काश मेरे लिए कोई कृष्ण होता
काव्य साहित्य | कविता राहुलदेव गौतम1 Mar 2019
काश मेरे लिए कोई कृष्ण होता,
मुझे समझाता, बताता,
मैं कौन हूँ,
क्यों हूँ, किसलिए हूँ,
खोलते मेरे मोह के जंजीर,
जिसमें छटपटाता मैं अकेला अर्जुन!
जिस जिस को अपना समझने चला था,
मैं अपने जीवन के कुरूक्षेत्र में,
उसको अपने विरुद्ध पाया,
अपनी वेदना के ख़िलाफ़!
किसे समझूँ मैं अपना,
रह गया मैं फँसा अपने दु:ख में अकेला!
काश मेरे लिए कोई कृष्ण होता!
मुझे दिखाते अन्नंत के क्षण,
हो जाता शाश्वत चिरन्तर जीवन का भान!
मैं कौन था,
क्या हो गया मुझे,
अस्तित्व का पथ पग के नीचे,
कहाँ चल रहा थका हारा,
कौन है अपना,
कौन है पराया,
असत्य ठहर जाता कुछ क्षण के लिए,
टूट जाते सब बंधन के पाश,
काश मेरे लिए कोई कृष्ण होता!
जो ज्योति देते अखण्ड नेत्रों में,
हो जाता मुझे सत्य का दर्शन,
छूट जाते सब दु:ख दर्द,
रह जाते मात्र वहीं एक सत्य!
जी भर के रो लेता,
हाथ जोड़ घुटने टेकता उनके सामने,
खुल जाते अपनत्व का जाल!
उनके कंधे पर जी भर सिसक लेता,
काश मेरे लिए कोई कृष्ण होता!
ख़ूब डर लेता उनके स्पन्दन से,
कह देता सारी व्यथा,
रह जाता सिर्फ़ मैं शेष,
हल्का खाली बस खोखला,
रह जाता मेरा जीवन,
शान्त निशब्द निडर,
हर अधर्म सह लेता,
काश मेरे लिए कोई कृष्ण होता!
जो समझाते मुझे सिखाते,
कोई नहीं है यहाँ तेरे लिए,
चलना है तुझे अकेले,
कर निर्माण एक नये युग,
एक नये जीवन,
एक नये बीज पल्ल्वित का,
जिसमें सच हो,
न हो फरेब न हो कोई अपना पराया,
बस हो प्रेम,
बस हो कलरव,
उन्मुक्त परियों का,
हो संस्कार न हो मतभेद,
ना हो रिश्तों का षडयन्त्र,
ना हो महत्वाकांक्षी की प्रतिस्पर्धा,
बस हो बदलाव!
कोई ज़ख़्म के लिए मरहम होता!
काश मेरे लिए कोई कृष्ण होता!
जो होता सिर्फ़ मेरे लिए होता,
ना हो प्यार का पट हरण,
न छिनता कोई दु:शासन,
बन कर आता मैं भीम,
तोड़ देता मोह का पैर!
न अफ़सोस होता न आँसू होता,
काश मेरे लिए कोई कृष्ण होता!
जो दिखाता जो बनाता,
मेरा अस्तित्व जो न था न है!
असीम घनघोर धुन्ध,
रह जाती निशक्त,
बन जाता मैं फिर से एक सशक्त मनुष्य,
रह जाता मैं तृप्त,
न फँसता अभिमन्यु की तरह,
इस दुनिया के चक्रव्यूह में,
अकेला अधीर बेबस,
क्या मैं जिसे अपना समझा,
वही खड़े हैं मेरे सामने,
अपने-अपने स्वार्थ का हथियार लिए!
जो प्यासे थे मेरे लाचारी का रक्त पीने के लिए!
मेरे सत्य की हत्या के लिए,
मैं कहाँ जाऊँ किससे कहूँ,
जज़्बातों का एक पहिया लिए,
किस किस से लड़ूँ!
निराधार होकर मैं खो जाता,
काश मेरे लिए कोई कृष्ण होता!
मुझे सबल बनाता मनुष्य बनाता!
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