साम्प्रदायिक सद्भाव इनसे सीखें!
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी सुदर्शन कुमार सोनी15 May 2022 (अंक: 205, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
एक ओर तो हिन्दु व मुस्लिम सम्प्रदाय में तनातनी चलने से चाहे जब आपसी सद्भाव के तराजू का संतुलन बिगड़ जाता है। तो दूसरी ओर एक ही धर्म के दो सम्प्रदायों शिया व सुन्नी तो केथोलिक व प्रोटेस्टेंट्स में भी चाहे जब आपसी सद्भाव बिगड़ जाता है। आम लोग समाज के प्रबुद्व वर्ग, अपने धर्म गुरुओं तक की नहीं सुनते; स्थिति नियंत्रण में पर तनावपूर्ण रहती है। आज की सबसे बड़ी समस्या यह तनातनी हो चली है। लेकिन निराश नहीं होना चाहिये हर समस्या का समाधान पास में ही छिपा होता है।
कुछ नहीं घर से निकल कर बस अहाते में आ जाएँ। यह अहाते देशी–विदेशी के, जो कि आजकल कम्पोज़िट हो गये हैं, एक ही परिसर में दोनों ठेके संचालित हैं। सद्भाव इससे बेहतर कहीं से नहीं सीखा जा सकताहै। पर देखिये यहाँ भी अँग्रेज़ी का ही बोलबाला है संयुक्त देशी–विदेशी मदिरा दुकान कह सकते थे। पर नहीं कम्पोज़िट कहेंगे। दो सम्प्रदाय एक देशी ठर्रा पीने वाला व दूसरा अँग्रेज़ी पीने वाला दोनोंं परस्पर सम्मान व सद्भाव की भावना के साथ अपने अपने पौवे को ख़ाली करने में लीन हैं।
इन दो सम्प्रदायों के मध्य आपको तनिक सा भी तनाव नहीं मिलेगा जबकि दोनोंं की आदतों में कितना अंतर है। एक को अँग्रेज़ी अच्छी नहीं लगती तो दूसरे को देशी नहीं, लेकिन वे इस सिद्धांत को मानते हैं कि भले ही मैं आपके आचार-विचार से सहमत न होऊँ लेकिन उसका सम्मान करना मेरी नैतिक जवाबदारी है। इसी के तहत वे एक ही परिसर में आजू-बाजू बैठकर अपने अपने ग़म ग़लत करते हैं। लेकिन मजाल कि कोई किसी के सम्प्रदाय उसकी आदतों उसकी पसंद–नापसंद के बारे में आक्षेप करे। अन्य सम्प्रदायों जैसे नहीं कि तुम मांसाहारी और मैं शाकाहारी तुम्हारा और हमारा मेल कहाँ।
अनुशासन भी यदि आपको किसीसे सीखना हो तो वह पियक्कड़ समुदाय से बेहतर कोई नहीं हो सकता। लॉकडाउन का समय ज़रा याद कीजिए। वैसे ज़रा क्या यह तो पूरा भी कोई नहीं भूल पायेगा। कितने दिन वे बिना पिये रहे और शान्ति से रहे। लॉकडाउन के बाद जब दारू की दुकानों के शटर अप हुए तो वे लम्बी-लम्बी क़तारों में शान्ति से लगे रहे। कोई धक्का-मुक्की, कोई शोर-शराबा नहीं। सरकार को कोसने जैसा निराश मध्यम वर्ग जैसा कोई काम नहीं। अपनी बारी का शान्ति से इंतज़ार किया। इतना अनुशासन तो फ़ौज में भी नहीं दिखता। जब रंगरूट पहले के सिनेमाघरों में रविवार को फ़िल्म देखने जाता था तो टिकट खिड़की के सामने लगी रेलिंग पर चढ़ कर बैठ जाता था। क़तार का कोई मायने नहीं। यहाँ देखो पिन ड्रॉप साइलेंस, अपनी बारी का पूरी शालीनता से इंतज़ार। शालीनता भंग होनी होगी तो पीने के बाद होगी!
