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सुखना लेक, चंडीगढ़

रॉक गार्डन, चंडीगढ़

पंजौर गार्डन, चंडीगढ़

छुट-पुट अफसाने . . . एपिसोड–23

अतीत के गलियारे में क़दम रखते ही, मन है कि अतीत को ही दोहराना चाहता है। अतीत सजीव हो उठता है और सुधियों के पृष्ठ खुलते चले जाते हैं। सुधियों के समंदर में गोते लगाने से कई तथ्यों रूपी मोती ही तो हाथ आएँगे ना! पंजाब दर्शन के अध्याय में साथ ही अपने ससुराल परिवार से आत्मीयता बढ़ाने के उद्देश्य से हम चंडीगढ़ की ओर रुख़ करते हैं . . .। 

इससे पूर्व यह उल्लेख करना आवश्यक है कि विभाजन से पूर्व पूरा विज परिवार लाहौर में रहता था। श्रीओमप्रकाश विज (रवि जी के चाचाजी) गाँधी जी के भक्त व पक्के कांग्रेसी होने के नाते स्वतंत्रता संग्राम में लाहौर जेल में बंद रहे थे और कई ऐतिहासिक घटनाओं के गवाह थे। 

विभाजन के बाद यह लोग जालंधर आ गए थे। जीटी रोड पर इनका “विज स्टुडियो” था। ये “जालंधर फोटोग्राफर एसोसिएशन” के संस्थापक और प्रधान थे। एसोसिएशन की बिल्डिंग गुरु नानक मिशन चौक में, सामने सड़क के पास थी। फिर इसके आगे गुरु नानक मिशन अस्पताल बना दिया गया और यह पीछे रह गई। इनकी साली के पति कॉमरेड रामकिशन थे जो कि बाद में पंजाब के चीफ़ मिनिस्टर बने। ये सब लोग सन्‌ 1957 में चंडीगढ़ शिफ़्ट हो गए थे। 

दूसरी ओर रवि जी की बुआ जी का परिवार और उनके ज्येष्ठ दामाद श्री गोपाल देव कपूर जी (जिनके नाम से सांईदास स्कूल के साथ वाले मोहल्ले का नाम गोपाल नगर है) भी स्वतंत्र भारत में, जेल में काफ़ी लम्बे अरसे तक बंद रहे। वहीं उनका स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ, वे आरएसएस में थे। 

बुआ जी की दूसरी बेटी श्रीमती विमला कोहली भी जनसंघ की लीडर एवम् कुशल प्रवक़्ता थीं। उनके पति श्री सत्यदेव कोहली जी बाद में “गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय” हरिद्वार के चांसलर थे। विभाजन के पश्चात् ये सारा परिवार भी जालंधर आ गया था। विमला बहनजी अपने समय में‌ जालंधर की मानी हुई हस्ती थीं। चंडीगढ़ के अस्तित्व में आने के पश्चात सन् 1957 में ये सब भी चंडीगढ़ में बस गए थे। चूँ कि अब सभी रिश्ते नाते के लोग चंडीगढ़ में विस्थापित थे, सो हम उनसे मिलने जा रहे थे। 

रास्ते में नवांशहर क्रॉस करते एक हलवाई की दुकान थी जो कढ़ाई में बर्फी बना रहा था हमने कार वहीं रोकी और ताज़ी बर्फी साथ लेकर वहाँ से निकले। भविष्य में भी जब कभी चंडीगढ़ जाना होता तो हम वह बर्फी लेना कभी नहीं भूलते थे। 

चंडीगढ़ बहुत ही साफ़-सुथरा शहर है। हम सीधे चाचा जी के घर सेक्टर 16 ही गए। यह शहर सेक्टरों में बँटा हुआ है। नीचे विज स्टुडियो और ऊपर उनका आवास। वहाँ चाचा जी के दो बेटे और चार बेटियाँ, सभी बहुत आत्मीयता से मिले, अपनापन लगा। साँझ ढलने से पूर्व ही वे हमें सेक्टर 35 में रोज़-गार्डन घुमाने ले गए। बसंती मलय बहने से गुलाब के फूल डालियों पर झूम रहे थे और उनकी ढेरों रंग-बिरंगी देसी और विलायती क़िस्में थीं, जो मन लुभा रही थीं। गुलाब की सुगंध से वातावरण सुगंधित था। वहींअद्भुत काले गुलाब पहली बार दृष्टव्य हुए, जिन्हें देखकर मैं अचंभित थी। आजकल तो नीले गुलाबी भी होते हैं फ़्लोरिस्ट के पास। यह क़िस्से तो आधी सदी पुराने हैं। 

