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बारिश और वह बच्चा

बुख़ार में तपता मेरा शरीर
जो पानी को छूने से भी डरता है
लेकिन मैं हार गया
अपने दर्द को एक रोज़ बारिश में
घर में खिड़की के पास बैठा था
देखा तभी एक दंपती को
गोद में लिए एक अबोध बच्चे को
भीगते हुए कहीं जा रहे थे
बच्चा बीच-बीच में रो उठता था
वह बच्चा बीमार था
शायद घर से चले थे दवा के लिए
बिना कुछ बोले
बिना कुछ देखे
बस तेज़ गति से
भीगते हुए चले जा रहे थे
बच्चे का वह रह-रहकर
करुण रुदन...
एकाएक मेरी नसें जमने लगी
यह ख़्याल मेरी संवेदना को तोड़ने लगा
यह कैसा अभाव है?
यह कैसी बेबसी?
यह कैसे हालात हैं?
वह कौन थे?
बुख़ार में तपता मेरा शरीर
जो पानी को छूने से भी डरता है
लेकिन मैं हार गया
उस अबोध बच्चे से
उसके पीड़ा से
अपनी तुच्छ पीड़ा हार गया . . .

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