महँगाई के बारे में भी ये ख़ु्द्दार सम्प्रदाय कभी शिकायत नहीं करते। दारू से ज़्यादा रेट किसी चीज़ के नहीं बढ़ते। ठेके महँगे पर महँगे होते जाते हैं। तो फुटकर दारू के भी हो जाते हैं। परन्तु वो उफ़ नहीं करता वह जानता है कि वह दारू गटक कर समाज व अर्थव्यवस्था की सटक पर राजस्व का प्रवाह बढ़ा रहा है। समाज पर उपकार कर रहा है। कई स्कूल अस्पताल उसके दारू न गटकने से रातों-रात बंद हो जाएँ पर वह ऐसी असेवा कभी नहीं कर सकता। समाज जो सस्ते राशन मुफ़्त इलाज व सस्ती बिजली पानी में मटक रहा है वह उनकी दारू की गटक के ही कारण हैं। उसे शाम होते ही जो तलब उठती है वह समाज सेवा की ही है मदिरा तो साधन है साध्य तो समाज व देश सेवा है।
तनातनी के इस माहौल में सभी सम्प्रदायों से अनुरोध है कि कम्पोज़िट दुकान में जाकर देशी व विदेशी के शौक़ीनों से सद्भाव व परस्पर सम्मान की भावना व आपसी क़द्र करना है, जाकर देखें और सीखें।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
60 साल का नौजवान
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | समीक्षा तैलंगरामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…
(ब)जट : यमला पगला दीवाना
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | अमित शर्माप्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- एनजीओ का शौक़
- अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद प्रशिक्षण व शोध केन्द्र
- अगले जनम हमें मिडिल क्लास न कीजो
- अन्य क्षेत्रों के खिलाड़ियों के गोल्ड मेडल
- असहिष्णु कुत्ता
- आप और मैं एक ही नाव पर सवार हैं क्या!
- आम आदमी सेलेब्रिटी से क्यों नहीं सीखता!
- आर्दश आचार संहिता
- उदारीकरण के दौर का कुत्ता
- एक अदद नाले के अधिकार क्षेत्र का विमर्श’
- एक रेल की दशा ही सारे मानव विकास सूचकांको को दिशा देती है
- कअमेरिका से भारत को दीवाली गिफ़्ट
- कुत्ता ध्यानासन
- कुत्ता साहब
- कोरोना मीटर व अमीरी मीटर
- कोरोना से ज़्यादा घातक– घर-घर छाप डॉक्टर
- चाबी वाले खिलौने
- जनता कर्फ़्यू व श्वान समुदाय
- जियो व जीने दो व कुत्ता
- जीवी और जीवी
- जेनरेशन गैप इन कुत्तापालन
- टिंडा की मक्खी
- दुख में सुखी रहने वाले!
- धैर्य की पाठशाला
- नयी ’कोरोनाखड़ी’
- नये अस्पताल का नामकरण
- परोपकार में सेंध
- बेचारे ये कुत्ते घुमाने वाले
- भगवान इंसान के क्लासिक फर्मे को हाईटेक कब बनायेंगे?
- भोपाल का क्या है!
- भ्रष्टाचार व गज की तुलना
- मल्टीप्लेक्स और लुप्तप्रायः होता राष्ट्रीय चरित्र
- मार के आगे पति भी भागते हैं!
- मुर्गा रिटर्न्स
- युद्ध तुरंत बंद कीजो: श्वान समुदाय की पुतिन से अपील
- ये भी अंततः गौरवान्वित हुए!
- विज्ञापनर
- विदेश जाने पर कोहराम
- विवाद की जड़ दूसरी शादी है
- विश्व बैंक की रिपोर्ट व एक भिखारी से संवाद
- शर्म का शर्मसार होना!
- श्वान कुनबे का लॉक-डाउन को कोटिशः धन्यवाद
- संपन्नता की असमानता
- साम्प्रदायिक सद्भाव इनसे सीखें!
- सारे पते अस्पताल होकर जाते हैं!
- साहब के कुत्ते का तनाव
- सूअर दिल इंसान से गंगाधर की एक अर्ज
- सेवानिवृत्ति व रिटायरमेंट
- हाथियों का विरोध ज्ञापन
- हैरत इंडियन
- क़िला फ़तह आज भी करते हैं लोग!
आत्मकथा
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 1 : जन्म
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 2 : बचपन
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 3 : पतित्व
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 4 : हाईस्कूल में
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 5 : दुखद प्रसंग
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 6 : चोरी और प्रायश्चित
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं