
डोडो की राय में अब हर टेढ़ी चीज़ को कुत्ते की दुम कहना बंद होना चाहिए। अगर पाकिस्तान की फ़ितरत टेढ़ी दुम है, तो अब उसे “डिस्लोकेट” करने का समय आ गया है। पाकिस्तान की दुम अब अंतरराष्ट्रीय दबाव, आर्थिक नकेल और ऑपरेशन सिंदूर जैसी ठोस रणनीति से ही सीधी हो सकती है। आतंक वहाँ का ‘कुटीर उद्योग’ है और झूठ उनका ‘विदेश मंत्रालय’।
आज जब दुनिया टेक्नॉलोजी और नवाचार में निवेश कर रही है, पाकिस्तान अब भी जिहाद में निवेश कर रहा है। उनकी पसंदीदा नीति है—“झूठ बराबर तप नहीं, और साँच बराबर पाप नहीं।”
डोडो ने दुम से जुड़ी और भी कई बातें कहीं। मसलन, “मुंबई जैसे शहरों में जगह की कमी के कारण हमारे साथी अब ऊपर-नीचे दुम हिलाते हैं।” वहीं इंसान–बिना दुम के भी–हर बड़े के सामने दुम हिलाने में पीछे नहीं रहता। जैसे अफ़सर मंत्री के सामने, मातहत बॉस के सामने।
अब डोडो का अल्टीमेटम है—“अब ‘कुत्ते की मौत मरना’ या ‘कुत्ते की तरह लड़ना’ जैसे मुहावरे भी नहीं चलेंगे। यदि हम सारे कुत्ते एक साथ भौंकने लगें, तो ध्वनि प्रदूषण से ही मानव जाति का जीना हराम हो जाएगा—जैसे चंद आतंकवादियों ने पूरी दुनिया का सुख चैन हराम कर रखा है।”
अंत में डोडो का आग्रह—“हम वफ़ादारों की जात को ‘आतंकिस्तान’ की हरकतों से मत जोड़िए। नहीं तो हम कुत्ते भी लोकतांत्रिक तरीक़े से एकजुट होकर विरोध में भौंकना शुरू कर देंगे।”
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
60 साल का नौजवान
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | समीक्षा तैलंगरामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…
(ब)जट : यमला पगला दीवाना
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | अमित शर्माप्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- एनजीओ का शौक़
- अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद प्रशिक्षण व शोध केन्द्र
- अगले जनम हमें मिडिल क्लास न कीजो
- अन्य क्षेत्रों के खिलाड़ियों के गोल्ड मेडल
- असहिष्णु कुत्ता
- आप और मैं एक ही नाव पर सवार हैं क्या!
- आम आदमी सेलेब्रिटी से क्यों नहीं सीखता!
- आर्दश आचार संहिता
- उदारीकरण के दौर का कुत्ता
- एक अदद नाले के अधिकार क्षेत्र का विमर्श’
- एक रेल की दशा ही सारे मानव विकास सूचकांको को दिशा देती है
- कअमेरिका से भारत को दीवाली गिफ़्ट
- कुत्ता ध्यानासन
- कुत्ता साहब
- कोरोना मीटर व अमीरी मीटर
- कोरोना से ज़्यादा घातक– घर-घर छाप डॉक्टर
- चाबी वाले खिलौने
- जनता कर्फ़्यू व श्वान समुदाय
- जियो व जीने दो व कुत्ता
- जीवी और जीवी
- जेनरेशन गैप इन कुत्तापालन
- टिंडा की मक्खी
- दुख में सुखी रहने वाले!
- धैर्य की पाठशाला
- नख शिख वर्णन भ्रष्टाचार का
- नयी ’कोरोनाखड़ी’
- नये अस्पताल का नामकरण
- नोटों का कार्य जलना नहीं जलाना है!
- परोपकार में सेंध
- पाक के आतंकवाद की टेढ़ी दुम: पालतू डॉगी की नाराज़गी
- बेचारे ये कुत्ते घुमाने वाले
- भगवान इंसान के क्लासिक फर्मे को हाईटेक कब बनायेंगे?
- भोपाल का क्या है!
- भ्रष्टाचार व गज की तुलना
- मल्टीप्लेक्स और लुप्तप्रायः होता राष्ट्रीय चरित्र
- मार के आगे पति भी भागते हैं!
- मुर्गा रिटर्न्स
- युद्ध तुरंत बंद कीजो: श्वान समुदाय की पुतिन से अपील
- ये नौकरी देने वाला एटीएम कब आएगा!
- ये भी अंततः गौरवान्वित हुए!
- विज्ञापनर
- विदेश जाने पर कोहराम
- विवाद की जड़ दूसरी शादी है
- विश्व बैंक की रिपोर्ट व एक भिखारी से संवाद
- शर्म का शर्मसार होना!
- श्वान इंसान की पहचान
- श्वान कुनबे का लॉक-डाउन को कोटिशः धन्यवाद
- संपन्नता की असमानता
- साम्प्रदायिक सद्भाव इनसे सीखें!
- सारे पते अस्पताल होकर जाते हैं!
- साहब के कुत्ते का तनाव
- सूअर दिल इंसान से गंगाधर की एक अर्ज
- सेवानिवृत्ति व रिटायरमेंट
- हाथियों का विरोध ज्ञापन
- हैरत इंडियन
- क़िला फ़तह आज भी करते हैं लोग!
आत्मकथा
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 1 : जन्म
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 2 : बचपन
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 3 : पतित्व
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 4 : हाईस्कूल में
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 5 : दुखद प्रसंग
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 6 : चोरी और प्रायश्चित
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं