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छुट-पुट अफ़साने . . . एपिसोड–019

मन अतीत की ओर मुड़ता है तो ढेरों बातें याद आती हैंऔर लगता है उन्हें सब के साथ बाँट लिया जाए। सन्‌ 1974 की बात है “रोटी” फ़िल्म की शूटिंग होने लगी थी। फ़िल्म-यूनिट पहलगाम पहुँच गया था। बड़े स्टार्स पहलगाम होटल में ठहरे थे और जो छोटा स्टाफ़ था, वह माउंट व्यू होटल में ठहरा था। 

पहला दिन था साँझ ढले अचानक देखा तो एक्टर ओम प्रकाश जी दुकान की तरफ़ आ रहे हैं और पूछ रहे हैं कि रवि कहाँ है? शोर मच गया था—ओम प्रकाश, ओम प्रकाश। उनके पीछे-पीछे भीड़ बढ़ी आ रही थी। वे सीधे दुकान के भीतर आए और रवि जी को गले से लगा लिया। मैं भी वहीं बैठी थी। रवि जी ने परिचय करवाया मुझसे तो बोले, “अच्छा बहू रानी है!” यह सुनते ही मैंने उनके पैर छुए। वे पुनः बोले, “यह मेरा छोटा भाई है। इसने बताया कि नहीं?” बहुत भला लगा उनकी यह बात सुनकर। 

फिर तो ढेरों बातें हुईं कि किस फ़िल्म के लिए आए हैं और कौन-कौन आया है। एक महीना ठहरने का प्रोग्राम है यूनिट का, उन्होंने बताया। अब तो शामें उनकी यहीं कटती थीं। हाँ, कभी-कभी रात के सीन भी होते थे, तब वह शूटिंग में बिज़ी होते थे। बेहद रौनक़ रही उन दिनों। 

एक शाम वह मुझे अपने साथ होटल में ले गए कि आओ हम सब बैठ रहे हैं ख़ूब रौनक़ लगेगी और वाक़ई वहाँ पर पूरी महफ़िल सजी थी। निरूपा राय, मनमोहन, हंगल समेत हम सबने गीत, भजन, चुटकुले आदि सुना कर एक-दूसरे का मन बहलाया। साथ में स्नैक्स और चाय का प्रोग्राम भी चलता रहा। ओम प्रकाश जी ने तो शेरो-शायरी भी ख़ूब सुनाई। थोड़ी देर बाद कुछ शोर सुनाई दिया तो पता चला कि शर्मिला टैगोर के बेटे सैफ़ और गुलज़ार जी की बेटी मेघना की लड़ाई हो गई है। दोनों 9-10 साल की उम्र के थे। वो दोनों स्वयं तो शूटिंग लोकेशन पर थे, लेकिन बच्चे होटल में थे। सैफ़ ने एक वेटर को भी थप्पड़ मार दिया था। वह बीच बचाव कर रहा था तो। मेघना भी रो रही थी। हम सबको लगा कि यह लड़का बहुत ही बदतमीज़ है। बिगड़ी औलाद है। फिर उसका केयर टेकर उसे कमरे में ले गया था। 

उन दिनों काफ़ी फ़िल्मों की शूटिंग्स चल रहीं थीं। अगले दिन हम प्लेटो (ऊँचे पहाड़ों की तलहटी में घास के मैदान) पर घूमने गए तो देखा कि वहाँ शर्मिला टैगोर के सीन की शूटिंग चल रही है, पीछे कुर्सी पर स्क्रिप्ट की फ़ाइल्स लेकर गुलज़ार जी बैठे हुए हैं। अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि एक शॉट देने के बाद शर्मिला आकर गुलज़ार की गोदी में बैठ जाती थीं और वे उसे हटाते थे। बेहूदा लग रही थी उनकी ये हरकत। यही दो-चार बार हुआ तो हम लोग वहाँ से हट गए। लगा, इनको पब्लिक की शर्म भी नहीं है। न राखी थीं वहाँ, न ही पटौदी। हमें अच्छा नहीं लग रहा था यह सब। ख़ैर, हम कुछ दूरी पर एक दूसरी लोकेशन पर सुचित्रा सेन और संजीव कुमार के पास चले गए जो हमारे दोनों बच्चों के साथ बिज़ी थे। संजीव कुमार रोहित को प्यार से गोद में उठाकर खड़े थे। वे वहाँ “आंधी” फ़िल्म की शूटिंग के लिए आए हुए थे। अगले दिन हम उनके साथ मार्तन्ड मंदिर गए, जहाँ दीवारों पर उर्दू में आयतें लिखी हुई हैं। सुचित्रा सेन का व्यक्तित्व आकर्षित करता है। मेरी तो वे पसंदीदा कलाकार हैं। 

तेरे बिना ज़िन्दगी से शिकवा तो नहीं, शिकवा नहीं, शिकवा नहीं।” . . . यह गीत वहीं फ़िल्माया गया था। 

अगले दिन होटल वुड स्टॉक से संदेशा आया कि आप आ जाइए कार्ड्स खेलेंगे। जब वहाँ गए तो देखा कि वहाँ तो शम्मी कपूर जी और उनकी पत्नी नीला जी भी आई हुई हैं। ताश की टेबल सजी हुई है और वहाँ निरुपा राय जी भी बैठी हैं, फ़ाइट मास्टर के साथ। उसके बाद हम सब ने रम्मी खेली, चाय का दौर भी चला। नीला जी स्वयं ताश नहीं खेलती हैं, शम्मी के साथ बैठती हैं सिर ढांक कर। वे काफ़ी सुंदर और रॉयल लगती हैं देखने में। 

सो, ऐसी कई रौनक़ें वहाँ लगती थीं। 
बाक़ी, सुनाती हूँ अगली बार . . .॥

वीणा विज ‘उदित’

छुट-पुट अफ़साने . . . एपिसोड–019

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