बनकर देखो!
काव्य साहित्य | कविता राहुलदेव गौतम15 Nov 2022 (अंक: 217, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
मैं एक कहानी बनता हूँ,
तो तुम, एक पात्र बनकर देखो!
मैं एक नदी बनता हूँ,
तो तुम, उसकी गति बनकर देखो!
मैं घर की खिड़की बनता हूँ,
तो तुम, हवा की तासीर बनकर देखो!
मैं ख़ुश्बू बनता हूँ,
तो तुम, कोई फूल बनकर देखो!
मैं रात बनता हूँ,
तो तुम, उसकी तन्हाई बनकर देखो!
मैं दर्द बनता हूँ,
तो तुम, उसकी वजह बनकर देखो!
मैं अगर सवाल बनता हूँ,
तो तुम, उसका जवाब बनकर देखो!
मैं नज़र बनता हूँ,
तो तुम, उसकी गहराई बनकर देखो!
मैं ज़मीन बनता हूँ,
तो तुम, उसकी मालकियत बनकर देखो!
मैं नाम बनता हूँ,
तो तुम, उसकी ज़ुबाँ बनकर देखो!
मैं अगर आसमां बनता हूँ,
तो तुम, उसकी स्थिरता बनकर देखो!
मैं अगर राग बनता हूँ,
तो तुम, कोई धुन बनकर देखो!
मैं कोई मूरत बनता हूँ,
तो तुम, उसकी तराश बनकर देखो!
मैं कोई हादसा बनता हूँ,
तो तुम, उसका गवाह बनकर देखो!
मैं कुछ नया बनता हूँ,
तो तुम, उसका अतीत बनकर देखो!
मैं निर्माण बनता हूँ,
तो तुम, इसका आरम्भ बनकर देखो!
जब मैं अँधेरा बनता हूँ,
तो तुम, एक चराग़ बनकर देखो!
जब मैं कुछ नहीं बनता हूँ,
तो तुम, कुछ बनकर देखो!
जिस दिन,
तुम यह बनकर देखोगे!
उस दिन,
मेरा और अपना सच देखोगे!
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