परछाई
काव्य साहित्य | कविता राहुलदेव गौतम1 Sep 2024 (अंक: 260, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
(भोजपुरी कविता)
जहवां से शुरू होला आखिर में
ऊ कहां रह जाला जिनगी
केतना देर हो जाला समझे में जिनगी।
जवन चाहा ऊ त मिल जाला मेहनत से
पर कुछ देहला से पहिले सबकुछ ले लेला जिनगी।
मुहआ चुप ह त ई मत समझा कुछ न कहली
समयिआ आईला पर सबकुछ कह जाला जिनगी।
हम छिप गईली पईसा के आड़ में कईके हजार गलती
उमरिया बीत गईला पर सीसा जईसन हो जाला जिनगी।
का कमईली का गवली ई त बाद में पता चली
जब सांस तन थकला पर सही से गुजर जाला जिनगी।
न मेला रही न रही बहुत भीड़ एक दिन अईला पर
दुआरे एगो दीया के सहारे खतम हो जाला जिनगी।
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