फगुवाया मौसम गली गली
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत डॉ. शोभा श्रीवास्तव1 Apr 2021 (अंक: 178, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
फगुवाया मौसम गली गली
झूमे बासंती पुरवाई।
अबके होली में ख़ुशियाँ भरी
रंगों की गंगा लहराई॥
टेसू फूले, कचनार खिले
मदमाने लगी है अमराई,
कोयल ने छेड़े गीत मधुर
भँवरों की गूँजी शहनाई
अंबर सिंदूरी रंग, रँगा
धरती मुस्काई धानी में
वन-उपवन बासंती रंगत
हलचल नदिया के पानी में
चहुँ ओर सुहाना मौसम है
हर छटा निराली मन भाई
फगुवाया मौसम गली गली . . .
मनभावन के घर आवन की
पाती जीवन रस घोल गई
ख़त में टिपकारी रंगों की
सब भेद हृदय के खोल गई
प्रियतम की पिचकारी से जब
छलकेगा रंग, तरंग भरा
भीगी चोली, भीगा आँचल
गाएँगे गीत उमंग भरा
हुए गाल गुलाबी लजवंती
घूँघट में गोरी शरमाई
फगुवाया मौसम गली गली . . .
मत समझो यह बस खेला है
होली ख़ुशियों का मेला है
रँग लो जीवन का सूनापन
छोड़ो आती-जाती उलझन
रंग देखो किसने फेंका है
रंग ही तो मन का एका है
तो आओ हम मनुहार लिए
झूमें रंगीन बहार लिए
जीवन में सबके जाए बिखर
फिर वही ख़ुशियों की तरुणाई
फगुवाया मौसम गली गली
झूमे बासंती पुरवाई।
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