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पलायन

मेहता दम्पति पुराने शहर का अपना मकान बेचकर शहर के पॉश इलाके में रहने आ गयी, यह सोचकर कि इस इलाके में पानी/बिजली की अच्छी व नियमित सेवायें मिला करेंगी जो कि पुराने शहर में नहीं थीं।

कुछ समय बाद शहर में बिजली कटौती शुरू हो गई जो पहले पुराने शहर के इलाकों में होती थी। फिर यह निर्णय हुआ कि झुग्गी झोपड़ियों में बहुत बिजली चोरी की जाती है अतः इन इलाकों में भी कटौती की जाये। मेहता दंपति का नया आशियाना था तो पॉश इलाके में परंतु पास में झुग्गियों का समूह होने से यहाँ भी कटौती प्रारम्भ हो गई। अब वे पुनः परेशान रहने लगे। चार-चार घंटे की कटौती से परेशान होकर साल भर बाद उन्होंने एक नयी बन रही टाऊनशिप में मकान लेकर पुनः घर गृहस्थी शिफ्ट कर ली। अब वे तसल्ली में थे। कुछ दिन सब ठीक चलता रहा परंतु यह क्या? छह माह बाद इस टाऊनशिप के पास खाली पड़ी सार्वजनिक जगह में कुछ झुग्गियों को प्रशासन ने इलाके में अतिक्रमण की कार्यवाही के बाद विस्थापन के तौर पर बसाने का निर्णय ले लिया।

मेहता दंपति अब पुनः विद्युत कटौती की पीड़ा से बचने के चक्कर में उसीकी लपेटे में आ गये थे।

सीख

"पलायनवाद किसी भी समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सकता है।"

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