दो बातें जो तुमसे कहीं थीं
काव्य साहित्य | कविता राहुलदेव गौतम15 Nov 2022 (अंक: 217, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
जब-जब तुम्हारी आँखों के
ठहराव को,
अपनी तरफ़ देखा
तब-तब इस दुनिया को,
मेरी आँखों में ठहरते देखा!!
और तुम कहती हो
तुम्हारे प्यार की हद क्या है?
प्रेम की कोई उम्र नहीं होती
तो मैं इस जन्म में
अपने चेहरे की झुर्रियों में
तुम्हें कैसे समेट लूँ!!!
माना कि हम और हमारी
मान्यताएँ अलग-अलग हैं!
पर क्या यह नहीं हो सकता,
तुम मेरे दृष्टिकोण से
और मैं, तुम्हारे दृष्टिकोण से
इस संसार को . . .
ख़ूबसूरत कहें!!!
कुछ तुम, भ्रम को ख़त्म करो
कुछ मैं, भ्रम को ख़त्म करूँ!
एक बार फिर,
मैं और तुम!
एक-दूसरे को शिद्दत से,
पहचान जायेंगे!!!
जैसे तुम, मेरे लिए . . .
ज़रूरी हो!
इसी तरह जिस दिन
तुम्हारे लिए . . .
मैं ज़रूरी हो गया,
उस दिन
मेरी हार की जीत होगी!!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अनंत पथ पर
- अनकही
- अनसुलझे
- अनुभव
- अनुभूति
- अन्तहीन
- अपनी-अपनी जगह
- अब कोई ज़िन्दा नहीं
- अब लौट जाना
- अस्तित्व में
- आँखों में शाम
- आईना साफ़ है
- आज की बात
- आजकल
- आदमी
- आदमी जब कविता लिखता है
- आयेंगे एक दिन
- आवाज़ तोड़ता हूँ
- इक उम्र तक
- उदास आईना
- उस दिन
- एक किताब
- एक छोटा सा कारवां
- एक तरफ़ा सच
- एक तस्वीर
- एक तारा
- एक पुत्र का विलाप
- एक ख़ामोश दिन
- एहसास
- कल की शाम
- काँच के शब्द
- काश मेरे लिए कोई कृष्ण होता
- किनारे पर मैं हूँ
- कुछ छूट रहा है
- कुछ बात कहनी है तुमसे
- कुछ ख़त उसके
- कुछ ख़त मेरे
- कोई अज्ञात है
- कोई लौटा नहीं
- गेहूँ और मैं
- चौबीस घंटे में
- छोटा सा सच
- जलजले
- जीवन इधर भी है
- जीवन बड़ा रचनाकार है
- टूटी हुई डोर
- ठहराव
- तराशी हुई ज़िंदगी
- तहरीर
- तालाब का पानी
- तुम्हारा आना
- तुम्हारा एहसान
- दर्द की टकराहट
- दिन की सूनी पुरवाइयाँ
- दीवार
- दीवारों में क़ैद दर्द
- दो बातें जो तुमसे कहीं थीं
- द्वंद्व
- धरती के लिए
- धार
- धारा न० 302
- धुँध
- निशानी
- पत्नी की मृत्यु के बाद
- परछाई
- पल भर की तुम
- पीड़ा रे पीड़ा
- फोबिया
- बनकर देखो!
- बस अब बहुत हुआ!!
- बारिश और वह बच्चा
- बाज़ार
- बिसरे दिन
- बेचैन आवाज़
- भूख और जज़्बा
- मनुष्यत्व
- मरी हुई साँसें – 001
- मरी हुई साँसें – 002
- मरी हुई साँसें – 003
- मशाल
- माँ के लिए
- मायने
- मुक्त
- मुक्ति
- मृगतृष्णा
- मेरा गुनाह
- मेरा घर
- मैं अख़बार हूँ!
- मैं किन्नर हूँ
- मैं डरता हूँ
- मैं तुम्हारा कुछ तो सच था
- मैं दोषी कब था
- मैं दोषी हूँ?
- रास्ते
- रिश्ता
- लहरों में साँझ
- वह चाँद आने वाला है
- विकल्प
- विराम
- विवशता
- शब्द और राजनीति
- शब्दों का आईना
- संवेदना
- सच चबाकर कहता हूँ
- सच बनाम वह आदमी
- सच भी कभी झूठ था
- सपाट बयान
- समय के थमने तक
- समय पर
- समर्पण
- साॅ॑झ
- सफ़र (राहुलदेव गौतम)
- हादसे अभी ज़िन्दा हैं
- ख़ामोश हसरतें
- ख़्यालों का समन्दर
- ज़ंजीर से बाहर
- ज़िन्दा रहूँगा
नज़्म
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं