विवशता
काव्य साहित्य | कविता राहुलदेव गौतम1 Jul 2019
विवशता ही क्या?
जीवन का मापदंड है।
विवशता ही क्या?
जीवन की पहचान है।
विवशता ही क्या?
सुख-दुःख का आधार है।
विवशता ही क्या?
आदमी होने का नाम है।
विवशता ही क्या?
स्वार्थ का संसार है।
विवशता ही क्या?
शब्दों का निःशब्द है।
विवशता ही क्या?
उम्मीदों की भरमार है।
विवशता ही क्या?
जीने की उम्मीद है।
विवशता ही क्या?
अलग-अलग होने का प्रारब्ध है।
विवशता ही क्या?
अंधे होने का परिणाम है।
विवशता ही क्या?
जो हम नहीं थे वो है।
सब कुछ विवशता पर निर्भर है क्या?
तो उस नवांकुर शिशु की क्या,
विवशता है!
कि उसके माँ-बाप,
धहकती धूप में,
उसे छाया दे पाने में असमर्थ हैं।
क्या विवशता के लिए।
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