दूसरे दिन नाश्ता करने के पश्चात केवल चाचा जी हम दोनों को लेकर एसेंबली बिल्डिंग या विधान सभा दिखाने ले गए। जिसके विषय में हम सिविक्स या पॉलिटिक्ल साइंस में पढ़ा करते थे। यह स्वतंत्र भारत में बनी नई बिल्डिंग थी विधान सभा की, जिसे देखकर गर्व हो रहा था। 

उसके बाद हम सेक्टर 21में बुआ जी के घर उन्हें मिलने गए। उनके बड़े बेटे उनके साथ थे। और उन्होंने बताया कि उनका छोटा बेटा और बहू न्यूयार्क में हैं। तब ऐसी बातें सुनकर लगा, उनका क़द बढ़ गया है हमारी नज़र में। (मालूम न था, आने वाले वक़्त में हम स्वयं ज़्यादातर अमेरिका में रहने लग जाएँगे) ख़ैर वक़्त, वक़्त की बात है। 

अगले दिन पंजौर गार्डन जाने का प्रोग्राम बनाया गया। मध्य मार्ग जो साफ़-सुथरी, सीधी सड़क है और जिसके दोनों ओर बड़े-बड़े छायादार वृक्ष हैं, वहाँ से गुज़र कर अजीब सी शान्ति लगी। पहले हम आधा घंटा चलने के पश्चात् थोड़ी देर चण्डी मंदिर रुके फिर आगे पंजौर की ओर बढ़े। बेहद ख़ूबसूरत ऊँचाइयों से आगे बढ़ते हुए नीचे की ओर एक क़तार में बढ़ते हुए पानी के फव्वारे। मुझे मैसूर के वृन्दावन गार्डन की याद आ गई, जहाँ मैं सन् 1968 में गई थी। बच्चों को साथ लेकर हम बहुत बाद में पुनः वहाँ गए थे। लेकिन अभी इसकी चर्चा नहीं करेंगे। वहाँ शिवालिक पहाड़ियों की गोद में बसी सुरम्य घाटी में पंजौर गार्डन में सारा दिन पिकनिक करके हम सब साँझ ढले प्रसन्न वदन लौट आए। अगले दिवस रॉक गार्डन जाने का प्रोग्राम बना कर। 

सूर्य की किरणें अभी चेहरे को सीधी नहीं छू रहीं थीं, जब हम रॉक-गार्डन पहुँचे। नेक चंद एक सड़क इंस्पेक्टर थे, जिन्होंने सड़क किनारे या घर से फेंके टूटे-फूटे सामान को जोड़कर कुछ नई क़िस्म और नवीन शक्ल की मूर्तियाँ बनाईं और उससे एक गार्डन बनाया। बाद में नेक चंद की सृजनात्मकता देखकर प्रशासन ने उनकी मदद की और इसे पर्यटन स्थल बना दिया गया। यदि आपने चंडीगढ़ कभी नहीं देखा है, तो सैर करने जाएँ। और वहाँ रॉक गार्डन देखने अवश्य जाएँ। मैं तो उस कारीगरी को देखकर रोमांचित और साथ ही हैरान भी उसी हद तक थी। 

उस शाम हम विमला बहनजी के घर गए। उनके व्यक्तित्व से मैं प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी थी। स्पष्टवादी और स्वदेश प्रेम से वे ओत-प्रोत लगीं। उस परिवार में आर्य-समाजी विचार प्रबल थे। मुझे अपनी मम्मी याद आ रहीं थीं, इन सब में। 

अगली दोपहर रवि जी मुझे “सुखना लेक” ले गए घुमाने। लेक के इस पार बाउंड्री बनी है और चौड़ी-चौड़ी ढेरों सीढ़ियाँ नीचे उतर कर पानी में पैर डाल सकते हैं। हमने वहाँ जमकर फोटोग्राफी की। तब वहाँ प्रवासी पक्षियों का झुंड आया हुआ था। कहते हैं वह साइबेरिया से आते हैं हर वर्ष। वे देखने में बहुत सुंदर थे। लेकिन उनके बारे में सुनकर विश्वास ही नहीं हुआ कि इतनी दूर से वे प्रतिवर्ष इसी जगह पर आते हैं। और सर्दियाँ शुरू होने से पहले ही वे वापस चले जाते हैं। क्या कमाल की क़ुदरत है ना यह भी। 

इस प्रकार पंजाब दर्शन का यह अध्याय चंडीगढ़ घूमकर पूरा किया हमने। 

छुट-पुट अफ़साने . . . एपिसोड–023

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