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दो बातें जो तुमसे कहीं थीं

जब-जब तुम्हारी आँखों के
ठहराव को, 
अपनी तरफ़ देखा
तब-तब इस दुनिया को, 
मेरी आँखों में ठहरते देखा!! 
और तुम कहती हो
तुम्हारे प्यार की हद क्या है? 
 
प्रेम की कोई उम्र नहीं होती
तो मैं इस जन्म में
अपने चेहरे की झुर्रियों में
तुम्हें कैसे समेट लूँ!!! 
 
माना कि हम और हमारी
मान्यताएँ अलग-अलग हैं! 
पर क्या यह नहीं हो सकता, 
तुम मेरे दृष्टिकोण से
और मैं, तुम्हारे दृष्टिकोण से
इस संसार को . . . 
ख़ूबसूरत कहें!!! 
 
कुछ तुम, भ्रम को ख़त्म करो
कुछ मैं, भ्रम को ख़त्म करूँ! 
एक बार फिर, 
मैं और तुम! 
एक-दूसरे को शिद्दत से, 
पहचान जायेंगे!!! 
 
जैसे तुम, मेरे लिए . . . 
ज़रूरी हो! 
इसी तरह जिस दिन
तुम्हारे लिए . . . 
मैं ज़रूरी हो गया, 
उस दिन
मेरी हार की जीत होगी!! 

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