मशाल
काव्य साहित्य | कविता राहुलदेव गौतम1 Feb 2020 (अंक: 149, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
लोग कहते हैं
शीशा सच दिखाता है।
मैं आज तक वो,
आईना ढूँढ़ रहा हूँ।
एक मछली की तरह हो गई है,
ज़िन्दगी की कश्मकश..
जीवन भी पानी
आँसू भी पानी।
जीवन को अगर समझना था तो,
इसमें उलझना शायद
बहुत ज़रूरी था।
तुम आईना फेंक कर..
तो देखो,
तुम्हें दिल के टुकड़े
गिनने नहीं पड़ेंगे।
एहसास की चादर
कितनी कोरी निकली।
वक़्त और यादों का दाग़,
कितना गहरा हो गया था।
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