धुँध
काव्य साहित्य | कविता राहुलदेव गौतम1 Feb 2023 (अंक: 222, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
धुँधली आज शाम की बारिशों में
तुम्हारी मौजूदगी की महक आ गयी!
इन हलचलों में ना जाने कहाँ से,
आहिस्ता आहिस्ता तहज़ीब आ गयी!
मैं रुकना नहीं चाहता जहाँ मैं खड़ा हूँ,
एक दूर सफ़र की याद आ गयी!
बस यह लम्हा न ठहरे जो शुरू हुआ है
आज जीने की एक तरकीब आ गयी!
हवाएँ भी आज अपने बाँकपन में है मसरूफ़
ना जाने किधर से तेरी आवाज़ आ गयी!
आज मुफ़्लिसों से फ़ुर्सत में है मेरी साँसें
हर एक जगह से तेरे नाम की गूँज आ गयी!
यह जहाँ, यह धरती आसमां, कुछ है मेहरबां,
आज ज़िन्दगी फिर से मेरे नाम आ गयी!
बड़े दिनों के बाद आदमी होने का सलीक़ा आया
आज तुम्हें फिर से जीने की आस आ गयी!
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