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आई एस जौहर (मामा जी)

आई एस जौहर मेरे पति मिस्टर आर के विज के साथ

आई एस जौहर और उनकी पत्नी (मामा जी और मामी जी)

छुट-पुट अफ़साने . . . एपिसोड–002

अतीत से मुठभेड़ किए बिना, उन लम्हों की तलाश कहाँ हो सकती है-जो लम्हे ढेर सारे अफ़सानों की जागीर छिपाए हुए हैं। आज जानें . . . 

बीसवीं सदी के शुरूआती दिनों की बातें हैं। ज़िला झेलम, तहसील चकवाल के शहर “करियाला” में भगतराम जौली थानेदार थे। गबरू जवान ऊपर से बड़ी पोस्ट, बीवी की मौत हो गई थी बुखार से। फिर भी चकवाल के डिप्टी कमिश्नर रायबहादुर रामलाल जौहर ने अपनी इकलौती औलाद “विद्या” का विवाह भगतराम से कर दिया। एक शर्त रखकर कि विद्या की दूसरी औलाद हमें देनी होगी। विद्या के पहला बेटा हुआ रोशन, दूसरा भी बेटा हुआ इन्द्रसेन। वायदे के मुताबिक़ उन्हें अपने जिगर का टुकड़ा उसके नाना-नानी को देना पड़ा। रायबहादुर ने कहा कि यह बात राज़ रखनी होगी, इसलिए इससे आप लोग मिलें नहीं। यही बड़े होकर बॉलीवुड के अभिनेता, लेखक, डायरेक्ट और प्रोड्यूसर आई. एस. जौहर कहलाए। विद्या ने बेटे के ग़म को दिल से लगा लिया और बाइस वर्ष की आयु में चल बसीं। 

छोटे से बच्चे रोशन की देखभाल मुश्किल हो गई थी। उनके लिए फिर रिश्ता आया। अब गुजरात गुजरांवाला से बेहद ख़ूबसूरत लड़की ”रामलुभाई ” का। 

पाबो, रामलुभाई की माँ, की दो बेटियाँ शादी के बाद जल्दी ही मर गईं थीं, तो उसने बिरादरी में कह रखा था कि वो कुँवारे लड़के से अगली बेटी नहीं ब्याहेगी। बेटियों की ख़ूबसूरती के कारण उन्हें नज़र लग जाती है। इससे नज़र नहीं लगेगी और वो ज़िन्दा तो रहेगी। भगतराम के घर दूसरी बीवी के न रहने पर, पाबो ने रिश्ता माँग लिया। जब डोली विदा होने लगी तो भगतराम के कानों ने सुना कि कोई औरत बोल रही थी, “हाय! बेचारे की क़िस्मत फूटी है जो तीसरी शादी कर रहा है। और ’कानी लड़की’ ब्याह के ले जा रहा है।" यह सुनकर वे बेहद परेशान हुए। 

रास्ते में उन्होंने दुलहन से पूछा कि क्या तुम्हारी आँखों में कोई तकलीफ़ है? तो दोहरे दुपट्टे के घूँघट के भीतर से वो बोली, “खेलते हुए मेरे भाई की गिल्ली मेरी आँख में लग गई थी तो आँख बह गई थी।” यह सुनते ही उन्होंने ग़ुस्से से उसका घूँघट पलट दिया। और घूँघट पलटते ही कुछ पल वो ठगे से खड़े रह गए। उनके सामने चौदहवीं का चाँद ज़मीं पर उतर आया था। 

यह मज़ाक सहेलियों ने रामलुभाई के साथ मिलकर उनके साथ किया था। अगले साल ही रामलुभाई के बेटा हुआ, "धर्मवीर" फिर "मदन" और अन्त में एक बेटी "कमला"। उनके ख़ानदान में छह पीढ़ियों से कोई बेटी नहीं हुई थी, सो भगतराम के ख़ुशी के मारे पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। यही थी हमारी जन्म दात्री, मेरी माँ ”कमला रानी"। धर्मवीर और बॉलीवुड के संगीतकार मदनमोहन जिगरी दोस्त थे। (‌‌लेकिन धर्मवीर की मौत हो गई थी, छोटी उम्र में ही) और मदनमोहन की बहन “शान्ति महेन्द्रू” (एक्टर अंजु महेन्द्रू की माँ)। मेरी मम्मी की पक्की सहेली थीं। वो परिवार भी वहीं से है। दोनों परिवारों में बहुत घनिष्ठता थी। बाद में बम्बई में मिलना हुआ था, कई वर्षों बाद। 

आज, बस यहीं तक . . . बाक़ी, फिर!

छुट-पुट अफ़साने . . . एपिसोड–002

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